कोरोनावायरस के कारण पूरे विश्व में कोई भी सरकार अपने राजस्व के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत की भी है। भारत में सरकार की आय वैसे भी कम ही रहती है। ऐसे में सरकारों को इस बार अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए अब व्यापार में भी निवेश की आवश्यकता है जिसके लिए सरकार बड़ी मात्रा में खजाना खाली कर रही है। राजकीय घाटा और जीडीपी अनुपात में कर्ज पिछले कुछ वर्षो में काफी ज्यादा हो गया है जबकि सरकार के पास खर्च करने की भी एक निश्चित सीमा है। ऐसे में सरकारें लगातार पैसा जुटाने के लिए अनेक तरीके खोज रही हैं, परिसंपत्ति मुद्रीकरण इसका एक बड़ा उदाहरण है।
भारत में सरकारों के पास अपनी काफी संपत्ति हैं। केन्द्र सरकार के पास रक्षा से लेकर रेलवे तक के मंत्रालयों में खूब भू-संपत्ति है। इसके अलावा बीएसएनएल, पावर ग्रिड ऑयल मार्केटिंग के जुड़े क्षेत्रो में भी भारत सरकार के पास अधिक संपत्ति है। पिछले वित्त वर्ष के बजट में देश की वित्तमंत्री ने बताया था कि सरकार भूमि के मुद्रीकरण पर काम करने को जोर दे रही है।
इसको लेकर इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में एक अधिकारी ने बताया,
“केन्द्रीय बजट में सरकार ने मुद्रीकरण पर जोर देने की बात कही थी जिसके अंतर्गत रेल और रक्षा दोनों ही मंत्रालय अपने अंतर्गत आने वाली भूमि के मुद्रीकरण को लेकर अंतिम दौर में काम कर रहे हैं। बीएसएनएल इस मुद्रीकरण के मामले में काफी आगे बढ़ चुका है।
रक्षा मंत्रालय के पास देश में करीब 17.95 लाख एकड़ जमीन है जिसमें से करीब 1.6 लाख एकड़ जमीन तो केवल देश के 62 कैंट क्षेत्रों में ही है और 16 लाख एकड़ जमीन उनकी सीमाओं के बाहर भी है। रक्षा मंत्रालय विमुद्रीकरण को लेकर अपनी भूमि और संपत्ति का आंकलन कर रहा है जिसके बाद इन जमीनों को देश की अलग- अलग निजी कंपनियों को आवंटित किया जाएगा और उससे सरकार के पास बड़ी मात्रा में राजस्व आएगा।
रेलवे के पास रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। उनके पास करीब 11.80 लाख एकड़ जमीन है। विमुद्रीकरण को लेकर वो रक्षा मंत्रालय से दो कदम आगे ही है। रेलवे ने पिछले वर्ष करीब 300 करोड़ रुपए जुटाए हैं। वहीं इस वर्ष ये आंकड़ा करीब 1500 करोड़ के पार जा चुका है।
बीएसएनएल और एयर इंडिया भी ऐसे ही सरकारी उपक्रम है जो लगातार सरकार को घाटे की तरफ ले जा रहे हैं। ऐसे में इनके मुद्रीकरण की भी योजनाएं बन रहीं हैं जिससे राजस्व और खर्च के अंतर को कम किया जा सके। इसको लेकर एक अधिकारी ने बताया, “बीएसएनएल ने भी अपनी भूमि की मुद्रीकरण के लिए पहचान कर ली है। इस प्रक्रिया के शुरु होने में बेहद ही कम वक्त बचा है और इसे 6 महीने में पूरा कर लिया जाएगा।”
ये ऐसा वक्त है कि जब सरकारों को अपनी संपत्ति का सही तरीके से प्रयोग करना चाहिए साथ ही करदाताओं पर पड़ने वाले बोझ को भी कम करने के प्रयास भी होने चाहिए। अगर ये जमीनें निजी क्षेत्र के हाथों में जाएं तो उससे सरकारों को फायदा हो सकता है, जबकि अभी ये जमीन केवल बस अतिक्रमण के लिए ही प्रयोग की जा रही है और सरकार को तो लगातार नुकसान हो ही रहा है। इसलिए इन संपत्तियों की पहचान कर इनका मुद्रीकरण करना एक सकारात्मक फैसला ही होगा। नागरिक उड्डयन और सड़क विकास मंत्रालय भी अपने-अपने स्तर पर विमुद्रीकरण की ओर कदम आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में केन्द्र समेत राज्य सरकारों को भी अलग-अलग क्षेत्रों में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए।
इसको लेकर ये भी कहा जा सकता है कि सरकार जितना इस विमुद्रीकरण को आगे बढ़ाएगी उतना ही देश में करदाताओं के सिर से कर का बोझ कम होगा और इसीलिए सरकारों को अब अपने संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करना चाहिए जिससे देश में आम जनता पर इससे कोई खास बोझ भी न पड़े और विकास कार्यों की प्रक्रिया सतत चलती रहे।