राजनीति में अपने विरोधियों को चित करने से ज्यादा मुश्किल काम होता है अपने सहयोगियों की महत्वाकांक्षा को दबाना। भारतीय राजनीति में कुछ चुनिंदा नेता ही ऐसे हैं जिनके पास यह अद्भुत क्षमता है कि वह अपने बागी साथियों को नियंत्रित कर सके। उन्हीं में से एक हैं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस। बिहार चुनाव के मद्देनजर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने एक बड़ा फैसला करते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार रवाना किया है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री को बिहार के प्रभारी के रूप में पटना भेजा गया है। देवेन्द्र फडणवीस पर एनडीए के बीच सीटों के बंटवारे पर आपसी सहमति बनाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
देवेन्द्र फडणवीस एक तेजतर्रार नेता हैं। महाराष्ट्र में उनकी सूझबूझ का ही नतीजा था कि शिवसेना के लगातार विरोध के बावजूद भाजपा 5 साल तक उसी के साथ मिलकर सफलतापूर्वक सरकार चलाने में कामयाब रही।
2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया था कि गठबंधन में शिवसेना छोटे भाई की भूमिका में आ गई है। लेकिन शिवसेना जैसे महत्वकांक्षी दल को शांत रखना देवेंद्र फडणवीस की समझदारी का नतीजा था। फडणवीस के नेतृत्व के कारण ही शिवसेना को 5 साल अधीनस्थ के रूप में कार्य करना पड़ा है और इस दौरान भाजपा ने शिवसेना के वोट बैंक में सेंध भी लगा ली। यह बात और है कि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और शिवसेना अलग हो गए किंतु देवेन्द्र फडणवीस की राजनीति के कारण शिवसेना इतनी कमजोर हो गई कि उसे अपने वैचारिक विरोधियों कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करने पर मजबूर होना पड़ा।
भाजपा नेतृत्व फडणवीस की इसी काबिलियत का इस्तेमाल बिहार चुनाव में करना चाहती है। जैसी मुसीबतें महाराष्ट्र में शिवसेना ने भाजपा के लिए पैदा की थी उसी प्रकार की मुसीबतें बिहार में जेडीयू भी पैदा करती रही है। नीतीश कुमार एक अतिमहत्वकांक्षी नेता हैं, उनके नेतृत्व के कारण भाजपा को बिहार में सहयोगी दल के रूप में कार्य करना पड़ रहा है जबकि ड्राइविंग सीट पर खुद नीतीश कुमार बैठे हैं।
लेकिन इस चुनाव में नीतीश कुमार की लोकप्रियता पहले से काफी कम हुई है। साथ ही भाजपा का प्रमुख सहयोगी दल LJP खुलकर नीतीश कुमार के विरोध में उतर गई है। ऐसे में सभी समीकरणों को भाजपा के हित में साधने की जिम्मेदारी देवेंद्र फडणवीस को दी गई है।
LJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने गठबंधन में अधिक सीटों की मांग रखी है, जिसे नीतीश कुमार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। चिराग पासवान के नेतृत्व से पहले LJP बिहार में सिर्फ दलितों की पार्टी ही मानी जाती थी, लेकिन चिराग के नेतृत्व में LJP का स्वरूप बदल रहा है। चिराग पासवान राज्य तथा देश के विभिन्न मुद्दों पर खुलकर अपना विचार रखते रहे हैं और उनकी छवि एक तेज तर्रार युवा नेता के रूप में उभरी है। आज बिहार का युवा वर्ग उनको भविष्य के नेता के रूप में देखने लगा है।
इसके विपरीत नीतीश कुमार का करिश्मा अब खत्म हो रहा है। वास्तविकता यह है कि नीतीश कुमार विकल्पों के अभाव के कारण मुख्यमंत्री बने हुए हैं, अन्यथा जनता में उनके प्रति वैसा विश्वास नहीं बचा है जैसा 2005 के वक्त हुआ करता था। साथ ही बिहार में युवा वोटरों का एक बहुत बड़ा वर्ग है जिसने लालू प्रसाद यादव के जंगलराज को नहीं देखा है। उसे अतीत नहीं केवल वर्तमान से मतलब है, और वर्तमान में नीतीश कुमार की छवि एक अकर्मण्य नेता की बनती जा रही है।
ऐसे में भाजपा जानती है कि चिराग पासवान को पूरी तरह दरकिनार करना एक रणनीतिक भूल होगी। साथ ही नीतीश कुमार के बजाए चिराग पासवान के साथ सहयोग करना भाजपा नेतृत्व के लिए अधिक आसान है। ऐसा इसलिए क्योंकि चिराग पासवान कई मामलों में नीतीश के बजाय वैचारिक रूप से भाजपा के अधिक करीब हैं, जबकि नीतीश की स्थिति कमजोर होती है तो भाजपा के ड्राइविंग सीट पर आने की संभावना अधिक है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भाजपा के सबसे चतुर नेताओं में एक, देवेंद्र फडणवीस को बिहार की कमान दी है। उनका ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि जल्द ही बिहार में NDA की उठापटक शांत हो सकती तथा गतिरोध खत्म हो सकता है।