प्रिया रमानी का नाम याद है आप लोगों को? हाँ वही जिसने सोशल मीडिया और विशेष रूप से ट्विटर पर चले ‘मी टू अभियान’ के दौरान तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री मुबाशिर जावेद अकबर पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे? अब ये बात सामने आई है कि प्रिया के पास इस घटना को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य था ही नहीं, और उसने यह मुकदमा ‘जनहित’ में दायर किया था।
जी हाँ, आपने ठीक सुना। पत्रकार प्रिया रमानी ने न्यायालय में एम जे अकबर द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे की सुनवाई के दौरान इस बात को स्वीकारा कि उनके पास अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है, और उन्होंने एमजे अकबर के विरुद्ध यौन शोषण के आरोप जनहित में लगाए थे। वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेक्का जॉन [जो कोर्ट में रमानी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं] ने न्यायालय के समक्ष दिये गए अपने बयान में कहा कि प्रिया रमानी के जो ट्वीट्स हैं, और जो उन्होंने वोग मैगज़ीन में लेख लिखा, वही सत्य है।
बता दें कि 2018 में जब मी टू मूवमेंट ने भारत में पैर जमाना शुरू किया था, तब पत्रकार प्रिया रमानी ने एम जे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। उनके साथ अंग्रेज़ी पत्रकार रूथ डेविड, सीएनएन पत्रकार मेज़ली डे पुय कैम्प, एवं गजला वहाब, सुपर्णा शर्मा इत्यादि ने भी एम जे अकबर पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। बदले में एम जे अकबर ने इन आरोपों को बकवास और बेबुनियाद बताते हुए प्रिया रमानी के विरुद्ध प्रमुख तौर पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था।
परंतु प्रिया की अधिवक्ता ने हाल ही में कोर्ट के समक्ष जो बयान दिया है, उससे अब भारत के मी टू मूवमेंट पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। मी टू मूवमेंट के अंतर्गत कई प्रचलित हस्तियों के विरुद्ध आरोप लगाए गए थे, जिनमें साजिद खान, सुभाष घई, उत्सव चक्रवर्ती, सुशांत सिंह राजपूत, चेतन भगतजैसी हस्तीयां शामिल थीं। जहां साजिद खान के विरुद्ध आरोप सच निकले, तो वहीं सुशांत और चेतन ने अपने विरुद्ध लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए अपने आप को निर्दोष सिद्ध किया।
हालांकि, उत्सव चक्रवर्ती को न्याय के लिए लगभग डेढ़ वर्ष का इंतज़ार करना पड़ा, क्योंकि उसपर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली आर्टिस्ट महिमा कुकरेजा की एक ऑडियो क्लिप में पोल खुली, जहां उसने उत्सव पर मुकदमा हटाने के बदले एक मोटी रकम वसूलने की बात कही। ऐसे में अब प्रिया रमानी की पोल खुलने के साथ ही अब मी टू मूवमेंट पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लग चुका है, जो यौन शोषण की वास्तविक पीड़िताओं के लिए काफी तकलीफदेह होगा।