भाग्य ने राज ठाकरे को Comeback करने का सुनहरा मौका दिया, उन्होंने इसे बर्बाद करने में ही भलाई समझी

उद्धव की हार राज ठाकरे की जीत बन सकती थी, लेकिन राज ठाकरे सोते रह गए

राज ठाकरे

जब आपके सामने एक ऐसा अवसर आए, जिससे आप सफलता के नए आयाम छूने लगे, और आप उसे जाने दें, तो आप उसे क्या कहेंगे? कुछ ऐसी ही गलती राज ठाकरे के हाथ से हुई हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के वर्तमान समीकरण को देखते हुए राज ठाकरे बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों को आत्मसात कर उद्धव ठाकरे को उनकी वास्तविक जगह दिखा सकते थे, परंतु उन्होंने न जाने क्यों इस सुनहरे अवसर को अपने हाथ से फिसल जाने दिया।

इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति बंगाल की राजनीति से अधिक भिन्न नहीं है। दोनों जगह गुंडों और अपराधियों का बोलबाला है। महाराष्ट्र में जहां कंगना रनौत को शिवसेना द्वारा गालियों और धमकियों के अलावा बीएमसी द्वारा तोड़फोड़ का सामना करना पड़ा, तो वहीं नौसेना के पूर्व अधिकारी मदन शर्मा को उद्धव ठाकरे से संबन्धित एक व्यंग्यात्मक कार्टून शेयर करने पर शिव सेना के गुंडों ने न सिर्फ पीटा, बल्कि शिवसेना के शीर्ष नेताओं ने पार्टी मुखपत्र सामना के जरिये उन्हें अपमानित भी करने का प्रयास किया।

ऐसे में राज ठाकरे का क्या काम? दरअसल, मराठी मानूष और हिन्दुत्व पर इस समय महाराष्ट्र में शिवसेना का एकाधिकार है, और जनवरी में जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का नवीनीकरण हुआ, तो राज ठाकरे ने अप्रत्यक्ष रूप में महाराष्ट्र को एक बेहतर राजनीतिक विकल्प देने का वादा किया। राज ठाकरे ने ये ऐसे समय पर कहा था, जब सीएए के विरोध के नाम पर कांग्रेस पार्टी ने सरेआम विनायक दामोदर सावरकर को अपमानित किया, और शिवसेना ने खुलकर विरोध भी नहीं किया।

हालांकि, राज ठाकरे वहीं पे नहीं रुके थे। सीएए के समर्थन में उन्होंने एक विशाल रैली का आयोजन करते हुए सार्वजनिक मंच से कहा कि वो पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए एनडीए के समर्थन में हैं। उन्होंने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को सख्त चेतावनी देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ‘मोर्चे का उत्तर मोर्चे से दिया गया है लेकिन आगे पत्थर का जवाब पत्थर से और तलवार का जवाब तलवार से दिया जाएगा’।

ऐसे में महाराष्ट्र के वर्तमान समीकरण राज ठाकरे के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं था। यदि राज ठाकरे इस समय खुलकर महा विकास अघाड़ी सरकार के विरुद्ध मोर्चा संभालते, और कंगना रनौत एवं मदन शर्मा को न्याय दिलाने का आश्वासन भी देते, तो महाराष्ट्र के मराठी समुदाय के लिए एक बेहतर विकल्प भी प्रस्तुत होता, और राज ठाकरे के पास अपने आपको बालासाहेब ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी के रूप में सिद्ध करने का एक बेहतरीन अवसर भी मिलता। लेकिन ऐसा न करके उन्होंने एक बेहद सुनहरे अवसर को अपने हाथ से फिसल जाने दिया, और ऐसे में अब Raj Thackeray के लिए आगे की राह इतनी भी आसान नहीं होगी।

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