चीन सिर्फ जमीन, और समुद्र पर ही अपने पाँव नहीं पसार रहा था बल्कि अंतरीक्ष में भी अपने पाँव पसारना शुरू कर चुका है जिसमें उसे कई देशों की सहायता मिल रही है। यदि सौरमंडल को चीन की बढ़ती विस्तारवादी भूख से बचाया जाना है तो चीनियों को अंतरिक्ष से बाहर करने का प्लान बनाना होगा और अमेरिका इसी काम में लग चुका है।
चीन वर्ष 2022 तक अपने अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करना चाहता है और केन्या सहित कई देशों के वैज्ञानिकों को अपने कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शामिल किया है जिसमें फ्रांस, जर्मनी, जापान और पेरू शामिल हैं। परंतु अमेरिका चीन के इस प्लान को निष्फल करने की योजना पर लग चुका है और अन्य देशों को भी अमेरिका की मदद करनी चाहिए।
बता दें कि अमेरिका द्वारा विकसित इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन, जो कि 2000 के बाद से लगातार पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है, उसे वर्ष 2030 तक डिकमीशन किया जाना है, जिसका यह मतलब अगर चीन सफल हो जाता है तो विश्व को उसके भरोसे बैठना होगा या फिर अमेरिका को बाकी देशों के साथ मिलकर दूसरे स्पेस स्टेशन का विकास करना होगा।
नासा प्रमुख, Jim Bridenstine ने बुधवार को अमेरिकी सांसदों को बताया कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के डिकमीशन होने के बाद अमेरिका के लिए पृथ्वी की कक्षा में उपस्थिति बनाए रखना महत्वपूर्ण है जिससे चीन को इस क्षेत्र में रणनीतिक लाभ न हो सके।
उन्होंने कहा कि “चीन ‘चाइनीज इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ का तेजी से निर्माण कर रहा है और सभी देशों को इससे जुड़ने का लालच दे रहे हैं।”
उन्होंने कहा, ” इस प्रयास के बाद भी हम पृथ्वी की कक्षा को छोड़ देंगे और उस क्षेत्र को चीन के हवाले कर देंगे तो यह किसी त्रासदी से कम नहीं होगी”। नासा प्रमुख की ओर से यह चेतावनी सभी देशों के साथ-साथ खास तौर पर अमेरिका के लिए था। जिस तरह से आज ट्रम्प प्रशासन किसी भी मामले में चीन के प्लान को ध्वस्त कर रहा है उसे देखा जाए तो इस क्षेत्र में भी जल्द ही परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
चीनी स्पेस स्टेशन के लिए चीन-केन्या साझेदारी, जिसमें अमेरिका के कुछ करीबी देश भी शामिल हैं, उसको लेकर ट्रम्प प्रशासन अब जागरूक हो चुका है। अमेरिका ने वर्षों से केन्या को चीन के ऋण जाल के बारे में चेतावनी देकर आगाह किया था लेकिन अब वह पूरी तरह से फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। अगर अब भी केन्या को मौका मिला तो शायद यह देश अपने होश में आकर चीन के साथ स्पेस स्टेशन साझेदारी से स्वयं को दूर कर सकता है।
चीन को हाल ही में स्वीडिश राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी – स्वीडिश स्पेस कॉरपोरेशन (SSC) द्वारा बाहर निकाल दिया गया था, जिसने घोषणा की कि वह पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में एक रणनीतिक अंतरिक्ष ट्रैकिंग स्टेशन के उपयोग के लिए चीनी ग्राहकों के साथ कोई भी नई डील नहीं करेगी।
चीन इस प्रकार ऑस्ट्रेलिया में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अंतरिक्ष ट्रैकिंग स्टेशन से बाहर निकाला जाना दिखाता है कि अब सभी देश चीनी महत्वाकांक्षा से पारिचित हो चुके हैं।
इससे न सिर्फ चीन की navigational and Space exploration महत्वाकांक्षाओं झटका लगेगा बल्कि उसके अपने स्वयं के लिए एक स्वतंत्र ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) स्थापित करने के सपने को भी झटका लगेगा।
अर्जेंटीना में चीन ने एक स्पेस सेंटर बना रखा है जिस पर जासूसी और अमेरिका पर नजर बनाए रखने के लिए इस्तेमाल करता था। अब यह स्पेस स्टेशन भी अर्जेन्टीना के लोगों की नजरों में आ चुका है और चीन के खिलाफ विरोध बढ़ने लगा है।
हालांकि, नासा प्रमुख ने अमेरिका को चीनी की महत्वाकांक्षाओं को लेकर चेतावनी देते समय यह भी प्रस्ताव दिया है कि अमेरिका को एक नया स्पेस स्टेशन बनाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि, वह एक सार्वजनिक-निजी साझेदारी से भी स्पेस स्टेशन बना सकता है जहां नासा अन्य देशों के वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन प्रदाताओं के साथ डील कर सकता है।
उन्होंने कहा कि “मुझे नहीं लगता कि एक और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाना यह राष्ट्र के हित में है। मुझे लगता है कि वाणिज्यिक उद्योग का समर्थन करना राष्ट्र के हित में होगा, जहां नासा एक कस्टमर होगा।”
अगर देखा जाए तो अमेरिका और लोकतांत्रिक दुनिया के लिए चीन को अंतरिक्ष से बाहर रखने के लिए इस क्षेत्र में QUAD के सदस्यों के बीच एक अंतरिक्ष गठबंधन सबसे बेहतर विकल्प होगा जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। पहले से ही या समूह एक सैन्य और जियोस्ट्रैटिक गठबंधन के तौर पर काम कर रहा है, और किसी भी चीनी खतरे से निपटने में सहयोग कर रहे हैं। अन्तरिक्ष में भी इन चारों देशों की सहभागिता चीन के विस्तार को रोकने में सक्षम हो जाएगी।
QUAD के सदस्यों के बीच उक्त पूरे विश्व के लिए बोनस साबित हो सकता है, क्योंकि प्रत्येक देश इन सहभागिता में एक विशेष तरीके से मदद कर सकते हैं। अमेरिका के पास उच्च तकनीकी और अगली पीढ़ी के एवियोनिक्स के लिए आवश्यक तकनीकी आधार है, जो space docks के लिए निर्माण में सभी महत्वपूर्ण होगा है। यही नहीं अंतर-ग्रहों के वाहन (आईपीवी) भी जो अन्य ग्रहों पर जाने और मानव यात्रियों, चालक दल, और मशीनरी के ट्रांसपोर्ट लिए आवश्यक होगा।
वहीं space docks के स्टील के निर्माण के लिए ऑस्ट्रेलिया के प्राकृतिक संसाधन काम आएंगे जिसकी बड़ी मात्रा में आवश्यकता पड़ेगी।
भारत, अपने उच्च शिक्षित और अनुभवी अंतरिक्ष कर्मचारियों के साथ अंतरिक्ष गठबंधन में आवश्यक श्रम प्रदान करेगा। जापान अपने उन्नत रोबोटिक्स और स्वचालित मशीनरी के साथ चार देशों के अंतरिक्ष प्रयासों में मदद कर सकता है।
हालांकि, QUAD सदस्यों के बीच अंतरिक्ष सहयोग का आधार उनके चीन की विस्तारवादी नीतियों को रोकने की उनकी सामूहिक इच्छा होगी। भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि चीन को न केवल पृथ्वी पर, बल्कि उसके आसपास के अंतरिक्ष में भी रोका जा सके।