रिटायर्ड आबे चीन के लिए ज़्यादा खतरनाक हैं, क्योंकि वे देश में अब राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने में लगे हैं

PM पद से हटने के बाद भी चीन को खूनी आँसू रुला रहे हैं शिंजों आबे!

आबे

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिजों आबे ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए जिस तरह से चीन के खिलाफ एक्शन लिया, उसे पूरा विश्व जानता है। अब उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद जापान की जनता को चीन के खिलाफ एकजुट करने के लिए शनिवार को Yasukuni Shrine का दौरा किया।

ऐसा स्मारक जहां जापानी पीएम चीन के विरोध के डर से, वहाँ की यात्रा करने में कतराते रहे हैं और वह स्मारक, जो ऐतिहासिक रूप से जापान की पराक्रमी गाथा गाता है, वहाँ शिंजो आबे ने दौरा किया है। इससे न सिर्फ चीन आगबबूला होगा बल्कि यह यात्रा जापानियों को अपने दुश्मन देश के खिलाफ भी एकजुट करेगी।

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री आबे ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से इस यात्रा की घोषणा की, साथ ही स्मारक में खड़े होकर खिंचवाइ गयी खुद की एक तस्वीर भी पोस्ट की।

पिछली बार जब आबे इस स्मारक पर गए थे तब पड़ोसी देशों में बवाल मच गया था। अब इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद इस बेहद महत्वपूर्ण Yasukuni Shrine का दौरा किया है। इस बार भी चीन से बेहद कड़ी प्रतिक्रिया आने की संभावना है।

बता दें कि करीब 30 लाख जापानियों के सम्मान में बना यह स्मारक हमेशा से विवादों में रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें से कुछ लोगों को युद्ध अपराध के लिए दोषी पाया गया था। यह स्मारक युद्ध में मारे गए लोगों के सम्मान में बनाया गया था परंतु जापान ने अन्य शहीदों के साथ- साथ विश्व युद्ध के समय मित्र देशों की ट्रिब्यूनल द्वारा घोषित किए गए 14 युद्ध अपराधियों को भी इस स्मारक में सम्मान दिया है। कुछ जापानी नागरिकों का मानना है कि यासुकूनी स्मारक ऐसी जगह है जहां जाने पर वे शर्मिंदा नहीं हो सकते।

इस स्मारक को चीन और कोरिया में जापान की पिछली सैन्य आक्रामकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। जब भी जापान के किसी प्रधान मंत्री ने इस स्मारक का दौरा किया है तब-तब चीन ने कड़ी आलोचना की है।

इसकी शुरुआत 15 अगस्त, 1985 में हुई जब तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री Yasuhiro Nakasone ने Yasukuni Shrine की यात्रा की थी। तब पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने बेहद कड़ी आलोचना की और यह आलोचना इतनी तीव्र थी कि उसके बाद कई जापानी प्रधानमंत्री उस स्मारक में जाने की हिम्मत नहीं कर सके।

इसके बाद जब 13 अगस्त 2001 को, प्रधानमंत्री Junichiro Koizumi ने अपने चुनावी प्रचार के दौरान यह घोषणा की थी कि आलोचना के बावजूद वह वार्षिक आधार पर Yasukuni Shrine का दौरा करेंगे जिससे उन्हें भारी समर्थन मिला। इसके कारण ही उनको जापान की जनता ने चुनाव में भारी वोट दिया और प्रधानमंत्री बनाया।

इसी से समझा जा सकता है कि इस स्मारक का जापान में कितना महत्व है। जापान के अंदर वहाँ के लोगों के बलिदान की कहानी कहने वाला Yasukuni Shrine जापानी लोगों के दिल से जुड़ा हुआ है।

यह स्मारक न सिर्फ जापान के लोगों में राष्ट्र के प्रति प्रेम को जताता है बल्कि अपने देश के दुश्मनों के खिलाफ एक भी करता है। अब जिस तरह से शिंजों आबे अपने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद Yasukuni Shrine की यात्रा कर लोगों को एक करने में जुट चुके हैं उससे चीन के माथे पर बल पड़ना तय है क्योंकि आज के दौर में जापान के लिए सिर्फ एक ही दुश्मन है और वह है चीन।

जब आबे ने 2013 में प्रधानमंत्री के रूप में एक बार व्यक्तिगत रूप से Yasukuni Shrineका दौरा किया था, दक्षिण कोरिया और चीन बेहद नाराज हुये थे, तथा अमेरिका ने भी “निराशा” जताई थी। परंतु अब आबे किसी संवैधानिक पद पर नहीं है और उन्होंने जापान में Anti-China भावनाओं को एक करने की शुरुआत कर दी है।

यही नहीं चीन तक अपना संदेश पहुंचने के लिए उन्होंने ट्विटर पर फोटो भी पोस्ट कर दिया। यानि वह अब जापान के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना न सिर्फ जमीनी स्तर पर बल्कि सोशल मीडिया पर भी जगा रहे हैं।

इसके अलावा जापान की मौजूदा सरकार पर पहले से ही उनका प्रभाव है। आबे के बाद जापान के प्रधानमंत्री बने Yoshihide Suga पहले मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव रहे हैं तथा लंबे समय से आबे के करीबी रहे हैं। साथ में शिंजो आबे के भाई Nobuo Kishi रक्षा मंत्री पद पर है। इस सरकार ने भी शिंजो आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ाने का फैसला लिया है चाहे वो चीन के खिलाफ मुद्दा हो या अमेरिका और भारत से अपनी दोस्ती और बढ़ाना हो।

यानि देखा जाए तो शिंजों आबे ने तो पीएम पद पर रहते चीन की नाक में दम तो किया ही अब इस्तीफे के बाद वह चीन के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। चीन को अब न सिर्फ जापान से आक्रामकता को कम करना चाहिए बल्कि डरना भी चाहिए। अगर जापान अपने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जैसा बर्ताव करने पर आ गया तो इस बार चीन का नामो-निशान मिट जाएगा।

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