भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े के बाद जस्टिस वी एन रमन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे। अभी से उनके वक्तव्य से लगता है कि वह भी वर्तमान न्यायाधीश की तरह ही एक्टिविज्म के नाम पर एजेंडा चलाने वालों के लिए बुरे दिन लेकर आएंगे।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए न्यायमूर्ति आर बानुमथि द्वारा लिखी पुस्तक के लॉन्च पर दिए अपने भाषण में उन्होंने कहा “न्यायाधीशों को उनके बचाव में बोलने से रोका जा रहा है। आज न्यायाधीश आलोचना का आसान शिकार हो गए हैं और विशेषतः सोशल मीडिया के कारण जज मजेदार गप्पेबाजी की विशेष वस्तु बन गए हैं। एक झुठी धारणा बन गई है कि जज अपने आलीशान बंगलों में विलासी जीवन जीते हैं। यह सत्य नहीं है। न्यायाधीशों को अपनी स्वतंत्रता के लिए अपने सामाजिक जीवन को संतुलित रखना होता है।” उन्होंने आगे कहा ” न्यायाधीशों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कानून और प्रशासन की उन्हीं संस्थाओं द्वारा कटौती की जा रही है, जो दूसरों की आजादी की रक्षा करती है और इनका इस्तेमाल न्यायालय और न्यायाधीशों की आलोचना में किया जा रहा है।”
यह इशारा वामपंथी एवं लिबरल विचारधारा के उन वकीलों की ओर किया गया है, जो लगातार सुप्रीम कोर्ट की छवि खराब कर रहे हैं एवं उनके निर्णयों पर प्रश्न उठा रहे हैं। पिछले कुछ सालों में प्रशांत भूषण और अन्य ऐसे ही एजेंडवादी लोग लगातार सप्रीम कोर्ट पर हमलावर रहे हैं। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के कार्यकाल में एक महिला द्वारा उनपर यौन शोषण का आरोप लगा था, तब यह खबरें आयी थीं कि प्रशांत भूषण ने उसकी मदद की थी। यह न्यायालय और एक्टिविस्ट धड़े के बीच बढ़ते टकराव को दिखाता है।
बाद में सीनियर वकील एम एल शर्मा ने अपने एक पिटीशन में यह उल्लेखित किया कि प्रशांत भूषण, उनके पिता शशि भूषण, इंदिरा जय सिंह और अन्य कई लोगों ने मुख्य न्यायाधीश के ऊपर हमले करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने ही पूर्व महिला कर्मचारी को चीफ जस्टिस के विरुद्ध कंप्लेंट करने में मदद की। उन्होंने मामले पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गोगोई से तुरंत सुनवाई की मांग की जिसे मुख्य न्यायाधीश द्वारा खारिज कर दिया गया एवं उन्हें किसी अन्य बेंच के सामने यह मामला उठाने को कहा गया। संभवतः गोगोई यह नहीं चाहते थे कि उनके ऊपर लगे आरोपों की सुनवाई उनके नेतृत्व वाली बेंच करे।
बाद में एक अन्य मामले में जब प्रशांत भूषण का बड़बोलापन दुबारा सामने आया और उन्होंने खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता पर प्रश्न खड़े किए तो कोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस दिया। सुनवाई में जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने उन्हें दोषी पाया लेकिन बाद में 1 रुपये के फाइन पर ही उनको माफी दे दी गई।
वास्तव में न्यायालय पर लगातार हो रहे हमलों से सिर्फ न्यायाधीश ही नहीं वरिष्ठ वकील भी परेशान हैं। प्रशांत भूषण द्वारा कोर्ट की अवमानना पर वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भी उनकी आलोचना की एवं अनावश्यक रूप से सरकार और न्यायालय पर हमलों की निंदा की। प्रशांत भूषण और उनके जैसे अन्य लोगों के कारण जनता में लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति विश्वास कम हो रहा है। इन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी को अपना हित साधने का जरिया बना लिया है। जब भी कोई फैसला इनके अनुरूप नहीं होता, ये न्यायालय की निष्पक्षता पर सवाल करने लगते हैं।
हर छोटी छोटी समस्या पर, या बिना सबूत जुटाए केवल कल्पनाओं के आधार पर PIL दाखिल करना प्रशांत भूषण जैसे लोगों की आदत है। राफेल का ही उदाहरण लें, तो केवल राहुल गांधी की बात रखने के लिए ही प्रशांत भूषण ने PIL दाखिल कर दी। उनके पास इस मामले में कोई सबूत नहीं था। PIL एवं RTI के इस खेल से त्रस्त होकर CJI बोबड़े ने कहा था कि RTI फाइल करना एक धंधा हो गया है।
सच यही है कि इन सभी लोगों का एक्टिविज्म अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति का साधन है और यही बात सर्वोच्च न्यायालय से टकराव का कारण है। अगले मुख्य न्यायाधीश श्री रमन्ना का बयान बताता है कि आने वाले समय में वो ऐसे ऐक्टिविस्टों के किसी भी एक्शन को हल्के में नहीं लेने वाले।