जैसे-जैसे भारत और चीन के बीच बॉर्डर पर तनाव बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे भारत बीजिंग को इंडो-पैसिफिक में चारो तरफ से घेर रहा है। Indo-Pacific में भारत चीन पर दबाव बनाने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस के साथ अपने सहयोग को मजबूत करने की नीति पर काम कर रहा है।
चीन को दो बड़े झटके देते हुए भारत ने जापान के साथ एक ‘म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Mutual Logistics Support Agreement- MLSA) पर हस्ताक्षर किया है और रूस के साथ भी इसी तरह के म्यूचुअल डिफेंस लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। रूसी डिप्टी चीफ ऑफ मिशन (डीसीएम), Roman Babushkin ने मंगलवार को कहा कि नई दिल्ली और मॉस्को अक्टूबर या नवंबर में भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
भारत का यह कदम चीन को South China Sea में घेर लेने की रणनीति का एक हिस्सा है। भारत ने अमेरिका, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया सहित चीन के आसपास कई शक्तिशाली देशों के साथ डिफेंस लॉजिस्टिक सपोर्ट अग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए हैं।
जब सैन्य और समुद्री सहयोग की बात आती है तो ये लॉजिस्टिक शेयरिंग पैक्ट ब्रह्मास्त्र की तरह काम आता है। Indo-Pacific क्षेत्र के कई देशों के साथ समझौते को अंतिम रूप देने के बाद, भारतीय युद्धपोतों के पास अब दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और Yellow Sea सहित पश्चिमी प्रशांत के कई क्षेत्रों का लाभ उठाने और ईंधन भरने की सुविधा मौजूद रहेगी। रूस और जापान के साथ डिफेंस लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट हो जाने से भारत चीनी पीएलए नौसेना को चारों तरफ से घेरने में सफल हो जाएगा।
जहां तक जापान का संबंध है, म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट (MLSA) होने से यह स्पष्ट होता है कि जापानी पीएम शिंजो के जाने के बाद भी नई दिल्ली और टोक्यो मित्र के रूप में और अच्छे सहयोगी बन रहे हैं। भारत और जापान के बीच यह समझौता चीन के खिलाफ एक औपचारिक सैन्य गठबंधन बनाने की दिशा में पहला कदम भी साबित हो सकता है। आखिरकार, नई दिल्ली और टोक्यो एकमात्र ऐसे QUAD सदस्य हैं, जो वास्तव में चीन की आक्रामकता को झेल चुके हैं और उसे काबू में रखना चाहते हैं।
Made a phone call to my dear friend @AbeShinzo to wish him good health and happiness. I deeply cherish our long association. His leadership and commitment have been vital in taking India-Japan partnership to new heights. I am sure this momentum will continue in the coming years.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 10, 2020
इसी तरह, भारत और रूस के बीच डिफेंस लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौता मॉस्को के इरादों का बताता है कि वह भारत के साथ अपने रक्षा संबंध और मधुर बनाना चाहता है। भारत और रूस ऐसे समय में करीब आ रहे हैं जब रूस शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में विदेश मंत्रियों की परिषद (CFM) की बैठक में दोनों देशों यानि चीन और भारत की मेजबानी कर रहा है।
इसके अलावा यह नहीं भूलना चाहिए कि जब बॉर्डर पर तनाव बढ़ा था तब भी रूस ने चीन के बजाए भारत को वरीयता दी थी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास चीन के स्थान पर भारत को ऊपर रखने का अपना कारण है। वह नहीं चाहते हैं कि चीन पश्चिमी प्रशांत सहित इंडो-पैसिफिक में अपना आधिपत्य जमाए।
हाल ही में भारत ने रूस को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिती बढ़ाने को कहा था। इसके अलावा, चीन ने रूस के पूर्वी शहर Vladivostok पर दावा करके खुद अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली थी। यही कारण है कि आज रूस पूरी तरह भारत को समर्थन देने की स्थिति में दिखाई दे रहा है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम में अधिक आक्रामक रणनीति अपना रहा है। भारत न केवल हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीनी को चुनौती दे रहा है बल्कि इंडो-पैसिफिक में भी ड्रैगन की गर्दन पकड़ चुका है।
यह केवल भारत के समान सहयोगी देशों के साथ भारत के म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट के बारे में नहीं है। भारत अब पूरी तरह से चीन के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है और कई रणनीतिक स्थानों पर बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है। उदाहरण के लिए भारत इंडोनेशिया के Sabang पोर्ट को विकसित कर रहा है। यह पोर्ट मलक्का स्ट्रेट से मात्र 500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगा, यानि यहाँ से भारत कभी भी चीन के 80 प्रतिशत तेल की आपूर्ति को ब्लॉक कर सकने में सफल हो जाएगा। इसी तरह, भारत म्यांमार में Sittwe port का भी निर्माण कर रहा है जो चीन की Kyaukpyu port परियोजना के करीब है।
अगर देखा जाए तो भारत ने चीन को समुद्र में चारों ओर से घेर लिया है। लेकिन अब जापान के साथ एक MLSA कर रूस के साथ एक रक्षा लॉजिस्टिक्स सपोर्ट पैक्ट की ओर कदम बढ़ाने से Indo-Pacific में भारत का कद कई गुना बढ़ जाएगा। चीन कितना भी प्रोपोगेंडा फैला ले जब बात भारत से प्रभाव की होगी तो यह चीन से कई गुना अधिक होगा जिससे अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो चीन को आसानी से पटखनी दी जा सकती है।