चीन जल्द ही यूरोप में अपने सबसे अंतिम साथी जर्मनी को खो सकता है। पिछले 15 सालों में चीन ने एंजेला मर्केल ने नेतृत्व वाले जर्मनी के साथ रिश्तों को बेहद मजबूत किया है। हालांकि, अब जब एंजेला मर्केल का राजनीतिक करियर हाशिये पर है, और वे जल्द ही सत्ता से बाहर होने वाली हैं, तो इसका असर चीन और जर्मनी के मजबूत रिश्तों पर पड़ना भी स्वाभाविक है।
माना जा रहा है कि मर्कल के बाद जो कोई भी जर्मनी की सत्ता के केंद्र में होगा, उसका चीन के खिलाफ बेहद सख्त रवैया रहने वाला है। मर्कल तो जाने वाली हैं, ऐसे में अभी से उनकी पार्टी और उनके साथियों ने कड़ी चीन नीति को अपनाना शुरू कर दिया है। मर्केल के बाद जर्मनी की सत्ता संभवतः इन तीन नेताओं में से किसी एक पास जा सकती है- Christian Democratic Union के Norbert Rottgen, Armin Laschet या फिर Friedrich Merz, और तीनों ही नेता चीन के खिलाफ सख्त से सख्त रणनीति अपनाने से पीछे नहीं हटने वाले हैं।
Rottgen अभी जर्मन संसद Bundestag में विदेशी मामलों की कमिटी के अध्यक्ष हैं और उन्हें अक्सर संसद में चीन के विरोध में एक्शन लेते हुए देखा जा सकता है। यहाँ तक कि उन्होंने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर अपने यहाँ से चीन की हुवावे को प्रतिबंधित कराने की मुहिम को भी छेड़ा हुआ था। Rottgen मर्केल द्वारा चीन के Hong-Kong सुरक्षा कानून के खिलाफ ना बोले जाने को लेकर भी नाराज़ बताए जाते हैं। उनके एक बयान के अनुसार “हमने जो भी चीनी सुरक्षा कानून के बारे में बोला, वह कम से कम था। हमें इसके मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा सख्त रुख अपनाना चाहिए थे।’’
इसी प्रकार CDU के Friedrich Merz भी एंजेला मर्केल के साथ-साथ चीन के भी धुर विरोधी माने जाते हैं। यह भी माना जाता है कि Friedrich और Rottgen द्वारा खुलकर चीन विरोधी मुहिम छेड़े जाने की वजह से मर्कल की लोकप्रियता में गिरावट आई है और चीन विरोधी नेताओं की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। यही कारण है कि अगर मर्कल के बाद इन दो नेताओं में से कोई जर्मनी की सत्ता संभालता है, तो चीन के प्रति नीति में “बड़े बदलाव” देखने को मिल सकते हैं।
Politico के हवाले से Bundestag के मुताबिक “अगर एक बार मर्केल जाती हैं, तो जर्मनी की नीति में समान्य बदलाव नहीं बल्कि बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।” यह बात कितनी सच है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जर्मनी के मौजूदा विदेश मंत्री और SPD के नेता हाइको मास अपनी प्रोफ़ाइल को सुधारने के लिए अभी से चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने लगे हैं। पिछले कुछ महीनों में SPD के नेता हाइको मास चीन के खिलाफ कई फैसले ले चुके हैं। इसके अलावा इसी साल विदेश मंत्रालय में SPD से जुड़े एक अधिकारी ने तो जर्मन Der Spiegel पत्रिका में चीन पर जमकर भड़ास निकाली थी।
हाल ही में जर्मन विदेश मंत्रालय ने चीन को लाल-पीला करने वाली अपनी Indo-pacific नीति को जारी किया था, जिसमें उसने भारत और जापान जैसे देशों के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई थी। इस नीति में जर्मनी ने अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण चीन सागर में चीन की गुंडागर्दी की निंदा की थी। इतना ही नहीं, हाल ही में अपने यूरोप दौरे के अंतिम पड़ाव में जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी जर्मनी के विदेश मंत्री से मिले थे, तो हाइको मास ने उनके साथ Hong-Kong सुरक्षा कानून, और मानवाधिकारों से मुद्दे को उठाया था। इतना ही नहीं, अभी जर्मनी अपने यहाँ ताइवान से एक military delegation का भी स्वागत करने वाला है। कुल मिलाकर जर्मनी की अंदरूनी राजनीति की वजह से जर्मनी की चीन नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है।
SPD को एंजेला मर्केल की पार्टी CDU से ज़्यादा चीन विरोधी माना जाता है, और ऐसे में SPD के नेता हाइको मास चीन को लेकर एंजेला मर्कल की नहीं, बल्कि अपनी पार्टी की नीति का पालन करते दिखाई दे रहे हैं। हाइको मास चीन विरोधी नीति अपनाकर एक अन्य जर्मन राजनीतिक पार्टी Greens Party के साथ भी अपने गठबंधन का रास्ता साफ़ करना चाहते हैं। वर्ष 2021 के चुनावों में CDU का सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरना निश्चित है। ऐसे में SPD और Greens Party एक गठबंधन बनाकर CDU को पछाड़ने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।
आज मर्केल के पास वो ताकत और प्रभावी छवि नहीं है, जो उनके पास कभी हुआ करती थी। उनके बाद सत्ता संभालने वाले प्रत्याशी चीन को लेकर उनकी नीति का शायद ही पालन करें। मर्केल जाने वाली हैं, और इसी के साथ जर्मनी और बीजिंग की दोस्ती पर भी बड़ा खतरा आन खड़ा हुआ है।