“अपने अख़बार कहीं और बेचो”- इंडोनेशिया ने रोकी अपने देश में चीनी अख़बारों की फंडिंग

चीनी प्रोपेगैंडा इंडोनेशिया में अब और नहीं

इंडोनेशिया

इन दिनों चीन के साथ इंडोनेशिया के संबंध बहुत खराब चल रहे हैं। हो भी क्यों न, आखिर अन्य देशों की तरह चीन ने इंडोनेशिया की नाक में भी दम कर रखा है। लेकिन चीन को उसकी औकात दिखाने के लिए इंडोनेशिया ने एक अनोखा उपाय निकाला है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में छपे एक लेख के अनुसार,  इंडोनेशिया ने चीन द्वारा प्रायोजित अखबारों को न सिर्फ वित्तीय सहायता दिये जाने पर रोक लगा दी है, बल्कि अपने पूर्व शासक सुहर्तो की तर्ज पर चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर अलग-थलग भी करना चाहता है।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया में रह रहे चीनी मूल के इंडोनेशियाई अभी भी चीन से अपने नाते तोड़ नहीं पाये हैं। उनके अनुसार चीन से ऐसे संबंध बनाने चाहिए कि, वो चीन के मित्र भी रहें और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता भी न हो। इसीलिए उन्होंने चीन प्रायोजित अखबारों को बढ़ावा देना शुरू किया। ये अखबार न केवल चीन का महिमामंडन करते हैं, बल्कि चीन की हर योजना को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित भी करते हैं।

पर ये नीति अब और नहीं चलेगी। दक्षिण चीन सागर में चीन की हेकड़ी से कई देश परेशान हैं। उन देशों में इंडोनेशिया भी शामिल है। इसलिए इंडोनेशिया ने अब ये सुनिश्चित किया है कि इन अखबारों को किसी भी प्रकार से चीन की सहायता न मिले, चाहे वो चीनी नागरिकों के रूप में हो, या फिर चीनी धनराशि के रूप में और ये समाचार पत्र अपने आप ही हाशिये पर चले जाएं।

दरअसल चीन केवल सैन्य ताकत के बल पर ही नहीं उछलता है, बल्कि अपने प्रोपगैंडा के हथियार से कई देशों को अपने कर्ज़जाल में फँसाता है। अपना गुणगान सुनने के लिए चीन विदेशी समाचार पत्रों में निवेश करने से भी बाज़ नहीं आता। लेकिन अब ऐसा और नहीं चलेगा और इसकी शुरुआत इंडोनेशिया कर दी है। दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में चीन के सॉफ्ट-पॉवर को धराशायी करने के लिए ये उपाय बहुत ही कारगर है।

बता दें कि, जब भारत ने टिकटॉक सहित 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाया था, तो कई लोगों ने इसका उपहास उड़ाते हुए पूछा था कि इससे क्या होगा। लेकिन अब जिस तरह से दुनिया के कई देश अपने अंदाज़ में चीन को सबक सिखा रहे हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि, इन देशों ने भारत से काफी कुछ सीखा है।

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