“सिर्फ बोलो मत, चीन के खिलाफ एक्शन लो” दोनों तरफ की मलाई खा रहे ASEAN को Pompeo ने दबोच लिया है

ASEAN को लाइन पर लाने के लिए Pompeo उतरे मैदान में

ASEAN

दुनियाभर में जारी चीन विरोधी लड़ाई का सबसे ज़्यादा फायदा अगर किसी को मिला है, तो वह है ASEAN! चाहे अमेरिका-चीन की ट्रेड वॉर हो, या फिर कोरोना के बाद सैकड़ों विदेशी कंपनियों द्वारा चीन छोड़कर किसी और देश में जाना हो, ASEAN को हमेशा चीन विरोधी लड़ाई से सबसे ज़्यादा फायदा हुआ है। हालांकि, इस सब के बावजूद अपने आर्थिक हितों के लिए ये देश चीन के खिलाफ बोलने से ज़्यादा कुछ नहीं कर पाये हैं। चीन इन सब देशों के लिए एक बहुत बड़ी मार्केट है और शायद यही कारण है कि ASEAN के ये सभी देश, जो समय-समय पर दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता का शिकार होते रहते हैं, ये चीन के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से घबराते हैं। हालांकि, अब ये नहीं चलने वाला है, क्योंकि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अब ASEAN देशों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि उन्हें अब सिर्फ बोलने से बढ़कर चीन के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाना होगा।

ऐसे वक्त में जब चीन के पश्चिम में भारत और पूर्व में जापान जैसे देश चीन से लोहा लेने में लगे हैं, तब ये ASEAN के देश चीन से बाहर आ रही कंपनियों को लुभाने में व्यस्त हैं। हालांकि, इसी दौरान ये देश चीन के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने में भी असफल साबित हुए हैं। ASEAN के देश जैसे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया अमेरिका, भारत जैसे देशों से मदद भी लेते हैं और दूसरी तरफ चीन से आर्थिक लाभ उठाने के लिए उसके खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठाते हैं। ASEAN के इसी पाखंड पर बोलते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री ने गुरुवार को अपने ASEAN के समकक्षों से कहा “सिर्फ बोलो मत, कुछ कदम भी उठाओ। चीन के खिलाफ काम करते रहो, तुम्हें अमेरिका का साथ मिलेगा। कम्युनिस्ट पार्टी को अपने और अपने लोगों ऊपर हावी होने मत दो, अपने ऊपर आत्मविश्वास रखो”।

18 अगस्त को अपनी एक रिपोर्ट में हमने इसी बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे ASEAN के ये देश दोनों पक्षों की ओर से मलाई खाने की योजना पर काम कर रहे हैं और दुनिया की आँखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। ASEAN अगर चाहता तो चीन के खिलाफ बहुत कुछ कर सकता था और चीन को घुटनों पर लाने में अहम भूमिका निभा सकता था, लेकिन ASEAN मे अब तक इस लड़ाई में अपना फायदा निकालने के अलावा कोई खास काम नहीं किया है।

वर्ष 2019 में ASEAN देशों की कुल आबादी करीब 65 करोड़ थी। अगर इस ब्लॉक को एक अलग देश मान लिया जाये तो चीन और भारत के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश होता। इतनी बड़ी मार्केट होने के बावजूद ASEAN देश चीन के सामने भीगी बिल्ली की तरह व्यवहार करते हैं। ASEAN देशों की कुल GDP भी 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर बनती है, जो कि अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद सबसे ज़्यादा है।

ASEAN के पास बड़ी मार्केट के साथ-साथ बड़ी GDP भी है, जो कि चीन के खिलाफ उपयोग में लाई जा सकती है। लेकिन अभी आसियान के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता चीन के साथ व्यापार बढ़ाकर अपनी जेब भरना ही है। उदाहरण के लिए कोरोना के बाद जब दुनियाभर में व्यापार मंदा पड़ गया था, तब चीन का सबड़े बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर आसियान ही बना था। वर्ष 2020 की पहली तिमाही में चीन-आसियान का व्यापार 6 प्रतिशत तक बढ़कर रिकॉर्ड 140 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था।

यानि ASEAN चीन विरोधी लड़ाई में दोनों तरफ खेल रहा है। एक तरफ वह जहां अमेरिका के साथ होने की बात करता है, तो वहीं वह दूसरी तरफ चीन के साथ अपने व्यापार को बढ़ाता है। अब यह नहीं चलने वाला। अमेरिकी विदेश मंत्री ने साफ कर दिया है कि वे ASEAN के इस बर्ताव को और नहीं सहेंगे। अगर आसियान जल्द ही अपने इस रुख में बदलाव नहीं लाता है तो अमेरिका इन देशों पर कड़ी कार्रवाई भी कर सकता है।

Exit mobile version