वैश्विक राजनीति में हो रहे बदलावों के बीच अभी तक चीन के पक्ष में दिखाई दे रहे जर्मनी ने चीन के ताज़ा झटका दिया है। जर्मनी ने इंडो-पैसिफिक में अपनी उपस्थिती दर्ज कराने की घोषणा की है और सबसे बड़ी बात ये कि उसकी ये नीति भारत केन्द्रित होगी।
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यूरोपीय संघ के वर्तमान अध्यक्ष जर्मनी ने भारत के साथ अपनी Indo-Pacific रणनीति बनाने की घोषणा की है। इस स्ट्रैटेजी से बर्लिन उस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद कर रहा है जहां चीन की गुंडागर्दी ने कई देशों को परेशान किया है।
जर्मन विदेश मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी की गई इस रणनीति में चीनी के गुंडागर्दी के कई अप्रत्यक्ष संदर्भ हैं जहां चीन ने विश्व व्यवस्था को चुनौती दी थी। बर्लिन की रणनीति में उन संस्थानों के साथ बातचीत शुरू करने का सुझाव है जहां भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation यानि BIMSTEC और The Indian Ocean Rim Association (IORA )। जर्मनी सिर्फ व्यवसाय और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि आपदा प्रबंधन में भी भारत के साथ सहयोग करने की बात कर रहा है।
जर्मनी ने स्पष्ट तौर पर यह कहा है कि, Indo-Pacific में शांति लाने के लिए वह भारत और जापान के साथ मिल कर काम करेगा और इसके लिए UN Security में सुधार लाने में भी समर्थन देगा। जर्मनी के विदेश मंत्री Heiko Maas ने इस बात पर बल दिया है कि, भारत और जापान के साथ मिल कर इंडो-पैसिफिक में अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए जर्मनी की यह नीति बेहद आवश्यक है।
इस रणनीति में दक्षिण चीन सागर में चीनी कार्रवाइयों की तीखी आलोचना की गई है। Heiko Maas ने कहा, “हम क्षेत्र में हथियारों की दौड़ देख रहे हैं, साथ ही साथ चिंता का सामना कर रहे हैं, जिसके नतीजे वैश्विक स्तर पर प्रभाव डालेंगे।” उनकी यह टिप्पणी चीन की आक्रामक कार्रवाइयों के खिलाफ दी गई है, जिसमें भारत के साथ महीनों से चल रहे गतिरोध और दक्षिण चीन सागर में उसकी गुंडागर्दी शामिल है।
यूरोप और इंडो-पैसिफिक की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक सप्लाइ चेन जुड़ी हुई हैं। प्रमुख व्यापारिक मार्ग हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र से गुजरते हैं। जर्मनी को पता है कि, दुनिया का 25 प्रतिशत समुद्री व्यापार मलक्का स्ट्रेट से होकर गुजरता है। अगर यहाँ युद्ध की स्थिति बनती है तो हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर के बीच प्रति दिन 2000 से अधिक जहाजों के परिवहन में रुकावट आएगी और सप्लाइ चेन पर गंभीर परिणाम होंगे। जर्मनी को यह भी पता है कि, मलक्का स्ट्रेट पर भारत की स्थिति बेहद मजबूत है।
यही नहीं, यूरोप के बाहर जर्मनी का सबसे बड़ा निर्यात बाजार एशिया ही है। जर्मनी यह मानता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की गुंडागर्दी से जर्मनी के भविष्य की समृद्धि और सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है। यही कारण है कि, जर्मनी अब अपनी Indo Pacific नीति भारत पर केन्द्रित करने की बात कर रहा है।
जर्मनी की नीतियों में आए बदलाव से यह समझा जा सकता है कि वह चीन की कार्रवाईयों से खुश नहीं है और अब सभी देशों के साथ अपना हित देख रहा है। जर्मनी के इस रुख से साफ हो चुका कि, यूरोपीय देश भारत की तरफ ही मुड़ रहे हैं। अमेरिका से अभी उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं दिख रही और चीन तो एक अनिश्चित देश है जो जाने कब धोखा दे दे। ऐसे में यूरोपीय देश भारत और उसके बड़े बाज़ार को देखते हुए अपनी भारी भरकम अर्थव्यवस्था को बिलकुल भी खतरे में नहीं डालना चाहते।
रही बात चीन की तो उसके विदेश मंत्री को हाल ही में पूरे यूरोप से झटका मिला और वो भी सबसे ज्यादा जर्मनी में। जब चीन के विदेश मंत्री ने जर्मनी में प्रेस कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान चेक गणराज्य को धमकी दी तो जर्मनी के विदेश मंत्री Heiko Maas ने उनके सामने यह कह दिया था कि, “हम यूरोपीय देश एक साथ सहयोग से काम करते हैं। हम अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को सम्मान देते हैं और हम उनसे भी यही उम्मीद करते हैं। धमकी यहाँ नहीं चलने वाली है।” ऐसे में जर्मनी की इस नई नीति में भारत को केन्द्रित करना चीन के लिए किसी तेज़ तमाचे से कम नहीं है। जर्मनी की आधिकारिक इंडो-पैसिफिक रणनीति में आया बदलाव पूरे यूरोप में आए बदलाव को दर्शाता है।