आखिर कैसे Macron एक लेफ्ट विंग राजनीतिज्ञ से राइट विंग नेता बन गए ? कारण दिलचस्प है

सही कहा है किसी ने, परिस्थितियां सही दिशा दिखा ही देती हैं

इम्मैनुएल मैक्रोन

पिछले कुछ समय से वैश्विक राजनीति में ज़बरदस्त उथल-पुथल हुई है। पहले की तरह अब वामपंथियों का बोलबाला नहीं चलता। पहले नरेंद्र मोदी और फिर डोनाल्ड ट्रम्प की विजय से दुनिया भर में दक्षिणपंथी विचारधारा को काफी बढ़ावा मिला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि दक्षिणपंथ का भविष्य काफी उज्ज्वल है। लेकिन इस बीच कुछ ऐसे नेताओं का भी उदय हुआ है, जो शुरुआत में तो दक्षिणपंथी नहीं थे लेकिन हालात ने उन्हें इस विचारधारा को गले लगाने पर विवश कर दिया। इन्हीं में से एक हैं फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैनुएल मैक्रोन, जो आजकल राष्ट्रवादी विचारधारा का काफी समर्थन कर रहे हैं। 

लेकिन ये बदलाव यूं ही नहीं आया। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण भी हैं। इनमें से एक है मैक्रोन की पार्टी को हाल ही में मिली पराजय। मैक्रोन की पार्टी La Republique En Marche यानी LREM पार्टी को हाल ही में हुए स्थानीय चुनावों में किसी भी बड़े शहर में विजय नहीं प्राप्त हुई। इसके अलावा मैक्रोन ये भी भली-भांति समझ गए कि वामपंथ को स्वीकारना खतरे से खाली नहीं होगा, क्योंकि वामपंथी नेता भी उनसे बेहद चिढ़ते हैं इसीलिए ये तथ्य एक कारण हो सकता है कि, मैक्रोन इस समय अपने आप को पूर्णतया दक्षिणपंथी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

लेकिन यही एक कारण नहीं है। पिछले माह राष्ट्रपति मैक्रोन ने अपने सरकार में कई दक्षिणपंथी लोगों को जगह दी, जिनमें से प्रमुख हैं जॉन कैस्टेक्स, जिन्होंने बतौर प्रधानमंत्री शपथ ली है। इसके अलावा जेराल्ड डार्मिनिन और ब्रूनो ले मैयर, जिन्होंने बतौर गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री के तौर पर शपथ ली है। राजनीतिक विश्लेषक एलेक्सिस पाउलिन के अनुसार, मैक्रोन की रणनीति स्पष्ट है – 2022 के चुनाव के मद्देनजर अपने आप को इतना दक्षिणपंथी बना लो कि, विपक्षी पार्टी LR अथवा Les Republicains से कोई मजबूत उम्मीदवार ही न खड़ा हो पाये।

इसके अलावा एक और कारण है, जिसने मैक्रोन को पूर्णतया राष्ट्रवादी एवं दक्षिणपंथी में परिवर्तित कर दिया है, और वह है इस्लामिक आतंकवाद। मैक्रोन ने जब फ्रांस के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी, तब फ्रांस भी जर्मनी और स्वीडेन की तरह इस्लामिक प्रवासियों की गुंडागर्दी और आतंकवाद से काफी त्रस्त था। हालत तो ऐसी हो गई थी कि, यूके की भांति फ्रांस में भी ghetto ज़ोन बनने लगे थे। इससे फ्रांस की अखंडता पर प्रश्न उठने लगा।

इसी बीच फ्रेंच समाचार पत्र चार्ली हेब्डो, जिसके दफ्तर पर 2015 में कट्टरपंथी मुसलमानों ने हमला किया था, अब दोबारा उन्हीं कार्टून्स को प्रकाशित करना चाहता है। लेकिन इस बार चार्ली हेब्डो को स्वयं मैक्रोन से समर्थन मिला है जिन्होंने कहा, ये राष्ट्र के हाथ में नहीं है कि किसी पत्रकार के मत अथवा उसके विचारों पर कोई निर्णय पारित करे, क्योंकि हमारे यहाँ प्रेस को पूरी आज़ादी है!”

इसके अलावा मैक्रोन ने रणनीतिक दृष्टिकोण से भी दक्षिणपंथ को अपनाया है। फ्रांस, इटली जैसे देशों के सामने अब तुर्की के रूप में एक नया खतरा उभर के सामने आ रहा है और इस समय फ्रांस ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहेगा, जिससे तुर्की को तनिक भी लाभ मिले।

इसीलिए फ्रांस ने अब तुर्की द्वारा पूर्वी मेडिटेरेनियन में वर्चस्व जमाने की मंशाओं को खुलेआम चुनौती दी है। इसके अलावा जहां-जहां तुर्की टांग अड़ा रहा है वहाँ-वहाँ फ्रांस उसे मुंहतोड़ जवाब दे रहा है, चाहे पूर्वी मेडिटेरेनियन का क्षेत्र हो, या फिर लीबिया। फ्रांस ने खुलेआम तुर्की के विरोधियों की सहायता हेतु अपने अत्याधुनिक राफेल फाइटर जेट्स तैनात कराये हैं।

अब वास्तविक कारण चाहे जो भी हो, पर फ्रांस को सशक्त बनाने की लड़ाई में फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष ने अपना पक्ष स्पष्ट चुना है। 2022 के चुनावों में जो मैक्रोन अभी तक पिछड़ रहे थे, अब वो वापिस फ्रांस के राष्ट्रपति बनने की होड़ में है।

Exit mobile version