MBS बनाम किंग सलमान- इस लड़ाई का नतीजा बताएगा कि सऊदी अरब खुशहाल रहेगा या शमशान बनेगा

सऊदी में जारी है “विज़न 2030” बनाम “फिलिस्तीन के हक” की लड़ाई!

सलमान

कुछ ही दिनों पहले संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल के बीच राजनयिक सम्बन्धों को पुनर्स्थापित करने वाला ऐतिहासिक समझौता हुआ था। तब यह उम्मीद लगाई गयी थी कि जल्द ही सऊदी अरब भी इसी तरह का कदम उठा सकता है। परंतु अब इसी डील ने सऊदी के शाही परिवार के बीच दरार डाल दी है। किंग सलमान और उनके उत्तराधिकारी प्रिंस MBS इजरायल के साथ सम्बन्धों को लेकर एक दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे हैं। पिता इजरायल के साथ सम्बन्धों के विपक्ष में है तो बेटा पक्ष में। सऊदी अरब में इस शक्ति संघर्ष को कौन जीतता है, यह तय करेगा कि देश बचता है या गुमनामी में चलेगा।

वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब के सम्राट सलमान बिन अब्दुलअजीज और उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच इजरायल और बहरीन के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने के मुद्दे पर दरार पैदा हो गयी है।

WSJ की रिपोर्ट में कहा गया है कि किंग सलमान ने इजरायल का बहिष्कार करने और फिलिस्तीनी राज्य का समर्थन करने वाले अरब जगत की स्थिति के प्रति निष्ठा का समर्थन किया है तो वहीं क्राउन प्रिंस MBS इजरायल के साथ व्यापार की संभावनाओं और ईरान की बढ़ती मनमानी को शत्रुता की भावना से देखते हैं।

एमबीएस ने अपने पिता को सूचित भी नहीं किया था कि UAE और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध फिर से शुरू हो रहे हैं। उन्हें यह पता था कि कि इस समझौते में फिलिस्तीनी राज्य का उल्लेख नहीं होने के के आधार पर उनके पिता किंग सलमान विरोध करेंगे।

सऊदी के किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत के दौरान आपत्ति जताते हुए कहा था कि फलस्तीन समस्या का समाधान हुए बिना इजरायल के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते।

इस सौदे के कारण ही अब किंग सलमान ने अपने विदेश मंत्री, अदेल अल-जुबिर को आदेश दिया है कि पूर्व 1967 के आधार पर स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश के पूर्वी यरुशलम को राजधानी घोषित कर सऊदी का समर्थन को बहाल कर दिया जाए।

यहाँ यह ध्यान देने वाली बात यह है कि अब इन बाप बेटों की नीतियों के ऊपर ही सऊदी अरब का भविष्य टीका है। इस दरार या यूं कहे लड़ाई में जिसकी जीत होगी उससे यह निर्भर करेगा कि सऊदी अरब की वैश्विक प्रासंगिकता बचेगी या वह भी पाकिस्तान कि तरह एक अप्रासंगिक देश बन जाएगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब के शाही परिवार में लड़ाई के बावजूद इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर देश के अंदर माहौल बदल रहा है। सउदी अरब की युवा पीढ़ी आज अपने बुजुर्गों की तुलना में फिलिस्तीनियों की दुर्दशा से बेहद कम चिंतित हैं। उन्हें रोजगार तथा अन्य चीजों में अधिक दिलचस्पी है और यह बात प्रिंस MBS को पता है।

फिलिस्तीनियों के मुद्दे पर अब किंग सलमान और प्रिंस मोहम्मद के बीच विभाजन और अधिक बढ़ने की आशंका है।

सुल्तान सलमान फिलिस्तीनी के लिए समर्पित है, और फिलिस्तीनी नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं, जिसे उन्होंने वर्षों से वित्तीय सहायता दी है। वह कई बात अमेरिकी राष्ट्रपति से भी फिलिस्तीन को अलग देश का दर्जा देने की बात कर चुके हैं।

इसके विपरीत, प्रिंस मोहम्मद, उनके बेटे, ने निजी तौर पर फिलिस्तीनी नेताओं पर तथाकथित ‘सदी के सौदे’ के शुरुआती संस्करण को स्वीकार करने का दबाव डाला, जिससे अनुसार इजरायल वेस्ट बैंक का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा अपने में मिला लेता।

रिपोर्ट में MBS के दो करीबी सलाहकारों के हवाले से कहा गया है कि वह इजरायल के साथ एक समझौते पर पहुंचना चाहते हैं, लेकिन जब तक उनके पिता जीवित हैं, तब तक यह असंभव है। रिपोर्ट के अनुसार MBS ने बैठक में इजरायल की उड़ानों के लिए सऊदी हवाई क्षेत्र को खोलने पर सहमति व्यक्त की थी।

MBS को पता है कि आज के समय में सभी देशों से व्यापार महत्वपूर्ण है, वह भी ऐसे समय में जब सऊदी की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो। वह चाहते हैं कि सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था सिर्फ तेल पर न निर्भर रहे इसलिए वे इजरायल के साथ भी व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहते हैं। UAE और बहरीन द्वारा इजरायल के साथ संबंध को “ऐतिहासिक और सम्मानजनक” बताने का निर्देश भी सऊदी के समाचार पत्रों को दिया गया था। यह भी किसी और का नहीं बल्कि MBS का कार्य ही प्रतीत होता है।

सऊदी अरब में मोहम्मद बिन सलमान ने आर्थिक विकास और व्यापर को अधिक महत्व देना शुरू किया है। तेल पर सऊदी की आर्थिक निर्भरता को कम करने की दिशा में वो काम कर रहे हैं। तेल पर निर्भरता बनी रही तो सऊदी का भविष्य खतरे में पड़ सकता और ये बात एमबीएस समझ चुके हैं।

सऊदी की आर्थिक हालत इतनी खस्ता हो चुकी है। सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पेट्रोलियम के निर्यात पर निर्भर है, परंतु कोरोना के बाद आए मंदी के कारण पेट्रोलियम के दामों में भारी गिरावट दर्ज की गयी। इससे खाड़ी देशों को अपने खर्च में कटौती करने के पर मजबूर होना पड़ा। सऊदी अरब ने कमजोर होती अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए Citizen’s Account Program से 2 मिलियन लोगों को निकाल देना पड़ा था।

उन्होंने कई सफल सुधारों का नेतृत्व किया है, जिसमें धार्मिक पुलिस की शक्तियों को कम करने वाले नियम, जून 2018 में महिला ड्राइवरों पर प्रतिबंध को हटाने और अगस्त 2019 में पुरुष-संरक्षकता प्रणाली को कमजोर करना शामिल है। उन्होंने सऊदी के कार्यबल में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाने और एक ई-वीजा प्रणाली शुरू करके देश को अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए खोला। उनके विजन 2030 कार्यक्रम का उद्देश्य प्रौद्योगिकी और पर्यटन सहित गैर-तेल क्षेत्रों में निवेश के माध्यम से सऊदी अर्थव्यवस्था में विविधता लाना है।

यानि एक तरफ किंग सलमान है जो आज भी फिलिस्तीन पर अड़े हैं तो वहीं दूसरे तरह प्रिंस MBS हैं जो लगातार सुधारों की बात कर रहे हैं और सभी देशों के साथ संबंध बना कर रखना चाहते हैं चाहे वो इजरायल ही क्यों न हो। आज के दौर में समय बदल चुका है, किसी एक देश पर निर्भर या एक क्षेत्र पर निर्भरता उसकी बरबादी का कारण बन सकती है। और इस बात को प्रिंस MBS बखूबी समझते हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि  किंग सलमान और MBS के बीच का ये टकराव सऊदी अरब का भविष्य तय करेगा। अगर किंग सलमान विजयी होते हैं तो सऊदी अरब फिर से 4 दशक पीछे जा सकता है और हो सकता है कि वैश्विक स्तर पर उसकी पाकिस्तान से अधिक कीमत नहीं रहे। अगर प्रिंस MBS सफल होते हैं तो शायद कुछ प्रासंगिकता बची रह सकती है क्योंकि आज के दौर में अरब जगत का वास्तविक किंग इजयरल के समर्थन से UAE बन चुका है।

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