के. कामराज से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी तक कांग्रेस का इतिहास रहा है कि कैसे पार्टी में परिवार के दखल के लिए बाहरी नेताओं को या तो गुलाम बना लिया जाए या फिर उन्हें साइड लाइन किया जाए। ताजा मामला 23 नेताओं के चिट्ठी कांड से संबंधित है जिस पर हस्ताक्षर करने वाले लगभग सभी नेता साइड लाइन कर दिए गए हैं और कुछ वैसा ही पार्टी के बड़े कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद के साथ भी हुआ है, अब इस पूरे प्रकरण के बाद उनका दर्द छलक आया है। उनके दो शब्दों ने जाहिर कर दिया कि वो अब पार्टी में कहीं नहीं हैं।
ये मेरा आखिरी भाषण…
दरअसल, राज्यसभा में कृषि बिल के दौरान नेता विपक्ष के तौर पर कांग्रेस की तरफ से नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘शायद ये मेरा आखिरी भाषण हो और कोविड के कारण पता नहीं संसद कब चलेगी नहीं पता…पांच महीने बचे हैं मेरे कार्यकाल को।’ उनके इन चंद शब्दों ने बता दिया कि पार्टी में उनको साइड लाइन कर दिया गया है और उन्हें खुद संदेह है कि पार्टी उन्हें एक बार फिर राज्यसभा भेजेगी भी या नहीं। इसके पीछे उनकी बगावत का भी बड़ा हाथ रहा है जिसके चलते पार्टी आलाकमान उनसे खफा है।
बगावत का मिलेगा फल
दरअसल, कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की मांग को लेकर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 सांसदों में गुलाम नबी आजाद भी थे। कपिल सिब्बल तक पार्टी में कुछ ठीक न होने की बात पर हामी भरते नजर आए और उनके ट्वीट फिर डिलीट होना सभी ने देखा। इस पूरे प्रकरण में गुलाम नबी आजाद को उनकी मुखरता सबसे ज्यादा भारी पड़ी।
आजाद ने कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनावों की बात कही थी । उन्होंने कहा था, “चुनाव से यह लाभ होता है कि कम से कम पार्टी आपके समर्थन में होती है। अभी अध्यक्ष बनने वाले व्यक्ति के पास 1 % भी समर्थन नहीं होता। अगर CWC सदस्य चुने जाते हैं, तो उन्हें हटाया नहीं जा सकता, इसमें समस्या कहां है। वर्किंग कमेटी, प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष के चुनाव होने चाहिए। पार्टी के ढुलमुल रवैए को लेकर आजाद ने बगावत इतनी ज्यादा कर दी कि बीजेपी के लिए उन्होंने कहा, “अगर पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं होते, तो कांग्रेस को 50 सालों तक विपक्ष में बैठना होगा।”
अब जब इतनी बगावत की थी तो अंजाम तो बुरा होना ही था जिसके चलते उनसे कांग्रेस महासचिव का पद छीन लिया गया अब उनके पास पार्टी में कोई पद नहीं है। हरियाणा राज्य के प्रभारी पद से भी उनकी छुट्टी कर दी गई है। इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा फायदा राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला को मिला, जो पार्टी के महासचिव और अध्यक्ष को सलाह देने वाली 6 सदस्यीय समिति में शामिल हो गए हैं। दूसरी ओर पार्टी के परिवारवादी भविष्य यानी राहुल गांधी का। चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर आग बबूला होना आजाद के लिए साफ संकेत ही है कि उन्हें कांग्रेस के मार्गदर्शक मंडल में जगह मिलना भी मुश्किल है।
असमंजस में हैं आजाद
गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद उनका राजनीतिक करियर कहां तक जाएगा, इसको लेकर वो खुद असमंजस में हैं। राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेता आ गए हैं। यकीनन आजाद के सामने खड़गे का कद छोटा है। लेकिन जैसा पार्टी का इतिहास रहा है कि वो परिवार को श्रेष्ठ साबित करने के लिए कद्दावर नेताओं की बलि चढ़ा देती है। ठीक उसी प्रकार कांग्रेस आजाद की बगावत के लिए मुमकिन है कि उन्हें राज्यसभा न ही भेजे और नेता विपक्ष का पद भी छीन ले।
वहीं राज्यसभा में पीएल पुनिया जैसे चाटुकार नेता का कार्यकाल नवंबर में खत्म हो रहा है। ऐसे में संभावनाएं हैं कि गांधी परिवार के कद्दावर नेता पीएल पुनिया को प्राथमिकता दी जाए। दूसरी ओर पार्टी के पास इतने राज्यों में सरकारें भी नहीं हैं कि वो आजाद को राज्यसभा पहुंचा पाए क्योंकि जम्मू-कश्मीर से आने वाले आजाद के राज्य में विधानसभा ही भंग हो चुकी है। नरसिम्हा राव से लेकर मनमोहन सरकार तक में कैबिनेट मंत्री रहे आजाद के साथ अब सारा खेल प्राथमिकताओं का होगा जिसमें मुश्किलें केवल उन्हीं की बढ़ेंगी।
शुरू से ही गांधी परिवार के वफादार रहे गुलाम नबी आजाद ने आख़िर भाषण का जिक्र करके लगभग साफ कर दिया है कि उन्हें पार्टी में बगावत का दंड मिल चुका है और आगे भी मिलता रहेगा। भले ही वो बगावत पार्टीहित के लिए ही क्यों न हो।