हिन्द महासागर क्षेत्र से बाहर खदेड़े जाने के बाद चीन को पैसिफ़िक द्वीपों से धक्के मारकर बाहर निकाला जा रहा है। इन पैसिफ़िक द्वीप देशों पर पहले चीन का बेहद ज़्यादा प्रभाव हुआ करता था। हालांकि, अब ये देश खुलकर चीन के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
मलाइता, पलाऊ और Pacific Network on Globalization यानि PANG अब चीन से लगातार दूरियाँ बना रहा है, और अब ये देश चीन के खिलाफ खड़े हो रहे देशों जैसे जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। पैसिफ़िक देशों से खदेड़े जाने के बाद अब चीन का नेवल प्रभाव सिर्फ दक्षिण चीन सागर तक ही सीमित रह गया है, जहां पर लगातार उसे ताइवान, भारत और अमेरिका जैसे देशों से चुनौती मिल रही है।
उदाहरण के लिए Solomon Islands के दूसरे सबसे बड़े द्वीप मलाइता को ही ले लीजिये। यह द्वीप अब चीन के प्रभाव वाले Solomon Islands से आज़ादी की मांग कर रहा है। अगर Solomon Islands को पैसिफ़िक में चीन से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश माना जाए, तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। पिछले साल ही SI ने ताइवान के साथ अपने सारे रिश्ते खत्म कर बीजिंग के साथ रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश की थी। इसके बाद ही चीन ने SI में बड़े पैमाने पर निवेश करना शुरू किया। कुल मिलाकर, निवेश के बदले में चीन ने SI को खरीद ही लिया था। हालांकि, मलाइता को यह बिलकुल पसंद नहीं आया।
मलाइता के अध्यक्ष डेनियल सुइदानी ने SI की सरकार पर यह आरोप लगाया कि SI उसे अपने फैसले मानने के लिए मजबूर कर रहा है। मलाइता ने SI द्वारा ताइवान के साथ रिश्ते खराब किए जाने का भी विरोध किया। सुइदानी ने कहा था “यह मलाइता के लोगों का अधिकार है कि वे यह तय कर सकें कि उन्हें अब भी ऐसी सरकार के शासन में जीना है, जो आए दिन तानाशाही रवैया अपना रही हो।’’ इतना ही नहीं, मलाइता अब अमेरिका के साथ मिलकर अपने यहाँ एक deep sea port के निर्माण की संभावनाओं को भी तलाश रहा है, ताकि उस क्षेत्र में चीन के sea ports के लिए चुनौती खड़ी की जा सके। यह चीन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा क्योंकि मलाइता द्वीपों की लोकेशन रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है।
और सिर्फ मलाइता ही नहीं, बल्कि पैसिफ़िक में एक और महत्वपूर्ण देश पलाऊ भी चीनी आक्रामकता के डटकर मुक़ाबला कर रहा है। पलाऊ मुश्किलों के बावजूद ताइवान के साथ अपने रिश्ते कायम रखने में कामयाब साबित हुआ है।
दुनिया के नक्शे पर एक डॉट की तरह दिखाई देने वाले पलाऊ ने हाल ही में चीन को एक बड़ा झटका देने का काम किया है। दरअसल इस देश ने अब अमेरिका के साथ मिलकर अपने यहाँ एक military base बनाने का फैसला लिया है। पिछले हफ्ते ही अमेरिकी रक्षा सचिव ने इस द्वीप देश की यात्रा की थी, और उसके बाद पलाऊ की ओर से ऐसा ऐलान करना दिखाता है कि यह देश भी चीन को आड़े हाथों लेने के लिए पूरी तरह तैयार है। दक्षिण चीन सागर में चीन को घेरने के लिए पलाऊ बेहद अहम कड़ी साबित हो सकता है। पलाऊ के पूर्वोत्तर में गुआम द्वीप हैं जहां पहले ही अमेरिका के military bases मौजूद हैं। पलाऊ के इस कदम के बाद दक्षिण चीन सागर में चीन की घेराबंदी और आसान हो जाएगी।
इसी प्रकार Pacific Network on Globalization यानि PANG भी चीन को त्यागकर अब ऑस्ट्रेलिया के साथ गहरे आर्थिक सम्बन्धों को स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है। PANG ने ऑस्ट्रेलिया से कहा है कि वह PANG को लेकर अपनी व्यापार और निवेश नीति में बदलाव करे ताकि ऑस्ट्रेलिया और PANG देशों के बीच रिश्ते मजबूत हो सकें। बता दें कि वित्तीय सहायता के मामले में ऑस्ट्रेलिया पैसिफ़िक द्वीप देशों को सबसे ज़्यादा मदद पहुंचाता है। बीच में चीन के BRI से प्रभावित होकर बेशक PNG जैसे कुछ महत्वपूर्ण देश चीन के कर्ज़ जाल में फंस गए थे। हालांकि, अब PNG भी खुलकर चीन का विरोध कर रहा है। जिस प्रकार मलाइता, पलाऊ और PANG जैसी ताक़तें चीन के खुलेआम विरोध में उतर आई हैं, उसके बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि जल्द ही पैसिफ़िक द्वीप अब चीन के चंगुल से आज़ाद हो सकेंगे। इन पैसिफ़िक द्वीपों पर दोबारा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का प्रभुत्व बढ़ रहा है, जो चीन के लिए बेहद बुरी खबर है।