चीन की वैश्विक गुंडई मानो थमने का नाम नहीं ले रही है, और ऐसे में हर देश अपने आप को चीन के तानाशाही मंसूबों से सुरक्षित रखने के लिए सब कुछ तैयार कर रहा है। नए जापानी प्रधानमंत्री योशिहीदे सुगा के नेतृत्व में जापान इस बार का सबसे बड़ा रक्षा बजट तैयार कर रहा है, जिसका मूल्य सरकारी सूत्रों के अनुसार लगभग 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि 5.4 ट्रिलियन जापानी येन होगा। जापान ने ये निर्णय निस्संदेह चीन की बढ़ती गुंडई को ध्यान में रखते हुए किया, और ऐसे में जापान आक्रामक रक्षा नीति अपनाने से पीछे नहीं हटेगा।
जापान टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, बजट को बढ़ाने की यह प्रक्रिया सितंबर के अंत तक आधिकारिक रूप से संसद में पेश होगी, जिसमें शिंजों आबे द्वारा अत्याधुनिक एलेक्ट्रोनिक युद्धनीति के लिए एक विशेष यूनिट का गठन होगा। इसके अलावा जापानी सरकार जापान द्वारा पाँचवी जेनरेशन के फाइटर जेट्स को विकसित करने के लिए विशेष रूप से वित्तीय सहायता देगा, जिनहे 2035 तक जापान की सेवा में प्रस्तुत किया जाएगा। इससे स्पष्ट पता चलता है कि नए जापानी प्रधानमंत्री भी शिंजों आबे की नीति पर चलते हुए जापान को एक शान्तिप्रिय, पर युद्ध थोपे जाने पर एक आक्रामक राष्ट्र के तौर पर तराशना चाहते हैं।
रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी ऐसे समय में की गई है, जब जापान चीन के विरुद्ध अपनी लड़ाई को आगे ले जाने के लिए हरसंभव प्रयास करने को प्रतिबद्ध है। जैसा कि रक्षा मंत्री नोबुओ किशी ने बताया, “शत्रु के सैन्य बेस को मिसाइल के लॉंच होने से पहले ध्वस्त करने की क्षमता को विकसित करना हमारे राष्ट्र के लिए अत्यंत आवश्यक है।” यह बयान उत्तरी कोरिया के मिसाइल प्रोग्राम के परिप्रेक्ष्य में कहा गया था, जिससे निपटने के लिए जापान अपनी मिसाइल प्रतिरोधक क्षमता को और मजबूत करना चाहता है।
दरअसल, जापान इस तरह के ताबड़तोड़ निर्णय इसलिए ले रहा है, क्योंकि वुहान वायरस की आड़ में चीन एशिया के भौगोलिक और राजनीतिक समीकरणों में बदलाव लाना चाहता है, जो वैश्विक शांति के लिए अत्यंत हानिकारक होगा। ऊपर से चीन की औपनिवेशिक मानसिकता के कारण जापान को न चाहते हुए भी अपने आक्रामक स्वरूप को पुनः जागृत करना पड़ा है।
जापान इस समय चीन से प्रमुख तौर पर पूर्वी चीन सागर में चीन की हेकड़ी को लेकर भिड़ रहा है। जब से चीन ने जापान के विशेष आर्थिक ज़ोन में घुसपैठ की है, और सेंकाकू द्वीप पर अपना दावा ठोंका है, जापान को भी चीन के विरुद्ध आक्रामक होना पड़ा है। टोक्यो के अंतर्राष्ट्रीय ईसाई विश्वविद्यालय के सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर स्टीफन नागी के अनुसार, “रक्षा मंत्रालय द्वारा रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी की मांग इस बात को सिद्ध करती है कि जापान किस प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है और कैसे वह इन चुनौतियों से निपटना चाहता है।”
इसके अलावा रक्षा मंत्री किशी दक्षिण कोरिया से अपने संबंध सुधारने को लेके काफी आशान्वित है। उनके अनुसार, “मैं आशा करता हूँ कि जल्द ही दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका के रक्षा मंत्रियों में समस्याओं के समाधान हेतु बातचीत प्रारम्भ होगी।”
जापान के रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी इस बात का परिचायक है कि अब जापान आने वाले किसी खतरे को लेकर हाथ पर हाथ धरा नहीं बैठेगा, बल्कि उसका सामना कर दुनिया के समक्ष एक मिसाल पेश करेगा। जापान जानता है कि एक आक्रामक रक्षा नीति ही देश को और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों से पूर्णतया मुक्त रखेगा। जापान के लिए इस समय एक ही मंत्र लागू होता है – अभी नहीं तो कभी नहीं।