हाल ही में टीएफ़आई पर हमने रिपोर्ट किया था कि रूस से भारत की बढ़ती निकटता के बीच चीन दबी ज़ुबान में रूस को धमकियां भेज रहा था। अब एक न्यूज़ रिपोर्ट सामने आई है, जो ना सिर्फ इसकी पुष्टि करता है, अपितु ये भी बताता है कि कैसे चीन ने रूस को चुनौती देकर बहुत बड़ी भूल की है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार रूस वर्तमान समीकरणों को देखते हुए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एंट्री मारने के लिए पूरी तरह तैयार है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार रूस Far East में सैन्य सक्रियता को बढ़ावा दे रहा है, यानि इंडो-पैसिफिक इलाके में वह अपनी एन्ट्री स्थापित करना चाह रहा है। गुरुवार को रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने बताया कि ये निर्णय इसलिए लिया गया था ताकि रणनीतिक रूप से अहम ‘पूर्वी क्षेत्र’ में उत्पन्न विवादों को निपटाया जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि रूस का इशारा आखिर किसकी ओर था।
TFI ने कुछ समय पहले इस बात पर प्रकाश डाला था कि चीनी मीडिया ने व्लादिवोस्टॉक पर दावा ठोका था। चीन के अनुसार व्लादिवोस्टोक पहले चीन का हिस्सा था, लेकिन दूसरे ओपियम युद्ध में हारने पर 1860 में इस पर रूसियों ने कब्जा जमा लिया था।
ज़मीन माफ़िया चीन की ओर से सबसे पहले यह दावा CGTN के पत्रकार ने किया था। उन्होंने ट्विटर पर अपना रोष प्रकट करते हुए लिखा था, “चीन में रूसी दूतावास की इस पोस्ट का बिलकुल भी स्वागत नहीं किया जाएगा। व्लादिवोस्टॉक का इतिहास यह है कि वर्ष 1860 में रूस ने यहाँ सैन्य कार्रवाई कर इसे अपने में मिला लिया था। लेकिन यह रूस के कब्ज़े से पहले चीन का Haishenwai शहर था”।
This “tweet” of #Russian embassy to #China isn’t so welcome on Weibo
“The history of Vladivostok (literally 'Ruler of the East') is from 1860 when Russia built a military harbor.” But the city was Haishenwai as Chinese land, before Russia annexed it via unequal Treaty of Beijing. pic.twitter.com/ZmEWwOoDaA— Shen Shiwei 沈诗伟 (@shen_shiwei) July 2, 2020
चीन ने अक्सर कहा है कि बीजिंग और मॉस्को मित्र नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदार हैं, क्योंकि बीजिंग जानता है कि एक सहयोगी के रूप में रूस को स्वीकारने करने का मतलब शी जिनपिंग के विस्तारवादी सपनों पर ब्रेक लगाना होगा। लेकिन Far East में रूस को चुनौती देकर चीन ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। अब Far East में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाकर रूस ने चीन को बड़ा झटका दिया है और ऐसा करने लिए चीन ने ही रूस को मजबूर किया है। रूस इसलिए भी ऐसे कदम उठा रहा है क्योंकि चीन जिस क्षेत्र पर आँख गड़ा रहा है, वहाँ रूस के परम मित्र भारत ने भी काफी निवेश किया है।
भारत रूस के Far East क्षेत्र में काफी ज़्यादा निवेश करता है, और भारत ने इस क्षेत्र के विकास हेतु रूस को 1 बिलियन डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट भी दिया था। भारत चाहता है कि व्लादिवोस्टोक से चेन्नई तक एक सशक्त समुद्री व्यापार लिंक स्थापित हो, जो ना केवल रूस से व्यापारिक संबंध और सुदृढ़ बनाएगा, बल्कि दक्षिणी चीनी सागर से गुजरते हुए चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को भी नियंत्रण में रखेगा।
यही नहीं, भारत तो बहुत पहले से चाहता था की चीन से निपटने के लिए रूस भी आगे आए, जिसके लिए भारत ने रूस को आधिकारिक तौर पर आमंत्रित भी किया था। हालांकि, तब रूस अपने ही समस्याओं में उलझा हुआ था, लेकिन अब जब बात अपने अस्तित्व पर आई है, तो रूस इस अवसर को कतई हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। इसीलिए मलक्का में नौसैनिक अभ्यास के अलावा रूस ने भारत के साथ अंडमान एवं निकोबार द्वीप में प्रस्तावित सैन्य अभ्यास को अपनी स्वीकृति भी दी है।
एक नव-औपनिवेशिक चीन से अपनी भूमि को बचाने के लिए रूस जल्द ही भारत-प्रशांत क्षेत्र में एंट्री करने वाला है, और इसीलिए वह चेन्नई से व्लादिवोस्टोक के समुद्री रूट को बढ़ावा दे रहा था, ताकि चीन के साम्राज्यवादी मंशाओं पर पानी फेरा जा सके। जब चीन ने इस साल व्लादिवोस्टोक पर दावा ठोका, तो रूस ने चीन पर अपना निशाना साधने के लिए भारत का सहारा लिया। स्ट्रेट ऑफ मलक्का के पास भारत के साथ एक नौसैनिक अभ्यास के लिए मास्को ने नई दिल्ली से हाथ मिलाया, जो इंडो-पैसिफिक में एक रणनीतिक और संकीर्ण चोकपॉइंट है और चीन की एक कमजोर नब्ज भी है। इसके जरिये रूस ने चीन को सख्त संदेश दिया।
अब भारत की सहायता से रूस चीन को यह जता दिया कि यदि ज़रूरत पड़ी, तो मॉस्को चीन को उसी के घर में पटखनी देने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाएगा। इसीलिए रूस भारत के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है, ताकि चीन को चुनौती देने में वह पूर्णतया सक्षम हो सके।
यदि भारत ने रूस के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत किया, तो ना केवल मॉस्को की बीजिंग पर निर्भरता कम हो जाएगी, अपितु चीन को उसकी औकात बताने में भी अधिक आसानी होगी।
कुछ वर्षों पहले तक रूस को चीन के साथ अपने बिगड़ते रिश्तों को अनदेखा करने के लिए मजबूर रहना पड़ता था, क्योंकि तब पूरा यूरोप रूस को अलग-थलग करने के लिए जुट जाता था। लेकिन वुहान वायरस की महामारी फैलने के कारण अब रूस को ऐसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसीलिए जब भी चीन रूस को अपनी आँखें दिखाता है, रूस के पास चीन के लिए भारत रूपी ब्रह्मास्त्र उपलब्ध है। अब हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन को केवल भारत ही नहीं, बल्कि रूस से भी चुनौती मिलेगी, और एक भी गलती होने पर ‘बेल्टे बेल्ट’ पड़ेंगे।