काफी हंगामे के बाद किसान बिल पारित हो चुका है और इसके जरिये केंद्र सरकार ने अपनी फसलों को बेचने के लिए किसानों को एक और विकल्प दे दिया है. परन्तु इस बिल को लेकर विपक्षी पार्टियों का हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा, यहाँ तक कि किसानों को गुमराह करने की भी भरपूर कोशिश की जा रही है। किसान इस बिल के खिलाफ खुलकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं परन्तु इस मुद्दे की गहराई में जाने के बाद पता चलता है कि इन बिलों का विरोध अधिकतर पंजाब और हरियाणा के अमीर किसान और बिचौलिये ही कर रहे हैं।
वास्तव में इन किसान बिलों के विरोध का कोई आधार ही नहीं है बल्कि एक राजनीतिक कारण है। ध्यान देने वाली बात यह है कि पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस है और उसने हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था। फिर भी पंजाब और हरियाणा में विरोध प्रदर्शन सबसे अधिक तीव्र क्यों हैं?
जिन राज्यों को हरित क्रांति से सबसे अधिक लाभ हुआ और जिनके पास देश के सबसे अमीर किसान हैं, जिसमें से तो कुछ करोड़पति भी हैं और जिन्हें टैक्स का भुगतान नहीं करना पड़ता, वो ही इन कृषि बिलों का विरोध कर रहे हैं। जबकि गरीब राज्यों जैसे बिहार के किसान इन बिलों से खुश हैं।
आखिर इसका कारण क्या है?
पहला कारण, कृषि पर मिलने वाली सब्सिडी है। सब्सिडी की मौजूदा प्रणाली में किसानों को बीज से लेकर खाद, बिजली उत्पादन तक, हर कदम पर सब्सिडी दी जाती है और इसकी लागत सरकार पर लगभग 5 लाख करोड़ रुपये (बिहार की जीडीपी के बराबर) पड़ती है। इस मौजूदा व्यवस्था से सबसे ज्यादा लाभान्वित बड़े किसान होते हैं जिनके पास भूमि अधिक है। भारत में लगभग 75 प्रतिशत किसान (4 में से 3) छोटे और सीमांत किसान हैं, और अब वे सरकार द्वारा लाए गये सुधारों से लाभान्वित होने वाले हैं।
बड़े किसानों के पास वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक पहुंच है जिसके माध्यम से वे सभी सब्सिडी का लाभ उठाने में सफल रहते है। उदाहरण के लिए, सिंचाई के लिए बिजली सब्सिडी को ही देख लीजिए, केवल बड़े किसान ही सिंचाई के लिए एक ट्यूबवेल स्थापित कर पाते हैं और छोटे किसान उन पर निर्भर रहते हैं और इसके साथ ही वो बड़े किसानों को ट्यूबवेल का उपयोग करने के लिए भुगतान भी करते हैं। ऐसे में बिजली सब्सिडी से लाभ सिर्फ और सिर्फ बड़े भूमि वाले किसान उठाते हैं। अमीर किसान नहीं चाहते कि छोटे किसान भी बराबरी पर आए और मिलने वाले सभी सब्सिडी का लाभ उठायें।
दूसरा कारण, MSP को ही देख लीजिए। यद्यपि सरकार ने वादा किया है कि MSP जारी रहेगा लेकिन फिर भी बड़े किसानों को राजनीतिक दलों द्वारा गुमराह किया जा रहा है कि सरकार इन बिलों के साथ एमएसपी को समाप्त कर रही है। यहाँ यह भी सच है कि न्यूनतम बिक्री मूल्य यानि MSP लाभ भी केवल बड़े किसान ही उठा पाते हैं।
बड़े किसान अपनी उपज सीधे भारतीय खाद्य निगम को बेचते हैं जबकि छोटे किसान इसे उन व्यापारियों के माध्यम से बेचते हैं जो उस उपज को FCI को बेचते हैं। भारत में अधिकांश छोटे किसानों के पास जमीन नहीं है, ये खेती मुख्यतः जमीन को पट्टे पर लेकर करते हैं । जमीन का रजिस्ट्रेशन खुद के नाम पर न होने के कारण छोटे किसान FCI को सीधे अनाज नहीं बेच पाते हैं जिससे उन्हें MSP का लाभ नहीं मिल पाता।
पंजाब और हरियाणा राज्य के किसान अमीर होते हैं, और वो ही MSP का लाभ सही तरीके से उठाते हैं, MSP पर कुल धन का 80 प्रतिशत इन राज्यों में खर्च किया जाता है. अब इस बिल के पारित होने के बाद MSP को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने झूठ फैलाया कि MSP प्रणाली ही खत्म कर दी जाएगी जिससे ये किसान भड़क गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे. अब नए बिलों के लागू हो जाने के बाद किसान इन बंधनों से मुक्त हो जाएगा। मौजूदा प्रणाली पंजाब और हरियाणा राज्य में मुट्ठी भर बड़े किसानों का समर्थन करती है, जबकि बाकी राज्यों के किसान भी इसके लिए भुगतान करते हैं। नए बिल छोटे किसानों को APMC के एकाधिकार से मुक्त करेगा, जिससे उन्हें उनकी फसलों की बेहतर कीमत मिल सकेगी ।
सरकार द्वारा पारित तीनों बिल किसानों को व्यापारियों, नौकरशाहों, राजनेताओं और सरकार के चंगुल से मुक्त करेगा, और उन्हें खुले बाजार में अपनी उपज बेचने वाले औद्योगिक और सेवा उत्पादकों के बराबर ला खड़ा करेगा।
इन बिलों के कानून बन जाने के बाद, किसान देश में कहीं भी उपज बेच सकेगा और APMC का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा। अब तक, एक किसान जो एक जिले में कुछ फसल का उत्पादन कर रहा है, वह उसकी उपज उसी जिले के APMC में बेच सकता था, जिसका सीधा अर्थ था स्थानीय राजनेताओं का APMC पर एकाधिकार।
एक राष्ट्रव्यापी बाजार के विकास से न केवल किसान, बल्कि उपभोक्ता भी लाभान्वित होंगे। शहरों में गेहूं, चावल या दाल की कीमत गाँवों की तुलना में दो से तीन गुना अधिक है, लेकिन एक बार देशव्यापी बाजार विकसित हो जाने के बाद, पूरे देश में कीमतें काफी हद तक एक जैसी होंगी।
इसके अलावा, किसानों को न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा – जो कि पुराने सिस्टम में अधिकांश फसलों के लिए अधिकतम मूल्य पर बिक्री मूल्य बन चुका था।
MSP व्यापारियों और बड़े किसानों को ही लाभ पहुंचाता है, न कि छोटे और गरीब लोगों को। यही कारण है कि देश भर में अमीर किसान राजनीतिक पार्टियों के धुन पर इन कृषि बिलों का विरोध कर रहे हैं। करें भी क्यों न ऐसे व्यापारियों और बिचौलियों से इन पार्टियों को अब मलाई खाने का मौका नहीं मिल सकेगा।