भू-मध्य सागर में जब से ग्रीस-तुर्की के विवाद में फ्रांस ने कदम रखा है, तभी से तुर्की में असुरक्षा की भावना देखने को मिल रही है। सैन्य और आर्थिक ताकत के मामले में बेशक तुर्की ग्रीस पर भारी पड़ता हो, लेकिन ग्रीस के पास पूरे यूरोपियन यूनियन का समर्थन है। हाल ही में यूरोपियन यूनियन के विदेश मंत्रियों ने भू-मध्य सागर में घुसपैठ कर रहे कई तुर्क अधिकारियों पर प्रतिबंध भी लगाया था। अब ग्रीस के प्रधानमंत्री Kyriakos Mitsotakis ने तुर्की को धमकी देते हुए एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि अगर तुर्की जल्द ही भू-मध्य सागर में आक्रामक नीति अपनाने से बाज़ नहीं आता है, तो यूरोप उसपर प्रतिबंध लगा देगा। साथ ही फ्रांस और साइप्रस जैसे देश भी तुर्की पर लगातार प्रतिबंधों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि तुर्की की हरकतों को देखते हुए जल्द ही उसपर प्रतिबंधों का ऐलान किया जा सकता है।
तुर्की के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसने एक ही समय में यूरोप की कई बड़ी ताकतों के साथ पंगा ले लिया है। सिर्फ ग्रीस और फ्रांस ही नहीं, बल्कि साइप्रस और इटली जैसे देश भी समय-समय पर तुर्की के खिलाफ आक्रामकता के आरोप लगाते रहते हैं। साइप्रस के आरोपों के मुताबिक तुर्की उसकी जल सीमा में गैस और तेल के लिए ड्रिलिंग और रिसर्च का काम करता है। साइप्रस तो तुर्की से इतना चिढ़ा हुआ है कि उसने EU द्वारा बेलारूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को ब्लॉक कर दिया है, क्योंकि उसकी मांग है कि पहले तुर्की को Blacklist किया जाये।
उधर फ्रांस भी तुर्की पर प्रतिबंध लगाने के लिए EU को एकजुट करने में लगा है। फ्रांस ने गुरुवार को फ्रांस के Corsica द्वीपों पर Med-7 देशों की एक बैठक की। बैठक में फ्रांस और ग्रीस के साथ-साथ पुर्तगाल, स्पेन, साइप्रस, इटली और मालटा के नेता मौजूद रहे। यहाँ फ्रांस के राष्ट्रपति ने पूरे यूरोप को तुर्को को लेकर एक संगठित सोच विकसित करने की बात कही। उन्होंने कहा “हम यूरोपियन नेताओं को अब तुर्की पर “एक सोच” विकसित करनी होगी। जो लीबिया और भू-मध्य सागर में वह कर रहा है, उसके बाद वह हमारा साझेदार नहीं बचा है। उसके अस्वीकार्य बर्ताव के खिलाफ हमें अब एक्शन लेना ही होगा।” भू-मध्य सागर में फ्रांस पहले ही ग्रीस का खुला समर्थन कर चुका है, जिसके कारण तुर्की और फ्रांस के बीच भी जुबानी जंग देखने को मिल रही है।
हाल ही के बयान में तुर्की ने फ्रांस के राष्ट्रपति Macron को “घमंडी” और “औपनिवेशिक मानसिकता” से ग्रसित बताया है। तुर्की के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया “Macron अपने निजी एवं राष्ट्रवादी विचारों के कारण पूरे EU के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं।”
बता दें कि एक तरफ जहां EU के अधिकतर सदस्य तुर्की पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं तो वहीं जर्मनी बार-बार तुर्की से बातचीत करने पर ज़ोर दे रहा है। हालांकि, अब जब फ्रांस ने EU को एकजुट करने के लिए तुर्की के खिलाफ मुहिम छेड़ ही दी है, तो उसके बाद अब EU तुर्की को लेकर एक पेज पर आ सकता है। अगर एक बार तुर्की पर प्रतिबंध लग जाते हैं, तो उसकी पहले से ही खस्ता हो चुकी इकॉनमी के लिए यह बड़ा झटका साबित होगा और तुर्को को मजबूरन भू-मध्य सागर से अपने हाथ पीछे खींचने पड़ेंगे।
राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की लचर नीतियों के कारण इसी वर्ष अगस्त तक तुर्की की मुद्रा लीरा की कीमत में अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 19 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिल चुकी है, जो अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। देश में महंगाई बढ़ गयी है और बेरोजगारी रिकॉर्ड 12 प्रतिशत तक जा पहुंची है। इसी बीच इम्पोर्ट बढ़ने और GDP घटने से तुर्की का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है। इस साल कोरोना के बाद से ही तुर्की के सरकारी बैंक ने मंदी से बचने के लिए कई उपाय किए थे। उदाहरण के लिए बाज़ार में मांग बढ़ाने के लिए बैंकों ने सस्ते दरों पर कर्ज़ देना शुरू किया। मई में ब्याज दर को 12 प्रतिशत से घटाकर 8.25 प्रतिशत कर दिया गया था। इसके बाद पिछले तीन महीनों के दौरान तुर्की के consumer debt में 40 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला। ज़्यादा कर्ज़ दिये जाने की वजह से मार्केट में मांग बढ़ गयी, जिसके कारण महंगाई बढ़ गयी। जुलाई में तुर्की में महंगाई दर लगभग 12 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। इस वर्ष लीरा की गिरती कीमतों को संभालने के लिए देश का केंद्रीय बैंक 65 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है, लेकिन बढ़े हुए इम्पोर्ट्स और कम हुई GDP लीरा के दामों में कोई सुधार नहीं आने दे रही है।
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का ध्यान अभी इकॉनमी से ज़्यादा Geopolitics पर है, जहां वह फ्रांस, रूस और इजरायल जैसी बड़ी ताकतों के निशाने पर आ गए हैं। ऐसे समय में तुर्की के लिए यही अच्छा होगा कि वह भू-मध्य सागर, लीबिया और सीरिया में अपने कुकृत्यों को छोड़कर अपनी बर्बाद होती अर्थव्यवस्था पर ही ध्यान दे।