“कोई छीना-झपटी नहीं करेगा”, चीन को बर्बाद कर उसका बिजनेस आपस में बांटने के लिए अमेरिका ने जारी किया प्लान

अमेरिका, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया अभी से लाइन में लग लिए हैं

अमेरिका

पिछले चार दशकों में चीन ने काफी तेज़ी से आर्थिक प्रगति की है और अब वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इसके लिए चीन पूरी तरह से उत्पादन और उसके निर्यात पर निर्भर था, और जल्द ही बीजिंग वैश्विक सप्लाई चेन का एक अहमा हिस्सा बन गया, जिस पर पश्चिमी देश ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर होने लगे, इतना कि चीन विश्व पर वर्चस्व जमाने और अमेरिका को वैश्विक महाशक्ति के पद से अपदस्थ करने के सपने देखने लगा।

उस समय अमेरिकी और यूरोपीय नेता चीन को उसकी मनमानी करने दे भी रहे थे, ताकि ‘विश्व शांति’ को कोई नुकसान न पहुंचे। लेकिन वुहान वायरस के फैलने से पूरा खेल ही बिगड़ गया, और चीन के साम्राज्यवादी मानसिकता ने स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक सप्लाई चेन की चीन पर निर्भरता बाद में काफी भारी पड़ सकता है।

इसीलिए अब अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने ये निर्णय लिया है कि एक आर्थिक समृद्धि नेटवर्क यानि EPN का सृजन होगा, जिसमें वैश्विक सप्लाई चेन से चीन को निकालने और भारत, जापान, दक्षिण कोरिया एवं ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने पर ज़ोर दिया जाएगा।

ईपीएन के बारे  में जानकारी साझा करते हुए कीथ क्रेच ने बताया, “ईपीएन ऐसे देशों से बना होगा जो तय मानकों एवं आदर्शों के अनुसार आर्थिक साझेदारी करेंगे। ये इस नीति पर निर्मित होगा कि मजबूत साझेदारी से ही समृद्धि सुनिश्चित होती है। इसीलिए ईपीएन का गठन किया गया है ताकि एक वैश्विक ढांचे के अंतर्गत Geo Economic Partnerships का खाका तैयार किया जा सके।’’

इस साझेदारी का प्रमुख उद्देश्य है चीन पर आर्थिक प्रहार करना, जिससे भारत जैसे देशों को काफी फायदा पहुँच सकता है। ये साझेदारी केवल आर्थिक ही नहीं अपितु रणनीतिक तौर पर भी काफी अहम होगी, क्योंकि आर्थिक और रणनीतिक, दोनों ही मोर्चों पर केवल भारत ही ऐसा देश है, जो चीन को चुनौती देने के लिए सक्षम है।

बता दें कि वैश्विक सप्लाई चेन से चीन को अपदस्थ करने की मुहिम कई महीनों से चल रही है। इसी दिशा में अमेरिका और भारत ने पिछले कई महीनों में कुछ प्रभावी कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए जून माह में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत प्रोग्राम के अंतर्गत अपने कुछ अहम उत्पादन क्षेत्र जैसे स्वास्थ्य, रक्षा सामग्री  में आत्मनिर्भरता के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने एपीआई यानि Active Pharmaceutical Ingredients, जिनसे कई दवाइयाँ बनाई जा सकती हैं, पर चीन की पकड़ को ढीली करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार ने कुछ अहम कदम उठायें हैं।

इसके अलावा अभी कुछ ही दिनों पहले  भारत और अमेरिका के बीच एक “Mini trade deal” पर समझौता होने की ओर देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिका के उप-विदेश सचिव स्टीफ़न बाईगुन ने इशारा किया है। भारत और अमेरिका पहले ही रणनीतिक साझेदारी के तहत वैश्विक सप्लाई चेन को “दुरुस्त” करने और चीन पर आर्थिक हमला बोलने के लिए साथ मिलकर काम करने का ऐलान कर चुका हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब भविष्य में किसी भी देश के कूटनीतिक रिश्तों के आधार पर ही उसके आर्थिक रिश्तों की रूपरेखा तैयार होगी, और कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े देश आर्थिक रूप से भी पिछड़ जाएँगे।

ये साझेदारी भौगोलिक रूप से भी काफी अहम होगी, क्योंकि इससे न सिर्फ सप्लाई चेन में अहम बदलाव आएंगे, अपितु हिन्द-प्रशांत क्षेत्र जैसे रणनीतिक रूप से अहम क्षेत्रों पर भी इस बदलाव का अहम प्रभाव पड़ेगा। अब जब भारत जैसे देश के पास एक विशाल मार्केट और सस्ते लेबर का भंडार हो, तो ईपीएन का सफल न होना एक हास्यास्पद ख्याल होगा, क्योंकि भारत की साझेदारी इस नेटवर्क की सफलता के लिए बहुत अहम सिद्ध होने वाली है।

जिस प्रकार से अब वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की अहमियत बढ़ी है, उससे यह तो सिद्ध हो चुका है कि भारत का रुख हवा के विरुद्ध नहीं है। इस बार भारत के पास संसाधनो  का अभाव नहीं है, बल्कि उसके पास जनसंख्या का वरदान है, एक सशक्त सरकार है और एक मजबूत विदेश नीति है, जिसके बल पर अब अमेरिका जैसे देश चीन के विरुद्ध अपने विश्वव्यापी अभियान को आगे बढ़ाना चाहता है।

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