“हम LAC को नहीं मानते”, चीन ने लद्दाख पर दावा ठोका, इधर भारत ने अक्साई चिन पर दावा और मजबूत कर लिया

चीन की चालबाज़ी उसी पर उल्टी पड़ गयी

LAC

भारत ने चीन को चेतावनी भरे अंदाज में मंगलवार को कहा कि उसने कभी 1959 में चीन द्वारा खींची गयी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को एकतरफा रूप से स्वीकार नहीं किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि यह स्थिति चीनी पक्ष के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि “भारत ने तथाकथित एकतरफा परिभाषित 1959 लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को कभी स्वीकार नहीं किया है।

दरअसल, चीन ने भारत के लद्दाख क्षेत्र को अपना हिस्सा मानते हुए पूरे क्षेत्र पर अधिकार का दावा किया था और  कहा था कि वह लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने को मान्‍यता नहीं देता है। चीन के विदेश मंत्रालय के वांग वेनबिन ने कहा कि भारत ने लद्दाख की स्‍थापना अवैध तरीके से की है। चीनी प्रवक्‍ता ने यह भी कहा कि हम विवादित इलाके में भारत के सैन्‍य उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए आधारभूत ढांचे के निर्माण का भी विरोध करते हैं। यही नहीं ,कुछ दिनों पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा था कि चीन के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष Zhou Enlai के उस पत्र में प्रस्तावित LAC का पालन करता है जो उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को 7 नवंबर, 1959 में लिखा था। यह कई दशकों में पहली बार है जब चीन ने स्पष्ट रूप से भारत द्वारा लगातार 61 साल पहले नकारे गए प्रस्ताव को दोहराते हुए अपनी स्थिति को रेखांकित किया।

इस पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत ने कभी भी 1959 के प्रस्तावित LAC को स्वीकार ही नहीं किया है। उन्होंने कहा कि, “कई द्विपक्षीय समझौतों जैसे 1993 में Agreement on Maintenance of Peace and Tranquillity, 1996 में सैन्य क्षेत्र में Agreement on Confidence Building Measures (CBMs) , 2005 में Protocol on Implementation of CBMs में भारत-चीन सीमा प्रश्न के निपटान के लिए भारत और चीन एलएसी के स्पष्टीकरण और पुष्टि के लिए प्रतिबद्ध है।”

उन्होंने कहा, “इसलिए, अब चीनी पक्ष द्वारा केवल एक LAC का दावा इन समझौतों में चीन द्वारा की गई गंभीर प्रतिबद्धताओं के विपरीत है।” विदेश मंत्रालय ने लगभग दो दशकों के लिए सीमा को स्पष्ट करने और पुष्टि करने की प्रक्रिया में प्रगति की कमी के लिए चीनी पक्ष को जिम्मेदार ठहराया। श्रीवास्तव ने कहा कि वास्तव में, दोनों पक्ष 2003 तक एलएसी को स्पष्ट करने और पुष्टि करने की कवायद में लगे थे, लेकिन यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी क्योंकि चीनी पक्ष ने इसे आगे बढ़ाने की इच्छा नहीं दिखाई।

उन्होंने बताया कि 10 सितंबर को मॉस्को में एक शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के दौरान अलग द्विपक्षीय बैठक में बातचीत के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच हुए समझौते में भी चीनी पक्ष ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।  श्रीवास्तव ने कहा, “हम इसलिए उम्मीद करते हैं कि चीनी पक्ष ईमानदारी और विश्वासपूर्वक सभी समझौतों और समझ को पूरी तरह से पालन करेगा और एलएसी की एकतरफा व्याख्या को आगे बढ़ाने से बचना होगा।”

अब भारत ने चीन से स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि उसने कभी भी 1959 में किए गए दावे को मानता ही नहीं क्योंकि ये चीन की तरफ से एकतरफा तय किए गए थे। यानि स्पष्ट शब्दों में भारत ने यह भी कह दिया है कि लद्दाख के क्षेत्र आक्साई चिन जिस पर चीन दावा करता है वह भारत का है। इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होनी चाहिए। भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही साफ कर दिया था कि आक्साई चिन भारत का हिस्सा है। अब विदेश मंत्रालय के बयान से चीन को यह समझ लेना चाहिए कि अब उसकी वह दादागिरी नहीं चलने वाली है जब वह कुछ भी कह कर भारत पर दबाव बना लेता था। यह नया भारत है और यह कूटनीति के साथ आक्रमण की नीति समझता भी है और समय आने पर पालन भी करता है।

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