बिहार विधान सभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है जिसके बाद बिहार के राजनीतिक गलियारे का तापमान बढ्ने लगा है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को दिल्ली में बताया कि पहले चरण की वोटिंग 28 अक्टूबर, दूसरे चरण की वोटिंग 3 नवंबर और तीसरे चरण की वोटिंग 7 नवंबर को होगी। परंतु ऐसा लगता है कि कांग्रेस और राजद का गठबंधन चुनावों से पहले ही बिखर जाएगा। दरअसल, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के बाद अब कांग्रेस भी राजद से खफा हो गयी है। इसका कारण है चुनावों के दौरान तेजस्वी यादव की मनमानी और चुनावी पोस्टरों से लालू यादव का हटाया जाना।
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव अभी चारा घोटाले में कैद की सजा काट रहे हैं। लेकिन अब उनके ही द्वारा स्थापित की गई पार्टी राजद के चुनावी पोस्टर में उनकी तस्वीर तक का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। RJD के पोस्टर पर अब सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव ही दिखाई दे रहे हैं। पोस्टरों में न तो लालू यादव दिखाई दे रहे हैं और न ही राबड़ी देवी, न मीसा भारती और ना तेज प्रताप यादव। रिपोर्ट के अनुसार राजद कार्यालय से लेकर इनकम टैक्स गोलंबर तक जहां भी राजद की तस्वीरें लगी हैं, उसमें लालू की तस्वीरें गायब हैं। अगर किसी पोस्टर में है भी तो वह धुंधली सी फोटो है। राजद के इतिहास में यह पहला मौका है जब पोस्टर पर लालू यादव की तस्वीर नहीं है और हर जगह सिर्फ तेजस्वी हैं। पहले राजद के जितने पोस्टर लगते थे सभी में लालू प्रसाद यादव का बड़ा चेहरा होता था। एक तरफ लालू होते थे और दूसरी तरफ राबड़ी।
इस तरह से लालू यादव को नकारे जाने तेजस्वी यादव द्वारा पोस्टर में लालू यादव का चेहरा न इस्तेमाल किये जाने के कारण कांग्रेस तेजस्वी यादव का विरोध कर रही है। जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह बिहार में लालू के भरोसे ही चुनाव लड़ने जा रही है। कांग्रेस प्रवक्ता गौरव बल्लभ ने आज तक टीवी चैनल पर कहा कि लालू यादव आज हर बिहारी की पहचान हैं और उनके आशीर्वाद से महागठबंधन चुनाव में काफी अच्छा प्रदर्शन करेगी।
यानि देखा जाए तो गठबंधन की इन दोनों ही प्रमुख पार्टियों के बीच एक दरार आ चुकी है। एक तरफ कांग्रेस लालू के भरोसे चुनाव में उतरना चाहती है तो दूसरी तरफ तेजस्वी इस बार के चुनाव को पूरी तरह से अपने ऊपर केन्द्रित करना चाहते हैं। तेजस्वी के इसी रवैये के कारण एक-एक कर उनके गठबंधन की पार्टियां नाराज हो कर उनका साथ छोड़ रही है।
तेजस्वी यादव किसी की भी बात सुन ही नहीं रहे। इसी कारण से जीतन राम मांझी पहले ही महागठबंधन का साथ छोड़कर NDA में शामिल हो चुके हैं। वहीं अब उपेंद्र कुशवाहा ने भी सीट शेयरिंग पर RJD से बात न बनने पर गठबंधन छोड़ने के संकेत दे दिए हैं।
सीट शेयरिंग को लेकर भी गठबंधन में उठा विवाद अब इसे एक-एक करके तोड़ रहा है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी रालोसपा सीटों को लेकर तेजस्वी से खफा हो गयी है। एक तरह जहां रालोसपा 40 से अधिक सीटें मांग रही हैं तो वहीं राजद रालोसपा को 10 से 12 सीटों में निपटा देना चाहती है।
अब राजनीतिक गलियारे में रालोसपा के महागठबंधन से अलग होने की खबर धीरे-धीरे फैल चुकी है। अगर रालोसपा महागठबंधन से अलग होती है तो उसके पास एक ही विकल्प होगा और वह है NDA का। हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार का छत्तीश का आंकड़ा है। उपेंद्र कुशवाहा पहले जदयू में थे, लेकिन नीतीश से अनबन के चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी थी जिसके बाद उन्होंने एक नई पार्टी का गठन करते हुए वर्ष 2013 में रालोसपा बनाई। ऐसे में यह दिलचस्प होगा कि रालोसपा वापस NDA में जाती है या नहीं। उपेंद्र बिहार में कोइरी जाति से आते हैं। बिहार में कोइरी कुल आबादी में 6 से 7% के आसपास है। उनके महागठबंधन से विदाई का अर्थ है ये वोट भी उसके हाथ से निकालना।
ऐसा लगता है चुनाव से पहले अब कांग्रेस और रालोसपा भी तेजस्वी के फैसलों के कारण महागठबंधन का साथ न छोड़ दे। कांग्रेस ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जो स्वेच्छा से या मजबूरी में राजद के साथ चुपचाप चल रही है परंतु अब वह भी नाराज हो चुकी है। लालू यादव के जेल जाने और यादव परिवार में कलह पहले ही राजद के लिए मुसीबत बन चुकी है और अब सहयोगी पार्टियां भी साथ छोड़ रही हैं। कहीं ऐसा न हो कि विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन के अस्तित्व ही खत्म हो जाये।