चीनी कम्युनिस्ट सरकार अक्सर दुनिया के सामने यह दावे करती है कि उसे अपने राजनीतिक तंत्र को बाहर एक्सपोर्ट करने में कोई रूचि नहीं है। हालांकि, यह भी सच्चाई है की चीन जिस भी देश में अपनी पकड़ मजबूत करता जाता है, वहां की सरकार लोकतन्त्र का रास्ता छोड़कर सत्तावादी शासन का रास्ता अपनाने लगती है। यही हमें यूरोप के देश हंगरी में भी देखने को मिला है। 1 दशक से भी ज़्यादा समय से हंगरी की सत्ता संभालने वाले प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन तेजी से चीन के साथ नज़दीकियां बढ़ाते चले जा रहे हैं, जिसका नतीजा यह है कि अब उनपर अपने यहां लोकतन्त्र का गला घोंटने के आरोप लगने लगे हैं। कोरोना की दूसरी वेव आने के कारण यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि इससे हंगरी की इकॉनोमी को गहरा झटका लगने वाला है। सरकार के बढ़ते सत्तावादी रवैये और गिरती अर्थव्यवस्था के बीच हंगरी का विपक्ष भी एकजुट होकर वर्ष 2022 के चुनावों में विक्टर को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर चुका है। ऐसे में हंगरी से जल्द ही चीन के प्यारे और दुलारे प्रधानमंत्री की विदाई हो सकती है।
पिछले कुछ सालों में चीन ने यूरोप पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए जर्मनी के साथ-साथ सर्बिया, क्रोएशिया और हंगरी जैसे देशों को अपनी पकड़ में करने की भरपूर कोशिश की है। हंगरी के प्रधानमंत्री और चीन के बीच नज़दीकियों को आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं। वर्ष 2018 में विक्टर ओर्बन ने यूरोपियन यूनियन को धमकी देते हुए कहा था कि अगर इनफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए उन्हें EU से पैसा नहीं मिलता है तो वे चीन के पास चले जाएंगे। आज वर्ष 2020 में यही होता दिखाई भी दे रहा है। इसी वर्ष कोरोना के बाद अप्रैल महीन में हंगरी ने Budapest और Belgrade के बीच रेलवे लिंक स्थापित करने के लिए चीन से 2 बिलियन यूरो का कर्ज़ लिया है। हालांकि, हैरानी की बात यह है कि हंगरी की सरकार ने इस कर्ज़ से जुड़े नियम एवं शर्तों को 10 सालों के लिए state secret घोषित करने का निर्णय लिया है। यह अपने आप में कई इस समझौते की पारदर्शिता को लेकर कई बड़े सवाल खड़ा करता है। गौरतलब है कि इस सब के अलावा हंगरी की सरकार ने अप्रत्यक्ष तौर पर चीन के Hong-Kong सुरक्षा कानून का समर्थन किया था, और EU द्वारा चीन के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन लेने की राह में रोड़ा अटकाने का काम किया था।
चीन के प्यारे इस प्रधानमंत्री ने कोरोना के दौरान ही कई नए कानून बनाकर सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने का काम किया है। कोरोना की रोकथाम की आड़ में विक्टर सरकार ने कई ऐसे कानून बना डाले हैं जिसके करण इस देश में अभिव्यक्ति करने की आज़ादी ख़तरे में आ गयी है। उदाहरण के लिए सरकार ने Criminal Code में बदलाव करते हुए यह लिखा है कि “कोरोना के रोकथाम के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों में अवरोध उत्पन्न करने के लिए किसी भी व्यक्ति को 5 सालों के लिए जेल में डाला जा सकता है”। इस कानून का विरोध करते हुए देश के मीडिया संगठनों का कहना है कि इसके माध्यम से सरकार आसानी से अपने विरोधियों को जेल में भर सकती है।
विक्टर के नेतृत्व में अब हंगरी के सामने बड़ी आर्थिक चुनौती भी आ धमकी है। इस वर्ष अप्रैल में आई कोरोना की पहली वेव को झेलने में तो हंगरी सफल रहा था, लेकिन अब हंगरी में दूसरी वेव आने का अंदेशा बढ़ गया है, जिसके कारण देश की इकॉनमी को गहरा झटका लग सकता है। हंगरी की इकॉनोमी में ऑटो सेक्टर की बड़ी भूमिका है और कोरोना ने सबसे ज़्यादा इसी सेक्टर को प्रभावित किया है। यही कारण था कि इस साल के दूसरे क्वार्टर में देश की GDP में 13.6% की गिरावट देखने को मिली थी। साथ ही इस यूरोपियन देश में अब तक करीब 2 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं। वर्ष 2020 के पहले 7 महीनों में देश में कारों का उत्पादन 24 प्रतिशत गिर गया था। हंगरी में विक्टर की लोकप्रियता का बड़ा कारण इकॉनमी का बेहतर प्रदर्शन करना, और कड़ी इमिग्रेशन पॉलिसी ही रहा है। वर्ष 2010 में एकतरफा जीत के बाद यह पहली बार होगा कि देश के ऑटो सेक्टर को इतना बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण वर्ष 2022 के चुनावों में उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
विक्टर के सामने खड़ी होती इस बड़ी चुनौती का फायदा उठाने के लिए अब देश की विपक्षी पार्टियां भी मैदान में उतरती दिखाई दे रही हैं। पिछले महीने ही देश की 6 बड़ी विपक्षी पार्टियों ने विक्टर को कुर्सी से हटाने के लिए एक “महागठबंधन” किया है, जिसने वर्ष 2022 के लिए अभी से मुहिम छेड़ दी है। इन विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि विक्टर अपनी “illiberal democracy” की नीति को आगे बढ़ाकर यूरोप के मूल्यों का गला घोंट रहे हैं। कुल मिलाकर हंगरी में अब PM विक्टर के बुरे दिनों का दौर आने वाला है। 10 सालों के शासन में पहली बार उनकी कुर्सी के लिए खतरा पैदा होता दिखाई दे रहा है। बेलारूस में रूस के हाथों पटखनी खाने और जर्मनी के बदले तेवरों के बाद चीन के हाथ से हंगरी भी फिसलने वाला है। अगर ऐसा होता है तो यूरोप से CCP के दाग का हमेशा-हमेशा के लिए सफाया हो जाएगा।