एक समय था जब मलेशिया भारत को खुलेआम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपमानित करता था, और पाकिस्तान एवं तुर्की के साथ मिलकर इस्लामिक जगत में सऊदी अरब के वर्चस्व को खुलेआम चुनौती देता था। लेकिन समय और भाग्य बदलते देर नहीं लगती, और आज स्थिति ठीक उलट है। अब मलेशिया न केवल कश्मीर के विषय पर चुप्पी साधे हुए है, अपितु आतंक को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान पर अप्रत्यक्ष तौर पर निशाना साधने से भी नहीं चुकता, जिसके पीछे नए मलेशियाई पीएम मुहयुद्दीन यासीन का बहुत बड़ा हाथ है।
दरअसल, सबकी आँखें मलेशियाई प्रधानमंत्री मुहयुद्दीन यासीन की ओर थी, जो यूएन की आम सभा को संबोधित करने वाले थे। भारत भी मलेशियाई प्रधानमंत्री के विचारों के लिए उत्सुक था, क्योंकि उनसे पहले जो मलेशिया के प्रधानमंत्री थे [महातिर मोहम्मद], उनके यूएन में बड़बोलेपन के कारण ही भारत और मलेशिया के सम्बन्धों में कई महीनों तक खटास रही थी। सभी के आशाओं के अनुरूप मुहयुद्दीन ने अपने सम्बोधन में कश्मीर के मुद्दे से न सिर्फ दूरी बनाई, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान पर आतंक को बढ़ावा देने के लिए निशाना भी साधा।
मुहयुद्दीन के सम्बोधन के अनुसार, “हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे कष्टकारी समय [वुहान वायरस की महामारी] में भी कुछ आतंकी गुट ऐसे हैं, जो महामारी का लाभ उठाते हुए अपने कुत्सित एजेंडा को बढ़ावा देना चाहते हैं।” इसी को कहते हैं, बिना हाथ लगाए ज़बरदस्त चांटा लगाना। मुहयुद्दीन यासीन न केवल कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को ठेंगा दिखाया, बल्कि बिना उसका नाम लिए उसकी असल औकात भी दुनिया के सामने दिखाई –
Malaysia PM Muhyiddin Yassin goes silent on Kashmir, reverses Mahathir Mohamad’s stand
अब पाकिस्तान के पास तुर्की के अलावा यूएन में कश्मीर के मुद्दे पर किसी का समर्थन नहीं प्राप्त है। कश्मीर पर पाकिस्तान को समर्थन देकर जिस प्रकार से पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने मलेशिया की किरकिरी कराई थी, उससे हुए नुकसान और भारत और मलेशिया के सम्बन्धों में उमड़ी खाई को पाटने के लिए मुहयुद्दीन यासीन अब एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।
परंतु महातिर ने ऐसा क्या बोला था जिससे भारत और मलेशिया के सम्बन्धों में दरार आई थी? दरअसल, महातिर ने पिछले वर्ष यूएन की आम सभा में कश्मीर से अनुच्छेद 370 संबंधी विशेषाधिकारों के हटाये जाने पर भारत की निंदा करते हुए कहा था, “यूएन द्वारा जम्मू एवं कश्मीर पर प्रस्ताव पारित करने के बावजूद उसपर आक्रमण किया गया और उसपर [भारत द्वारा] कब्जा जमाया गया था।” इतना ही नहीं, महातिर ने सीएए का भी विरोध करते हुए इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता पर प्रहार जताने का प्रयास किया था, जिसके कारण न केवल भारत और मलेशिया के सम्बन्धों में खटास आई, अपितु मलेशियाई अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ा।
अब जब अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकारों को निरस्त हुए एक वर्ष से अधिक हो चुका है, तो जहां जम्मू एवं कश्मीर के विषय पर पाकिस्तान और तुर्की अभी भी विष उगलने से बाज़ नहीं आते, तो वहीं मलेशिया के नए प्रधानमंत्री ने कश्मीर के मुद्दे पर चुप्पी साधना ही उचित समझा है।
इसके अलावा मुहयुद्दीन यासीन ने इस बात को जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि वे भारत से मलेशिया के संबंध सुधारने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं। यासीन के कैबिनेट के एक अहम सदस्य माने जाने वाले वी का सियोंग ने जताया था कि यासीन के सत्ता ग्रहण करते ही मलेशिया भारत से अपने संबंध सुधारने की ओर पहल करेगा।
उन्होंने कहा कि भारत के साथ संबंध सुधारना मलेशिया के लिए आवश्यक है, क्योंकि भारत द्वारा तब पाम ऑइल के आयात पर लगी रोक ने मलेशिया के अर्थव्यवस्था के लिए काफी मुसीबतें खड़ी कर दी थी। रॉयटर्स से बातचीत के अनुसार वी का सिओंग ने कहा, “क्या हम संबंध बहाल नहीं कर सकते? ये हमारे और हमारे देश के लिए है। चूंकि हमारी सरकार नई है, इसलिए ये डील हमारे पीएम करेंगे। हमें भारत के साथ अपनी मित्रता बहुत प्यारी है।” सच कहें तो सऊदी अरब और यूएई के पश्चात अब पाकिस्तान ने मलेशिया के रूप में एक और ‘मित्र’ खो दिया है, क्योंकि इस समय तुर्की और चीन को छोड़ कोई भी भारत से फालतू में पंगा नहीं लेना चाहता।