अर्मेनिया के शत्रु अज़रबैजान का समर्थन कर पाकिस्तान क्या पुतिन का गुस्सा झेलने के लिए तैयार है?

अर्मेनिया-अज़रबैजान के विवाद में कूदकर पाकिस्तान अपनी शामत बुला रहा है

पाकिस्तान

कहते हैं, जल में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए। लेकिन ये छोटी सी बात भला पाकिस्तान को कहाँ समझ में आती है। भारत तो भारत, दुनिया में जहां कहीं भी एक इस्लाम बहुल देश किसी और देश से युद्ध करने चलता है, तो पाकिस्तान उस इस्लाम बहुल देश का समर्थन करने पहुँच जाता है, और यही किया है उसने अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच पनप रहे युद्ध जैसे हालत में। लेकिन इस बार पाकिस्तान ने आग से खेलने का काम किया है, जो अंत में उसे बहुत भारी पड़ने वाला है। ऐसा इसलिए क्योंकि अर्मेनिया शुरू से ही रूस का साथी रहा है और पाकिस्तान अर्मेनिया से पंगा लेकर रूस के साथ अपने रिश्तों को भी खतरे में डाल रहा है।

अभी हाल ही में यूरोप में युद्ध के काले बादल मंडराने लगे, जब अर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवादित Nagorno-Karabakh को लेकर विवाद एक हिंसक झड़प में परिवर्तित हुआ, जो अब युद्ध की ओर बढ़ रहा है। अभी शुरू हुई हिंसक झड़प में अब तक 67 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन ये लड़ाई केवल ज़मीन को लेकर नहीं है। दरअसल अज़रबैजान मुस्लिम बहुल देश है, जबकि अर्मेनिया ईसाई बहुल है, इसलिए यह एक वैचारिक युद्ध भी है। इसीलिए तुर्की भी अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल हो चुका है, और वह सीरिया के जरिये फाइटर जेट्स और अपने सैनिक अज़रबैजान की सहायता हेतु भेज रहा है। यह खबरें पूर्णतया गलत नहीं है क्योंकि अभी अर्मेनिया ने तुर्की पर अर्मेनियाई फाइटर जेट को मार गिराने का आरोप भी लगाया है।

तो इसमें पाकिस्तान का क्या काम है? जैसा कि पहले बताया, पाकिस्तान हर उस लड़ाई में शामिल होने को आतुर है, जहां एक इस्लाम बहुल देश दूसरे देश से भिड़ता हो। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “तुर्की अज़रबैजान की सहायता के लिए अपने सीरिया के आतंकवादियों को भेज रहा है और तुर्की के इस मिशन में पाकिस्‍तान भी मदद कर रहा है क्योंकि उसके कुछ आतंकवादी इस इलाके में काफी सक्रिय हैं”। इतना ही नहीं, कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक तो पाकिस्तान ने अज़रबैजान में अपने कुछ सैनिकों को भी तैनात किया है।

दूसरे देशों के मामले में टांग अड़ाने की पाकिस्तान की यह आदत कोई नई नहीं है, बल्कि 1960 के दशक से चली आ रही है। जब 1967 में इज़रायल को मिटाने के इरादे से सीरिया, मिस्र और जॉर्डन सहित पाँच अरबी देशों ने इस यहूदी बहुल देश पर हमला किया था, तो इस सिक्स डे वॉर में पाकिस्तान ने अपने वायुसेना के कुछ विमान भी भेजे थे। अब ये और बात थी कि एक भी विमान वापस नहीं आ सका था। इतना ही नहीं, 1973 में जब इज़रायल को योम किप्पर वॉर लड़ने पर विवश होना पड़ा था, तब भी इज़रायल को बर्बाद करने आए फ़िलिस्तीनी लड़ाकों की सहायता करने पाकिस्तानी लड़ाके आए थे।

परंतु इस बार पाकिस्तान ने गलत पंगा मोल लिया है। अज़रबैजान के साथ भले ही तुर्की और पाकिस्तान हो, लेकिन अर्मेनिया की सहायता के लिए रूस जैसा देश अभी भी मौजूद है। रूस पहले ही पाकिस्तान से काफी कुपित है, क्योंकि न केवल वह खुलेआम आतंकवाद को बढ़ावा देता है, अपितु रूस द्वारा नाराज़गी ज़ाहिर करने के बावजूद उसने रूस में आयोजित SCO सम्मिट में रूस की किरकिरी कराई थी। अब जब पाकिस्तान खुलेआम रूस के सहयोगी के विरोधियों की मदद कर रहा है, तो इस बात के आसार काफी ज़्यादा हैं कि पाकिस्तान को राष्ट्रपति पुतिन के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है।

ऐसा भी हो सकता है कि Pakistan अज़रबैजान का समर्थन कर रूस को एक कडा संदेश भेजना चाहता हो कि अगर वह भारत-पाकिस्तान या भारत-चीन के विवाद में किसी प्रकार भी भारत का पक्ष लेता है तो पाकिस्तान भी उसके हितों के खिलाफ काम कर सकता है। अगर वाकई ऐसा है, तो यहाँ पाकिस्तान अपनी हैसियत को भूलकर सुपरपावर रूस को अपना दुश्मन बनाने का बड़ा जोखिम उठा रहा है, जो उसके लिए बड़ी मुसीबतें पैदा कर सकता है।

पाकिस्तान ने अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच हो रहे खूनी संघर्ष में टांग अड़ाकर अपनी ही शामत को न्योता दिया है। रूस पहले से ही पाकिस्तान की नौटंकियों से काफी चिढ़ा हुआ है। लेकिन जिस प्रकार से तुर्की और पाकिस्तान मिलकर अर्मेनिया के विरुद्ध अज़रबैजान की सहायता कर रहे हैं, ये रूस के गुस्से को आमंत्रित करने के लिए पर्याप्त है। यूं तो कहे तो पाकिस्तान ने एक बहुत प्रसिद्ध कहावत को इस प्रकरण से आत्मसात किया है – आ बैल मुझे मार!

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