किसी अन्य देश के क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए तिकड़म लगाने में चीन (China) का जवाब नहीं। चीन की शुरू से ही यह नीति रही है कि जब कोई नहीं देख रहा हो, पहले धीरे से दूसरे देश की सीमा में घुसो, कुछ जमीन पर कब्जा करो, अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्रों में सैन्य चौकियों की स्थापना करो और सीमाओं में बदलाव कर उस क्षेत्र का नाम बदल कर अपना नाम दे दो। फिर यह दावा करो कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से उसका ही था। चीन अपने पड़ोसियों के जमीन हड़पने के लिए यही मानक प्रक्रिया अपनाता है।
दरअसल, हाल ही में, एक चीनी PLA ने एक बयान में संकेत दिया कि भारत ने Pangong Tso के दक्षिणी तट के पास “Shenpao Shan” क्षेत्र में प्रवेश किया था। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के वेस्टर्न थिएटर कमांड के प्रवक्ता कर्नल Zhang Shuili द्वारा जारी एक बयान के हवाले से कहा कि भारत ने “Shenpao Shan” क्षेत्र में प्रवेश किया था, जो Pangong Tso के दक्षिण में स्थित है”।
भारत पहले से इस क्षेत्र को Black Top के नाम से संबोधित करता आया है। यह पहली बार है जब चीन ने इस क्षेत्र को “Heiding” (जिसका अर्थ होता है “ब्लैक टॉप”) के बजाय “Shenpao Shan” का इस्तेमाल किया। भारतीय नाम स्वीकार करने से इस क्षेत्र पर भारतीय पक्ष के स्वामित्व का आभास होता है। यही कारण है चीन ने नया नाम “Shenpao Shan” का इस्तेमाल किया, जिसका अर्थ है “Vulcan Mountain”। चीन (China) नाम बादल कर Black Top पर अपना स्वामित्व दिखाने के भरपूर प्रयास में है।
यह तो एक छोटा सा क्षेत्र था, चीन (China) तो किसी देश तक का नाम बदल चुका है। चीन इस तरह की नीति वर्ष 1950 और 60 के दशक से अपनाता आया है। तब चीन ने क्रमशः तिब्बत और पूर्वी तुर्किस्तान का नाम बदलकर Xizang (पश्चिमी त्सांग) और Xinjiang (न्यू फ्रंटियर) कर दिया था।
उदाहरण के लिए जब वर्ष 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद चीनी पीएलए अवैध रूप से लद्दाख के एक हिस्से पर कब्जा कर रहा है तब इस क्षेत्र का नाम बदल कर “अक्साई चीन” कहना शुरू कर दिया था, जिसका चीनी भाषा में अर्थ होता है “सफ़ेद पत्थरों का चीनी रेगिस्तान”।
चीन इसी तरह से अरुणाचल प्रदेश को पारंपरिक तौर पर दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता आया है। वर्ष 2017 में भी चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ स्थित अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों का नाम बदलने का ऐलान किया था जिसे भारतीय क्षेत्र ने खारिज कर दिया था। अब, इसकी नज़र लद्दाख के ब्लैक टॉप पर है।
चीन इसी तरह से अपने सभी पड़ोसियों के साथ करता आया है। हाल ही में, चीनी राजनयिकों और राज्य द्वारा संचालित मीडिया ने रूस के पूर्वी शहर Vladivostok पर संप्रभुता का दावा करना शुरू कर दिया था। चीन (China) ने एक बार फिर से अपना दावा जमाने के लिए रूसी शहर पर एक पारंपरिक चीनी नाम थोपने की कोशिश की। उन्होंने Vladivostok को “tongzhi dongfang” या “पूर्व के शासक” न कह कर चीनी छद्म नाम- Haishenwei कहा।
पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ और पिछले दिनों दक्षिण चीन सागर में चीन चार अन्य देशों के साथ विवादों वाले क्षेत्रों का नाम बदल चुका है। वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस सहित कई देशों से इसी तरह के दावों से परेशान हो चुके हैं। चीन (China) अक्सर दक्षिण चीन सागर में द्वीपों को नया नाम देकर समुद्र के इलाकों पर अपने दावे करता है। वास्तव में अगर ध्यान दिया जाए तो यह बात सामने आएगी कि जिन क्षेत्रों पर बीजिंग द्वारा विवादित बताया गया है उन सभी के नाम पर भी विवाद है।
जापान के सेनकाकू द्वीप समूह के साथ भी यही हुआ। जापान ने वर्ष 2012 में एक निजी मालिक से सेनकाकू द्वीप खरीदे थे, लेकिन चीन अब भी इस पर संप्रभुता का दावा करता है और इसे ‘Diaoyu Islands’ नाम दे चुका है।
अगर आप सोचते हैं कि चीन केवल पहाड़ों और शहरों का नाम बदल देता है, तो आप गलत हैं। द्वीपों और समुद्री रीफ़ पर भी चीन अपने दावे करने के लिए नाम बदलने में सबसे आगे है। हाल ही में, चीन ने दक्षिण चीन सागर में 80 द्वीपों और अन्य भौगोलिक फीचर्स का नाम बदलकर इन सभी पर अपनी संप्रभुता का दावा किया था।
चीनी द्वारा गुंडागर्दी के लिए, किसी भी भौगोलिक और ऐतिहासिक क्षेत्रों के नामों को बदलना उसकी कूटनीति का एक विशेष हिस्सा है। चीन (China) यह इसलिए करता है ताकि उन क्षेत्रों के स्वामित्व पर भी विवाद पैदा किया जा सके जहां ऐतिहासिक रूप से चीनी अधिकार नहीं था। Black Top को “Shen Pao Shan” के नाम से बुलाना एक उदाहरण है कि कैसे चीनी विस्तारवाद काम करता है।