खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले भारतीय खाद्य निगम पूर्ण रूप से अपनी अक्षम कार्यशैली के लिए जाना जाता है। नुकसान से लेकर भ्रष्टाचार और बर्बादी के सारे खिताब इसके नाम हैं। इसके अंतर्गत 22,000 से अधिक लोग और कई लोगों को अनुबंध पर नियुक्त करता है, लेकिन इसका लाभ कभी किसी को समझ ही नहीं आया। सरकार क़ृषि बिलों के जरिए आंशिक रूप से कदम तो उठा रही, लेकिन ये कदम कितने फायदेमंद होंगे ये कहना मुश्किल है।
सरकार के लिए समस्या
सन 1965 में गठित हुआ एफसीआई अब सरकार के लिए एक घाटे का सौदा बनकर रह गया है। इसके जरिए सरकार हर वर्ष एमएसपी पर क़ृषि उपज की खरीद और सब्सिडी के मूल्य पर उसका वितरण करने के लिए अरबों डॉलर का खर्च करती है। 2020 में इसका खाद्दान स्टॉक आवश्यकता से करीब ढाई गुना अधिक था जो कि पंजाब के सालाना बजट के करीब 1.5 लाख करोड़ के बराबर का है। एफसीआई ने पीएसबी से अनाज को एमएसपी पर खरीदने और रियायती मूल्य पर बेचने के लिए जो पैसा लिया था सरकार को अभी उसका बकाया करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए चुकाना है।
दिवालिया हो जाएगी सरकार
एफसीआई जिस तरह से लगातार एक-के- बाद-एक मुसीबतों में घिरता जा रहा है उसे देखकर लगाता है कि यदि सरकार इसके सारे मामलों को खत्म करने पर ध्यान देगी तो पूर्ण रूप से दिवालिया ही हो जाएगी। क़ृषि से जुड़े तीन बिलों के जरिए सरकार ने एफसीआई की मुसीबतों को खत्म करने की कोशिश की है। अब जब कृषि क्षेत्र एपीएमसी और मंडी से जुड़े नियमों से पूरी तरह स्वतंत्र हो जाएगा तो फिर किसानों को एक बड़ी राहत मिलेगी। किसान अपनी उपज देश में अधिक मूल्य के आधार पर कहीं भी बेच सकेंगे।
सरकार के इस निर्णय के बाद किसान जब अपनी उपज निजी क्षेत्र में बेचेगा तो उसे अधिक दाम मिलेगा। जिससे वो एफसीआई में उपज बेचना बंद करेंगे। इसके चलते 2.5 गुना ज्यादा होने वाला एफसीआई का स्टॉक कम होगा। इस कारण निजी निवेश के चलते परिवहन और भंडारण के कार्यों में सुधार होगा। जिससे लागत का 20 प्रतिशत खर्च करने वाले एफसीआई को सकारात्मकता के साथ फायदा होगा। जब परिष्कृत बाजार में परिवर्तन होते हैं और उसके चलते निजी क्षेत्र से निवेश आता है। तो उत्पादन की कीमतें जाहिर है कि अपने आप ही न्यूनतम विक्रय मूल्य यानी एमएसपी से अधिक हो जाएंगी। अभी तक की स्थिति को देखते हुए क़ृषि अर्थशास्त्री के शब्दों में कहा जा सकता है कि, “न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकतम समर्थन मूल्य बन गया है।”
सरकार के इस निर्णय के बाद किसान जब अपनी उपज निजी क्षेत्र में बेचेगा तो उसे अधिक दाम मिलेगा। जिससे वो एफसीआई में उपज बेचना बंद करेंगे। इसके चलते 2.5 गुना ज्यादा होने वाला एफसीआई का स्टॉक कम होगा। इस कारण निजी निवेश के चलते परिवहन और भंडारण के कार्यों में सुधार होगा। जिससे लागत का 20 प्रतिशत खर्च करने वाले एफसीआई को सकारात्मकता के साथ फायदा होगा।
खत्म हों सब्सिडी
सरकार अपने तीन क़ृषि बिलों के जरिए एफसीआई में सुधार की बात कह रही है लेकिन क़ृषि मंत्री ने साफ कह दिया है कि इसमें एमएसपी रहेगा। जिससे ये साबित होती है कि प्रत्येक सार्वजनिक क्षेत्र की तरह ही इसमें भी अक्षमता, भ्रष्टाचार और बर्बादी जारी रहेगी। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि जब तक सरकार एमएसपी के बिजनेस को खत्म नहीं करती तब तक एफसीआई की अक्षमता यूं ही जारी रहेगी। क़ृषि क्षेत्र में लगने वाली बिजली, पानी, बीज सभी पर सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है। सरकार को एमएसपी को खत्म करने के साथ ही इनपुट के छोर से सब्सिडी खत्म करनी चाहिए। साथ ही जीडीपी का लगभग 5 प्रतिशत हिस्सा देश के सबसे गरीब लोगों को डीबीटी के माध्यम से देना चाहिए चाहे वो कृषि से जुड़े हो या नहीं।
सरकार द्वारा कृषि को भी इकॉनमी के किसी अन्य क्षेत्र की तरह ही देखना चाहिए सरकार को इसके लिए सुधार को लेकर जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना चाहिए, यह नहीं कि बेवजह देश के कर दाताओं के पैसों को सिब्सिडी के नाम पर यूं ही बर्बाद किया जाए जिससे भ्रष्टाचार से सार्वजनिक क्षेत्र में अक्षमता की बढ़ोतरी हो।