हर व्यक्ति के करियर की एक निश्चित सीमा होती है, और करियर के खत्म होने से पहले हर व्यक्ति चाहता है कि जब वह सन्यास ले, तो लोग उस व्यक्ति को उसकी उपलब्धियों के लिए अधिक याद रखें। कुछ ऐसे ही विचार हैं जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के, जो 2021 में सेवानिर्वृत्ति लेने से पहले अपनी छवि मजबूत करके इस पद छोड़ना चाहती हैं।
अभी हाल ही में EU ने चीन के साथ व्यापार पर बातचीत के लिए एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की थी। परंतु दरअसल, इस वीडियो कॉन्फ्रेंस के निर्णय के जरिये ईयू ने चीन को उसकी औकात बताई। चीन को यह संदेश दिया गया है कि अब किसी भी समझौते में उसकी दादागिरी नहीं चलेगी। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल के अनुसार ईयू चीन के साथ तभी गर्मजोशी से व्यापार कर पाएगा जब चीन इस बात का आश्वासन दे कि वह अपने बाज़ार को और उदार बनाएगा, अपने अल्पसंख्यकों को सम्मान देगा और हाँग काँग की जनता पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के नाम पर अत्याचार नहीं करेगा। चार्ल्स मिशेल ने स्पष्ट बताया है कि EU को समझना होगा कि उनके और चीन के विचार एक समान नहीं है, और यूरोप साझेदारी के लिए भले ही इच्छुक है, पर वह चीन का प्लेग्राउंड नहीं बनना चाहता है।
परंतु ऐसा बदलाव जर्मनी में कब और कैसे आया? दरअसल,एंजेला मर्केल जल्द ही रिटायर होने वाली हैं, और वह चाहती हैं कि जाने से पहले वह कुछ नाम करके जाये। इसी जुगत में उन्होंने अमेरिका से पंगा मोल लेते हुए चीन को अपना समर्थन देना जारी रखा, और ईयू को चीन का दास दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब उनसे पूछा गया कि क्या चीन उनके मानवाधिकार संबंधी समस्याओं का निवारण कर पाएगा, तो मर्केल ने स्पष्ट कहा, “हम देखते हैं कि क्या हो सकता है?” इसके अलावा जब उनसे पूछा गया कि उनका चीन द्वारा ईयू के सदस्यों को शिंजियांग का दौरा कराने पर क्या विचार है, तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया, “चीन के प्रस्ताव का अर्थ यह तो नहीं है कि हम उनकी बातों का समर्थन करते हैं”।
पर जब चीन ने अपने वैचारिक मित्र माने जाने वाले रूस तक को आँखें दिखाई और उसके क्षेत्र पर दावा करने की हिमाकत की, तो भला जर्मनी की क्या बिसात? इसके अलावा चीन ने अपनी औकात दिखाते हुए हाल ही में अफ्रीकी स्वाईन बुखार का हवाला देकर जर्मनी से सूअर के मांस यानि पोर्क के आयात पर रोक लगा दी है। ऐसे में ईयू, और विशेषकर जर्मनी अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारकर चीन के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहेगा।
ऐसे में एंजेला मर्केल ये बात भली भांति समझ गई कि साँप को चाहे जितना दूध पिलाओ, वह डसना नहीं छोड़ेगा। इसीलिए पिछले कुछ हफ्तों से जर्मनी के स्वभाव में ज़मीन आसमान का अंतर आ चुका है, और शायद इसीलिए जर्मन विदेश मंत्री हीको मास ने भी जर्मनी के स्वभाव के विपरीत जाते चीनी विदेश मंत्री को उसके घमंडी स्वभाव के लिए खरी खोटी भी सुनाई। यूरोप के दौरे पर आए विदेश मंत्री वांग यी ने जर्मनी में अपने व्याख्यान में चेक गणराज्य को ताइवान के दौरे के लिए अपने राजनीतिज्ञ पर धमकियां दी, जिससे हीको मास बुरी तरह भड़क गए, और उन्होंने चीनी विदेश मंत्री को अपने हद में रहने की सलाह दी।
इसके अलावा जिस प्रकार से अभी ईयू ने अपने स्वभाव के विपरीत आक्रामकता दिखाई है, उसमें स्पष्ट रूप से एंजेला मर्केल की छाप नज़र आती है। वह अभी भी अमेरिका को ज्यादा महत्व नहीं देतीं, परंतु अब वह ये भी नहीं चाहती कि उन्हें चीन के चाटुकार के रूप में याद किया जाये। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल कर एंजेला मर्केल अपने लिए एक सुनहरा रिटायरमेंट चाहती हैं।