NDA छोड़ने के बाद अब SGPC पर अकालियों का एकाधिकार भी खतरे में आ गया है, केंद्र देगा बड़ा झटका?

भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुके शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी को मिल सकता है SAD से छुटकारा?

SGPC

(PC: हिंदुस्तान टाइम्स)

कृषि बिल का महत्वकांक्षी राजनीतिक विरोध कर एनडीए से अलग होने वाले सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल की मुसीबतें अब धीरे-धीरे बढ़ेंगी। अकाली दल का समाज कल्याण और धार्मिक कार्यों के लिए बने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी  यानि SGPC पर एकाधिकार है जो कि इसे बकायदा एक केन्द्रीय कानून के तहत मिला है। इस एकाधिकार के कारण ना सिर्फ सिखों पर अकाली दल का प्रभाव बढ़ जाता है, बल्कि इसके कारण पार्टी को बड़ा वित्तीय लाभ भी होता है। ऐसे में गठबंधन टूटने के बाद संभावनाएं हैं कि सरकार इस कानून की समीक्षा करेगी जो कि अकाली दल के लिए एक तगड़ा झटका साबित हो सकता है।

कानून के तहत प्रभाव

SGPC यानि “शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी” अकालियों द्वारा संचालित होती है। हाल ही के वर्षों में SGPC में लगातार उनके शासन के कारण सिखों के धार्मिक मामलों में बादल परिवार की पकड़ अधिक मजबूत हुई है। अकाली दल ने प्रबंधन कमेटी से जुड़े मामलों में महत्वपूर्ण आंदोलन किए थे, जिसके बाद 1925 के गुरुद्वारा अधिनियम के तहत SGPC का गठन हुआ जिसमें अब अकाली दल और बादल परिवार इसका पर्याय बन गए हैं।

पंजाब समेत हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में अकाली दल पर कमेटी पर अपने एकाधिकार के जरिये मौद्रिक भ्रष्टाचार और लूट का खेल खेलने के बड़े आरोप लगते रहे हैं। अकाली दल को गुरु ग्रंथ साहिब के जिन सरोपाओं को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी दी गई थी, उसे भी वो अच्छी तरह से नहीं निभा सका और इनकी गुमशुदगियों की रिपोर्ट के बाद अकालियों की खूब आलोचना हुई थी। यही नहीं गुरद्वारों के रख-रकाव और संचालन के नाम पर अकाली दल देश के बड़े हिस्से को राजनीतिक रूप से भी प्रभावित करता है।

समीक्षा की हुई थी शुरुआत

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2019 में ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने SGPC की चुनावी प्रक्रिया में देरी को लेकर चर्चा की थी, जिसमें चुनाव में देरी को अव्यवहारिक बताया गया था। गौरतलब है कि अकालियों का एकाधिकार चुनावों में देरी की बड़ी वजह माना जाता रहा है। सिखों के बीच तो ये धारणाएं भी बन गईं हैं कि शिरोमणि अकाली दल इस कमेटी के तहत एक मिनी संसद चला रही है। ऐसे में लोकप्रिय मत के अनुसार अगर सिखों की इस धार्मिक पवित्रता को बरकरार रखते हुए इसके दुरुपयोगों को रोकना है तो अकाली दल को इससे बाहर रखना होगा।

इस मामले में पंजाब के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि किसी भी अंतिम फैसले से पहले गृहमंत्रालय चुनावों में देरी समेत अव्यवहारिकता को लेकर उसके परिणामों का निरीक्षण कर लेना चाहता है। इसके आलावा गृह मंत्रालय शिरोमणि अकाली दल के अलग-अलग समूहों के प्रमुखों (शिरोमणि अकाली दल लोकतांत्रिक के राज्यसभा सांसद सुखदेव सिंह ढींडसा और शिरोमणि अकाली दल टकसाली के पूर्व लोकसभा सांसद रंजीत सिन्हा ब्रह्मपुरा) का रुख जानना चाहता है।

महत्वपूर्ण बात ये भी है कि इस मामले की समीक्षा की शुरुआत अकाली दल के एनडीए छोड़ने के पहले ही हुई थी। ऐसे में बीजेपी अब अकाली दल के मुताबिक समय चुनाव कराने को बाध्य नहीं है और सरकार जल्द से जल्द इसके चुनाव कराने की कोशिश करेगी‌। ऐसे में लंबे वक्त से सिखों की मिनी संसद चला रहे बादल परिवार का अब इस कमेटी से पत्ता साफ हो सकता है।

अकालियों ने टाले चुनाव

प्रबंधन कमेटी के चुनाव प्रत्येक 5 वर्षों में होते हैं। पिछले चुनाव 2011 में हुई थे जिसमें 170 सीटों में से अकालियों ने 156 पर कब्जा जमाया है। अब तक चुनावों में देरी की वजह अकाली ही थे क्योंकि उन्हें डर था कि चुनावों में उनकी राजनीतिक जमीन खिसक सकती है। ऐसे में भारत सरकार जल्द से जल्द चुनाव करवा कर अकालियों को बड़ा झटका दे सकती है।

SGPC के चुनाव बादलों को वापस एनडीए में बुलाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें सबक सिखाने के लिए कराए जाने चाहिए जिससे उनके काले कारनामों का पर्दाफाश हो सके और SGPC से अकालियों का एकाधिकार समाप्त हो सके। ऐसे में संभावनाएं हैं कि जल्द ही केन्द्र सरकार अपनी नीतियों में बदलाव करके चुनाव करवा सकती है, जिससे दिल्ली से लेकर पंजाब हरियाणा और हिमाचल तक अकालियों का एसजीपीसी के जरिये सिख धर्म को अपवित्र करने का खेल समाप्त हो सके, और बादल परिवार को उनके कुकर्मों का तगड़ा सबक मिल सके।

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