चीन ने एक बार फिर से ताइवान को अपने फाइटर जेट्स भेज कर डराने की कोशिश है। बुधवार को ताइवान के दक्षिण-पश्चिम में कई चीनी फाइटर जेट्स ने ताइवानी हवाई क्षेत्र में बिना अनुमति के प्रवेश कर इस द्वीप देश को डराने की एक और कोशिश की।
ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि कई चीनी Su-30 और J-10 फाइटर जेट्स बुधवार सुबह दक्षिण-पश्चिम में ताइवान के Taiwan’s Air Defense Identification Zone (ADIZ) में घुस आए जिसके बाद ताइवानी एयर फोर्स को उन विमानों को खदेड़ने के लिए 23 वार्निंग सिग्नल देने पड़े। मंत्रालय ने बताया कि ताइवान के National Chung-Shan Institute of Science and Technology (NCSIST) ने जैसे ही वायु रक्षा मिसाइलों या सामरिक बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण शुरू किया वैसे ही कई PLAAF युद्धक विमानों ताइवान के ADIZ में घुस आए। यहाँ स्पष्ट है कि चीन को ताइवान द्वारा किया जा रहा बैलिस्टिक मिसाइलों की टेस्टिंग रास नहीं आ रही है और वह अपने युद्धक विमानों के जरीये ताइवान को डरना चाहता है। इस छोटे से देश की बढ़ती सैन्य ताकत से चीन की बौखलाहट अब माथे की लकीर बन चुकी है और वह किसी भी हालत में ताइवान को अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता है।
ताइवान नियमित रूप से चीनी सैन्य गतिविधियों के साथ-साथ कई बार वायु सेना की पेट्रोलिंग की शिकायत कर चुका है, जिस पर चीन कहता है कि इस तरह की कवायद उसकी संप्रभुता की रक्षा के संकल्प को प्रदर्शित करती है। पिछले कुछ महीनों में चीन कई बार ताइवान की सीमा में अपने लड़ाकू विमानों को भेज चुका है। पिछले ही महीने चीन ने 20 से अधिक फाइटर जेट्स को ताइवान स्ट्रेट की मध्य रेखा के आस पास भेजा था।
इससे ताइवान के साथ-साथ बाकी देश भी चौकन्ने हो गए थे और ताइवान की सैन्य रूप से मजबूत बनाने का काम शुरू किया। इसमें सबसे आगे अमेरिका रहा जिसने कुछ ही दिनों पहले ताइवान के लिए सतह से हवा में मार कर दुश्मन के प्लेन को नेस्तनाबुंद कर देने वाली पैट्रियाट मिसाइलों के विकास के लिए 620 मिलियन डॉलर के पैकेज को मंजूरी दी थी।
इससे पहले अमेरिका ने ताइवान को 180 मिलियन अमेरिकी डॉलर में 18 MK-48 Mod6 टॉरपीडो और संबंधित उपकरणों की बिक्री को भी मंजूरी दे चुका है। अमेरिका शुरू से ही ताइवान को चीन के खिलाफ मजबूत करता आ रहा है और इसी बात से चीन बुरी तरह से चिढ़ा हुआ है। अधिकांश देशों की तरह, अमेरिका का भी ताइवान के साथ कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं है, लेकिन आमेरिका ताइवान को आत्मरक्षा प्रदान करने के लिए हथियार की आपूर्ति में कोई कमी नहीं रखना चाहता है।
ताइवान ने अमेरिका से दर्जनों F-16 फाइटर जेट, M1A2T एब्राम टैंक और पोर्टेबल स्टिंगर एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल भी खरीदा हैं। पिछले वर्ष 108 जनरल डाइनामिक्स कॉर्प M1A2T अबराम टैंक और 250 स्टिंगर मिसाइल हैं के लिए भी ताइवान ने अमेरिका से सौदा किया था।
यही नहीं ताइवान ने आने वाले बजट में भी रक्षा बजट को 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर 15.42 बिलियन डॉलर करने का निर्णय लिया था जिसके बाद से चीन की चिंता और बढ़ गयी है। ताइवान ने यह फैसला चीनी विमानों की लगातार बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए ही लिया। उसे यह पता है कि चीन आज के समय में वैश्विक दबाव का सामना कर रहा है और इस दबाव में अपने आप को मजबूत दिखाने के लिए वह ताइवान पर अपनी पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है। ऐसी स्थिति में अपने आप को सैन्य रूप से मजबूत करना ही ताइवान के पास एक मात्र विकल्प बचा था।
अब एक छोटे से द्वीप देश ताइवान की इसी बढ़ती सैन्य ताकत से चीन की साँसे फूल रही है और डरा कर अपनी प्रासंगिकता जाहीर करने की कोशिश कर रहा है। हर बार मुंह की खाने के बाद भी चीन का इस तरह से ताइवान के हवाई क्षेत्र में अपने फाइटर जेट्स भेजना उसकी बेचैनी को ही दर्शाता है। यही नहीं वह विश्व के अन्य देशों को यह भी दिखाना चाहता है कि वो अमेरिका से कमजोर नहीं है, हालांकि सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। अमेरिका ट्रेड वार से लेकर दक्षिण चीन सागर तक चीन को तहस-नहस कर चुका है, फिर भी चीन सुधारने का नाम नहीं ले रहा है। अब तो ताइवान से भी वह वह डरने लगा है और अगर ताइवान चीन के हाथ से निकाल गया तो यह चीन के इतिहास की सबसे बड़ी हार होगी।
एक बात तो स्पष्ट है कि अमेरिका सहित सभी देश मिलकर चीन पर कितना भी दबाव बना ले पर चीन अपने विस्तारवादी नीति या Wolf Warrior Diplomacy को नहीं छोड़ने वाला है क्योंकि आज उसके पास किसी अन्य तरह की नीतियों का विकल्प बचा ही नहीं है।