सालों से शांत पड़े IORA को आखिरकार अपना उद्देश्य मिल गया है, और यह चीन के लिए बुरी खबर है

चीन को ध्वस्त करेगी हिंद महासागर की शक्ति

IORA

चीन की आक्रामकता व दबाव के कारण WHO और वर्ल्ड बैंक जैसे कई अंतरराष्ट्रीय संगठन अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं। वहीं कई संगठन ऐसे हैं जिन्हें नए सिरे से पुनर्जीवित किया जा रहा है। D10 जैसे संगठनों का विचार सतह पर आया है, वहीं QUAD को नाटो जैसा बनाने का प्रस्ताव भी सामने आया है। इन सब से दूर एक ऐसा संगठन भी है जो हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में भारत की सहायता कर सकता है। Indian ocean Rim Association यानी IORA हिंद महासागर क्षेत्र मैं स्थित देशों का एक संगठन है। इसका गठन 1997 में हुआ था और कुल 22 देश इसके सदस्य हैं। इसका मुख्यालय Ebene, मॉरीशस में है।

इस संगठन के साथ अब तक यह समस्या रही है कि, इस संगठन के सदस्य देशों ने आपसी सहयोग के लिए मूल मुद्दों को निर्धारित ही नहीं किया है। ब्लू इकोनामी, डिजास्टर मैनेजमेंट तथा सिक्योरिटी से संबंधित कुछ मामलों पर सदस्य देश आपसी सहयोग करते हैं लेकिन किसी ऐसे फ्रेमवर्क का निर्धारण नहीं किया गया है जो इस संगठन के उत्तरोत्तर विकास हेतु आवश्यक है।

उदाहरण के लिए NATO का गठन सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किया गया था और QUAD चीन के विरुद्ध संघर्ष हेतु तैयार किया गया है, लेकिन IORA के पास ऐसा कोई फ्रेमवर्क नहीं है। पर अब भारत सरकार ने इस संगठन को और मजबूत करने के लिए प्रयास शुरू किए हैं।

हाल ही में इस संगठन की तीन प्रमुख शक्तियों भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के विदेश मंत्रियों एवं रक्षा मंत्रियों की वर्चुअल बैठक हुई थी। इस मीटिंग का मुख्य उद्देश्य था क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता पर चर्चा करना। साथ ही मीटिंग में IORA को मजबूत करने को लेकर भी चर्चा हुई। गौरतलब है कि, भारत का ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ पहले ही मजबूत रिश्ते हैं। जहां भारत इंडोनेशिया के सबांग बंदरगाह के विकास में सहयोग कर रहा है, तो वहीं ऑस्ट्रेलिया के साथ भी भारत का लॉजिस्टिक सपोर्ट को लेकर समझौता कर चुका है।

हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि पारंपरिक रूप से भारत इस क्षेत्र की प्रमुख नौसैनिक शक्ति रही है। IORA की सहायता से चीन को हिंद महासागर में रोकना ना सिर्फ भारत के हित में है बल्कि अफ्रीकी देशों के हित में भी है।

गौरतलब है कि, अफ्रीकी देशों की आर्थिक विपन्नता का फायदा उठाकर चीन ने उनको अपने BRI प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाने की कोशिश की। लेकिन कोरोनावायरस के फैलाव के बाद अफ्रीकी देशों में चीन के प्रति नकारात्मक भाव तेजी से बढ़ा है। इतना ही नहीं चीन में अफ्रीकी मूल के लोगों पर हुए हमलों के कारण चीन का अफ्रीकी लोगों के प्रति नस्लीय भेदभाव भी खुलकर सामने आ गया है।

2019 में भारत की ओर से IORA की बैठक में भाग लेने गए विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने कहा था, IORA अंतर-क्षेत्रीय साझेदारी के लिए सबसे एक अद्वितीय और व्यापक-आधार वाला प्लेटफ़ॉर्म है, जो समुद्र के माध्यम से दुनिया के सबसे अधिक सांस्कृतिक विभिन्नता वाले क्षेत्रों यानी दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, ओशिनिया और अफ्रीका को जोड़ता है।”

यह सत्य है कि, यह संगठन सांस्कृतिक, धार्मिक तथा क्षेत्रीय रूप से अत्याधिक विभिन्नता वाला है। यही इसकी विशेषता है और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत भी है। अब चीन के नव उपनिवेशवाद ने इस संगठन को पूर्णतः प्रासंगिक बना दिया है। इस संगठन के एकजुट होकर काम करने के लिए एक मजबूत एजेंडा भी मिल गया है। अभी भारत इस संगठन को 1 मिलियन डॉलर की सहायता देता है लेकिन भारत सरकार को इस संगठन के लिए बैंकिंग व्यवस्था का विकास करना चाहिए। जो निवेश हम BRICS जैसे संगठनों में करते हैं वह यहाँ करना चाहिए। IORA भारत की चीन नीति का मुख्य अस्त्र होना चाहिए।

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