चीन की औपनिवेशिक मानसिकता सर्वविदित है, और अब उसे अफगानिस्तान के रूप में एक नया शिकार मिल रहा है। चूंकि पाकिस्तान ने चीन को अफगानिस्तान की राह दिखाई, इसलिए चीन को लगा कि खनिज पदार्थों से सम्पन्न इस देश को लूटने का इससे सुनहरा मौका तो फिर नहीं मिलने वाला। लेकिन भारत यूं ही हाथ पर हाथ धारा बैठा अफगानिस्तान का शोषण नहीं देखने वाला। अब भारत ने अफगानिस्तान को चीन और पाकिस्तान के दोहरे प्रकोप से मुक्त करने के लिए कमर कस ली है।
चीन का अफगानिस्तान पर किसी प्रकार का वैधानिक अधिकार नहीं है, और इसीलिए वह पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर अपना निशाना साधता है। वहीं भारत ने न केवल अफगानिस्तान की रक्षा की है, अपितु उसकी पुनर्स्थापना में काफी हद तक मदद की है। इसीलिए भारत अफगानिस्तान के शांति समझौते में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है, ताकि काबुल पर चीन और पाकिस्तान की पकड़ मजबूत न होने पाये।
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने दोहा में हो रहे अफगान शांति समझौते में बतौर विशिष्ट अतिथि हिस्सा लिया, जहां उन्होंने ये भरोसा दिलाया कि भारत अफगानिस्तान की हरसंभव सहायता करेगा, और वहीं, बिना तालिबान का नाम लिए उसे एक स्पष्ट संदेश भी भेजा। तालिबान को उसकी असली जगह बताते हुए भारत ने एक ही तीर से चीन और पाकिस्तान दोनों को ही उनकी औकात दिखा दी।
जब से अमेरिका ने अफगानिस्तान से हाथ पीछे खींचे है, भारत ने अफगानिस्तान की देखरेख का जिम्मा संभाल लिया। एस जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए जैसा कि भारत हमेशा से चाहता है। उन्होंने ये भी इशारा किया कि भारत केवल सुझाव नहीं दे रहा बल्कि तालिबान को सख्त चेतवानी दे रहा है कि कायदे में रहोगे तो फ़ायदे में रहोगे।
तालिबान आज भले ही शांति का राग अलाप रहा हो, परंतु कई वर्षों पहले वह एक दुर्दांत आतंकी गुट था, जिसने अफ़गानिस्तान से लेकर अमेरिका तक की नाक में दम कर रखा था। तालिबान के पाकिस्तान के साथ काफी गहरे संबंध हैं, और ऐसे में किसी को कोई हैरानी नहीं होगी अगर तालिबान अपनी ज़ुबान से मुकर जाये और एक बार फिर पुराने ढर्रे पर लौट आए। ऐसे में एस जयशंकर ने स्पष्ट संदेश दिया है कि नई दिल्ली महज सुझाव नहीं दे रही है, बल्कि तालिबान को स्पष्ट रूप से कह रही है कि वह अल्पसंख्यकों पर हमला करने, महिलाओं को पीड़ा देने और युद्ध-ग्रस्त देश पर ‘शरिया कानून लागू’ करने की हिमाकत न करे। बता दें कि अफगानिस्तान भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, ऐसे में ‘इंट्रा-अफगान’शांति वार्ता से पहले भारत का ये रुख काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
वहीं चीन पाकिस्तान के सहारे अफगानिस्तान में घुसना चाहता है, ताकि वह अफगानिस्तान में बेहिसाब लूटपाट कर सके। लेकिन चीन के संबंध भारत जितने मजबूत तो नहीं है, जो वह अफगानिस्तान को अपने जाल में फंसा सके। भारत ने जिस प्रकार से अफगानिस्तान की पुनर्स्थापना में सहायता की है, उससे दोनों देशों के बीच के संबंध काफी मजबूत हो चुके हैं, और इसीलिए अब भारत खुलकर तालिबान को चेतावनी भी दे सकता है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो अफ़ग़ानिस्तान को अस्थिर करने वालों के खिलाफ चुप नहीं बैठेगा
चीन बीआरआई के जरिये अफगानिस्तान में घुसपैठ करना चाहता था, परंतु उसका अपना CPEC ही बलूच क्रांतिकारियों के कारण खतरे में पड़ चुका है, और ऐसे में अब अफगानिस्तान में चीन का कम, और भारत का पलड़ा ज़्यादा भारी दिखाई पड़ता है। यदि सब कुछ सही रहा, तो अफगानिस्तान एक दिन चीन और पाकिस्तान के प्रकोप से पूर्णतया मुक्त भी हो सकता है।