खलीफ़ा बनने के सपने देखने वाले तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन अब आखिरकार ऐसी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं, जो न सिर्फ उनकी बल्कि उनके करोड़ों देशवासियों की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदलकर रख देगी। अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच विवादित Nagorno-Karabakh क्षेत्र को लेकर दोनों देशों में जारी विवाद को और भड़काते हुए तुर्की अब आधिकारिक तौर पर यहाँ अज़रबैजान का समर्थन दे रहा है। हालांकि, उधर रूस अर्मेनिया के साथ खड़ा है, जिसके कारण दक्षिण Caucasus क्षेत्र में बड़े स्तर के युद्ध होने की आशंका बढ़ गयी है।
यहाँ यह बात स्पष्ट कर दें कि तुर्की अर्मेनिया के खिलाफ युद्ध की धमकी देकर सिर्फ Yerevan को ही नहीं, बल्कि मॉस्को को भी ललकार रहा है। अर्मेनिया क्षेत्र में रूस का बड़ा रणनीतिक साझेदार है, और NATO के सदस्य तुर्की को काबू में रखने के लिए रूस अक्सर इसी देश के जरिये अपनी रणनीति को आगे बढ़ाता है। NATO की ही तर्ज पर अर्मेनिया और रूस Collective Security Treaty Organization यानि CSTO के सदस्य हैं, जिसके मुताबिक अगर किसी भी CSTO सदस्य पर कोई हमला होता है तो सभी वह सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है। ऐसे में तुर्की अगर अर्मेनिया पर हमला करने का प्रलयंकारी फैसला लेता है, तो उसे रूस की मिसाइलों का हमला सहने के लिए भी तैयार रहना होगा।
ऐसा लगता है कि अर्मेनिया-अज़रबैजान के विवाद का फायदा उठाकर यहाँ भी एर्दोगन ने अपने इस्लामिस्ट एजेंडे को आगे बढ़ाने का अच्छा मौका ढूंढ लिया है। अर्मेनिया के दावों के मुताबिक अंकारा ने अपने करीब 4000 लड़ाकों को सीरिया से अज़रबैजान भेजा है, ताकि वे अर्मेनिया के खिलाफ बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे सकें। तुर्की इससे पहले लीबिया और सीरिया में भी इन्हीं मसूबों पर काम कर चुका है। ऐसी स्थिति में अर्मेनिया ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुर्की पर दबाव बनाकर उसे इस विवाद में हस्तक्षेप करने से रोकना चाहिए। अर्मेनिया के PM ने यह भी कहा है कि तुर्की द्वारा भड़काया हुआ विवाद पूरे दक्षिण Caucasus क्षेत्र को बर्बाद कर देगा।
I call on the international community to use all of its influence to halt any possible interference by Turkey, which will ultimately destabilize the situation in the region. This is fraught with the most devastating consequences for the South Caucasus and neighboring regions.
— Nikol Pashinyan (@NikolPashinyan) September 27, 2020
एर्दोगन Nagorno-Karabakh क्षेत्र को “आज़ाद” कराकर इस्लामिक दुनिया में अपना वर्चस्व और मजबूत करना चाहते हैं और ऐसे में वे अर्मेनिया-अज़रबैजान के विवाद का इस्तेमाल अपने खलीफ़ा बनने के सपनों को पूरा करने में करना चाहते हैं। उनके एक बयान के मुताबिक “अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत इस मुद्दे को सुलझाने में पिछले 30 सालों से असफल रही हैं। अब समय आ गया है कि Nagorno-Karabakh क्षेत्र को अर्मेनिया के अवैध कब्जे से आज़ाद कराया जाए”।
अर्मेनिया पर हमला बोलकर वह रूस को एक ऐसा मौका दे देगा, जिसकी पुतिन को पिछले कई महीनों से तलाश है। रूस पहले ही तुर्की के खिलाफ लीबिया और सीरिया में लड़ रहा है। उदाहरण के लिए तुर्की द्वारा अपनी हरकतों से बाज़ ना आने के कारण सीरिया में रूस ने शांति वार्ता को अब रद्द कर दिया है, और इद्लिब शहर पर बमबारी करनी भी शुरू कर दी है। मार्च में ऐसे ही हमले में तुर्की के करीब 60 सैनिक मारे गए थे। ऐसे में अगर तुर्की अर्मेनिया पर पहली गोली चलाता है, तो रूस उसकी सहायता के लिए विवश होगा और वह स्थिति एर्दोगन के लिए खतरे से खाली नहीं होगी।
आक्रामक तुर्की के खिलाफ बड़ा एक्शन लेकर न सिर्फ रूस अर्मेनिया की रक्षा कर पाएगा बल्कि वह मध्य एशिया के देशों में खो रहे अपने प्रभुत्व को भी वापस हासिल कर सकेगा। रूस द्वारा अर्मेनिया की सुरक्षा से मध्य एशिया के सभी देशों को एक सकारात्मक सदेश जाएगा, जो इन देशों में रूस की स्थिति को मजबूत करेगा। अर्मेनिया में रूस के दो military bases हैं, और साथ ही साथ रूस समय-समय पर अर्मेनिया को हथियार सप्लाई करता रहता है। तुर्की के इस्लामिस्ट एजेंडे को रोकने में ग्रीस और यूरोप तो अब तक असफल रहे हैं, लेकिन पुतिन को कम आंकना एर्दोगन की सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली है।