भारत-जापान का सैन्य समझौता-दोस्त मोदी के लिए जापानी PM शिंजों आबे का आखिरी तौफ़ा

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे....

शिंजों आबे

अपनी खराब सेहत के कारण जापानी प्रधानमंत्री शिंजों आबे सरकार के सर्वोच्च पद से जल्द ही इस्तीफा देने वाले हैं। हालांकि, देश के प्रधानमंत्री पद से जाते-जाते भी उन्होंने जापान-भारत के रिश्ते और ज़्यादा मजबूत करने वाले एक बेहद महत्वपूर्ण सैन्य समझौते Acquisition and Cross-Service Agreement पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को पीएम मोदी के लिए उनका आखिरी तौफ़ा भी कहा जा सकता है।

जापान Quad का वह आखिरी सदस्य है, जिसके साथ भारत ने Logistics Support Agreement पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके बाद जापान और भारत की सेनाओं को एक दूसरे के military bases का इस्तेमाल करने की छूट मिल जाएगी। शिंजों आबे के नेतृत्व में जापान ने चीन को एक बड़ा खतरा माना है। हाल ही में जापान के रक्षा मंत्री तारो कोनो भी चीन को जापान की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा घोषित कर चुके हैं। ऐसे में भारत के साथ यह सैन्य समझौता दिखाता है कि अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और चीन पर दबाव बनाने के लिए ऐसे कदम उठा रहा है। भारत के लिए भी यह कदम इसीलिए अति-महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारतीय नेवी आसानी से जापानी जलसीमा के आसपास और दक्षिण चीन सागर में आसानी से operate कर पाएगी। बता दें कि भारत पहले ही ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ ऐसे सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है।

जापान और भारत द्वारा सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर करना चीन के लिए सबसे बड़े खतरे की बात इसलिए है क्योंकि दोनों ही देश चीन के सबसे बड़े और सबसे ताकतवर दुश्मन हैं और दोनों ही देश उसके पड़ोसी हैं। बब-अल-मंदब स्ट्रेट के सामने जिबूती देश में जापान का एक सैन्य अड्डा है और अब भारत को वहाँ तक आसानी से पहुँच मिल जाएगी। इसी प्रकार जापान को भारत के अंडमान द्वीपों तक पहुँच मिल जाएगी, जिसके बाद जापान और भारत ना सिर्फ मलक्का स्ट्रेट बल्कि बब-अल मंदब स्ट्रेट के मुहाने पर बैठ जाएँगे, जहां से दुनिया का करीब 50 प्रतिशत ट्रेड होकर गुजरता है।

शिंजों आबे बेशक एक विज़नरी नेता हैं। वर्ष 2007 में ही उन्होंने Indo-pacific में चीन के बढ़ते खतरे को भाँप लिया था, और Quad को लॉन्च कर दिया था। आज यही Quad चीन की आक्रामक और विस्तारवादी नीति के खिलाफ एकमात्र आशा की किरण बनकर उभर रहा है। Indo-Pacific की सुरक्षा के प्रति उनका यह योगदान सदैव याद रखा जाएगा।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिंजों आबे के बीच बेहद गहरी दोस्ती रही है। जैसे ही आबे की खराब सेहत के बारे में PM मोदी को पता चला था, तो तुरंत उन्होंने उनके नाम एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था,“मेरे प्यारे दोस्त शिंजो आबे, आपकी खराब सेहत के बारे में सुनकर दुख हुआ। हाल के सालों में, आपकी कुशल लीडरशिप और पर्सनल कमिटमेंट के चलते भारत-जापान की पार्टनरशिप पहले से कहीं ज्यादा गहरी और मजबूत हुई है। मैं आपके जल्द स्वस्थ्य होने की कामना और प्रार्थना करता हूं”।

दोनों नेताओं की बेहद आकर्षक केमिस्ट्री देखने को मिलती रही है। वर्ष 2015 में शिंजों आबे जब भारत की यात्रा पर आए थे, तो पीएम मोदी उन्हें गंगा आरती के दर्शन कराने वाराणसी ले गए थे। दोनों नेताओं ने तब गंगा घाट पर साथ बैठकर काफी समय बिताया था। प्रधानमंत्री शिजों आबे ने कल के अपने ट्वीट में गंगा घाट पर पीएम मोदी के साथ बैठकर खिंचाई गयी फोटो को साझा भी किया।

इसमें कोई शक नहीं है कि आबे के नेतृत्व में भारत-जापान के रिश्तों को नया आयाम मिला है। उनका पद छोड़कर जाना दोनों देशों के लिए पीड़ादायक हो सकता है, लेकिन इससे दोनों देशों के रिश्ते कमजोर तो नहीं होंगे। हालांकि, उनके द्वारा एकाएक इस्तीफे की घोषणा करने से जापान समेत भारत में भी कई लोगों को गहरा झटका तो लगा ही है। उनकी आंतों में बीमारी होने के कारण वे अपने देश की सेवा करने के लिए उपयुक्त हालत में नहीं हैं। उनके कार्यकाल के दौरान जापान ने अमेरिका के अलावा भी रणनीतिक रूप से अहम देश जैसे भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने सम्बन्धों को बढ़ावा दिया। उनकी जगह भरना वाकई उनके उत्तराधिकारी के लिए बेहद मुश्किल काम होने वाला है।

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