मध्य प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर तारीख तो नहीं निकलीं लेकिन बिहार विधानसभा चुनावों के साथ ही इनके निपटने की संभावना है। एक तरफ बीजेपी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव प्रचार कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस मार्च में सिंधिया के बागी होने के बाद अभी तक संभल नहीं पाई है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए रसूख की लड़ाई बने इन उपचुनावों में वो अकेले ही दिख रहे हैं जबकि पार्टी आलाकमान का रवैया दिखाता है कि शायद उन्होंने बीजेपी के सामने हाथ ही खड़े कर दिए हैं।
फ्रंटफुट पर शिवराज
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों चुनावों के मद्देनजर धड़ाधड़ रैलियां कर रहे हैं। एक रैली के दौरान उन्होंने कहा, ”मैं अभी अस्थाई सीएम हूं।” जो ये दिखाता है कि वो भी असमंजस की स्थिति में हैं। ऐसे में पार्टी आलाकमान के सपोर्ट के साथ उनका समन्वय और उन्हें मिली पूरी छूट शिवराज की ताकत को दर्शाता है क्योंकि बीजेपी के लिए बहुमत का फासला 9 सीटों का है। ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर ढील नहीं देना चाहती है। किसानों को अतिरिक्त राशि देने की स्कीम हो या फसल बीमा का फायदा देने की बात… शिवराज ने सारे फैसले तेजी के साथ लिए हैं। कैबिनेट अपने अनुरूप न होने के बावजूद शिवराज जिस तरह से बागी कांग्रेसी विधायकों और मंत्रियों का पार्टी में समन्वय बिठा रहे हैं वो उनकी राजनीतिक सूझबूझ को दिखाता है।
अकेले पड़े कमलनाथ
एक तरफ जहां बीजेपी अपने चुनाव प्रचार को धार दे रही है तो वहीं कांग्रेस नेता कमलनाथ अकेले ही चुनावी रण में कूद पड़े हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि कमलनाथ और दिग्विजय के खिलाफ जिस तरह के आरोप बागी होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लगाए हैं उससे राज्य में पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। जिस राज्यसभा सीट के लिए सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच दरार आई उसने कमलनाथ की सरकार गिरा दी। हालांकि, सिंधिया और दिग्विजय दोनों ही राज्यसभा पहुंच गए लेकिन कमलनाथ की स्थिति सबसे बुरी हो गई है। कमलनाथ अकेले ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उनके साथ क्षेत्रीय स्तर के नेता जरूर हैं लेकिन सपोर्ट कोई नहीं। कमलनाथ पर सिंधिया समर्थक मंत्री लगातार आरोप लगा रहे हैं, “अगर 15 महीने का लेखा-जोखा खोल दिया तो कमलनाथ जेल में होगे।” बीजेपी के पूरे संगठित चुनाव प्रभारियों से मुकाबला करने और जवाबी बयान देने तक के लिए खुद कमलनाथ के पास कोई नेता नहीं है। कमलनाथ पार्टी से स्टार प्रचारकों की मांग कर रहे हैं। उन्होंने प्रियंका गांधी के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में 6 रोड-शो का ऐलान भी किया है लेकिन वो कब-कहां प्रचार करने जातीं हैं, ये देखना दिलचस्प होगा, जबकि यूपी चुनावों में मिली हार के बाद उनका प्रदर्शन भी कुछ खास नहीं रहा है जिसका बीजेपी ने मजाक भी बनाया था।
कहां है आलाकमान
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथ से सरकार छीनी गई। लेकिन पार्टी आलाकमान सिंधिया को मनाने से लेकर विधायकों को वापस लाने में विफल रहा। 2018 में जिन तीन बड़े राज्यों पर कांग्रेस ने सरकार बनाई उनमें से मध्य प्रदेश और राजस्थान का हाल सब देख चुके हैं। कोरोनावायरस के इस दौर में एक तरफ जहां बीजेपी के दिग्गज नेता प्रचार कर रहे हैं तो कांग्रेस के बड़े नेता वर्क फ्रॉम होम में केवल बाइट देकर मुक्ति पा लेना चाहते हैं। प्रमुख नेता सोनिया और राहुल गांधी तो फिलहाल विदेश में ही हैं, केंद्रीय नेतृत्व में चिट्ठी कांड के बाद ख़ामोशी है कि जो कि शायद निष्क्रियता की स्थिति में पहुंच गया है।
कांग्रेस की स्थिति इतनी ज्यादा बुरी है कि वो बागी सिंधिया के सामने अब उनके ही दोस्त सचिन पायलट को लेकर आई है। जिनको लेकर आशंकाएं हैं कि वो खुद ही कब कांग्रेस का हाथ झटक दें किसी को नहीं पता। भाजपाई नेता पायलट के लगे पोस्टरों पर तंज कसते नजर आए कि, “राजस्थान में कांग्रेस ने जिस नेता का अपमान किया, अब उसको प्रचार के लिए बुला रही है।” भाजपा पंचायत स्तर तक के चुनावों में अपनी पूरी जान झोंकती है। लेकिन देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी असल में इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसके हाथ से छीनी गई सत्ता को वापस पाने के लिए पार्टी आलाकमान तेवर तक नहीं दिखा रहा है।ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने अपनी सरकार में हुए विघटन के बाद हार मानते हुए सांकेतिक रूप से हाथ खड़े ही कर दिए हैं।