‘वे जांच पड़ताल में बाधा डाल रहे हैं’, पालघर साधु लिंचिंग मामले को दबाने के लिए महाराष्ट्र सरकार लगा रहा है नए दांव पेंच

पालघर

जहां एक ओर सुशांत सिंह राजपूत का मामला अभी भी सुर्खियों में है, वहीं पालघर में वामपंथियों के हाथों हुई दो साधुओं की हत्या में न्याय की मांग सुशांत के मामले के शोर में कहीं दब सी गई है। जब प्रारम्भ में रिपब्लिक चैनल के स्वामी अर्नब गोस्वामी ने इस विषय पर महाराष्ट्र सरकार को घेरा, तो इस मामले में न्याय की आस जगी थी। लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस मामले में न्याय के लिए अभी बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे।

पालघर कांड में न्याय के लिए याचिका दायर करने वाले याचिककर्ताओं में से एक, शशांक शेखर झा के अनुसार इस मामले को दबाने में महाराष्ट्र के वर्तमान प्रशासन ने काफी अहम भूमिका निभाई है। बता दें कि अप्रैल माह में दो साधु, कल्पवृक्ष गिरि और उनके शिष्य सुशील गिरि अपने ड्राइवर नीलेश तेलगड़े के साथ अपने गुरु, महंत श्रीराम गिरि की अंत्येष्टि में भाग लेने जा रहे थे। लेकिन रास्ते में ही उन्हें पालघर में रोककर वामपंथियों द्वारा भड़काई गई भीड़ ने बुरी तरह पीट पीटकर मार डाला। कहा जा रहा है कि घटनास्थल से पुलिस चौकी ज़्यादा दूर नहीं था, लेकिन पुलिस ने हस्तक्षेप तक नहीं किया।

भले ही पालघर केस को लाइमलाइट नहीं मिलती, परंतु न्याय की मांग बंद नहीं हुई है। अगस्त के माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी जनहित याचिकाओं को समाहित करते हुए महाराष्ट्र सरकार पर कार्रवाई का दबाव बनाया और उन्हें इस जघन्य अपराध को रोकने में नाकाम पुलिसवालों पर एक्शन न लेने के लिए लताड़ा भी। लेकिन शशांक शेखर झा का मानना है कि इस मामले में सीबीआई की जांच अति आवश्यक है, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार पर तनिक भी भरोसा नहीं किया जा सकता।

TFI से बातचीत के अनुसार शशांक झा ने बताया, “उन्होंने [महाराष्ट्र सरकार] याचिककर्ताओं के साथ चार्जशीट साझा करने से साफ इंकार कर दिया। ये चार्जशीट अब तक कोर्ट में भी रिकॉर्ड में नहीं लाये गए हैं।” इसके अलावा अभी महाराष्ट्र सरकार ने 3 पुलिसकर्मियों को सेवा से निरस्त किया है, जिनके नाम हैं एएसआई रवि सालुंखे, सब इंस्पेक्टर आनंदराव काले और कांस्टेबल नरेश धोड़ी”।

हालांकि, शशांक के अनुसार ये सब छलावा है। उनके अनुसार, “घटना के दौरान 15 से 18 पुलिस अफसर मौजूद थे। पुलिस की खुद की एफ़आईआर के अनुसार 400 से 500 लोग उपस्थित थे। कई मीडिया वालों के अनुसार 2000 लोग भी हो सकते थे। इतने लोग एक साथ लॉकडाउन के समय जुटे कैसे?”।

शशांक शेखर झा के आरोप पूरी तरह से गलत भी नहीं हो सकते, क्योंकि डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय पालघर न्यायालय ने 90 दिनों के पश्चात कोई कार्रवाई न होने पर 28 अभियुक्तों को जमानत दे दी। मई माह में टाइम्स नाउ ने इस कांड के पीछे वामपंथी एंगल को उजागर करते हुए इस बात की ओर संकेत दिया था कि ये हत्या यूं ही नहीं हुई थी। टाइम्स नाउ के अनुसार इस घटना का प्रमुख आरोपी सीपीआई [एम] का सदस्य भी है।

इसीलिए शशांक शेखर झा ने निष्पक्ष सीबीआई जांच की मांग की है, क्योंकि यहाँ महाराष्ट्र सरकार के सक्रिय होने से हितों के टकराव की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। उनके अनुसार, “यदि मीडिया सुशांत के मामले पर पूरा फोकस न केन्द्रित कर रही होती, तो इस मामले को ज़्यादा ध्यान दिया जाता”। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस दिशा में क्या निर्णय लेता है।

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