अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेट्स की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन चाहते हैं कि दुनिया और भारत यह मान ले कि वह भारत के करीबी मित्र हैं। पर क्या ये सच है? इतिहास तो कुछ और ही कहता है।
वर्ष 1992 की Los Angeles Times (लॉस एंजिल्स टाइम्स) की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि भारत को स्पेस प्रोग्राम में दशकों पीछे धकेलने वालों में जो बाइडेन भी थे। जो बाइडेन भारत के सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम को दशकों पीछे करने की चाह रखने वालों में से एक थे।
रिपोर्ट के अनुसार 1990 के दशक में, भारत 250 मिलियन डॉलर की लागत से रूसी अंतरिक्ष एजेंसी, Glavkosmos से Cyrogenic तकनीक प्राप्त करना चाहता था, जिससे अंतरिक्ष में भारी उपग्रहों को भेजने वाले मिशन में बड़ी कामयाबी मिलती।
वर्ष 1991 में, ISRO ने रूसी अंतरिक्ष एजेंसी, Glavkosmos से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ इनमें से दो इंजनों की आपूर्ति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था ताकि भविष्य में भारतीय वैज्ञानिक इसका निर्माण स्वयं कर सकें।
लेकिन US Senate Foreign Relations Committee ने USSR के टूटने के बाद डूबने के कगार पर खड़े रूस के सामने 24 बिलियन की अंतर्राष्ट्रीय सहायता देने के बदले एक ऐसी शर्त रख दी जिससे वह इंकार नहीं कर सका। इस कमिटी ने यह शर्त रखी कि अगर रूस किसी भी अन्य देश को मिसाइल तकनीक बेचेगा तो इस सहायता को तत्काल रोक दिया जाएगा जो कि अमेरिका मास्को को प्रदान कर रहा था। तब 1993 में सौदा रद्द कर दिया गया।
अगर भारत के साथ 250 मिलियन डॉलर का सौदा हो जाता, तो सीनेट समिति रूस को दी जा रही अमेरिकी सहायता को ब्लॉक करने के पक्ष में वोट करता। रूस को दी जा रही अमेरिकी सहायता में संशोधन करने वाले स्वयं जो बाइडेन ही थे। रूस, जो उस समय सोवियत संघ के टूटने के बाद एक गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था इसीलिए उसे अमेरिकी सीनेट के संशोधन का पालन करना पड़ा।
यह जो बाइडेन ही थे जिनके कारण भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम कई वर्षों पीछे चला गया और भारत को स्वयं अपना Cryogenic Engine विकसित करना पड़ा जिसमें लगभग दो दशक से अधिक का समय लगा। यहां तक कि जो बाइडेन ने उस दौरान भारत के इस क्रायोजेनिक इंजनों की आपूर्ति के लिए हो रहे भारत-रूस समझौते को ‘खतरनाक’ कहा था। बाइडेन ने तब कहा था, “मुझे विश्वास है कि रूसी नेता इस समझौते को रोककर अपने विवेक का प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि वे अपनी वित्तीय सहायता को खोने का जोखिम जानते हैं।” उन्होंने कहा, “यह कोई मामूली समझौता नहीं है; यह खतरनाक है।”
हालांकि, बाद में Boris Yeltsin और Bill Clinton ने बीच का रास्ता निकाला और अमेरिका की अनुमती के बाद रूस ने भारत को सात क्रायोजेनिक इंजन की आपूर्ति की थी। लेकिन भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन को आगे न बढ़ने देने के लिए किसी भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की अनुमति नहीं थी।
इस कारण से भारत को क्रायोजेनिक तकनीक विकसित करने में अड़चनों का सामना करना पड़ा और भारत लगभग दो दशक पीछे चला गया। भारत को क्रायोजेनिक तकनीक के हस्तांतरण से इनकार करने के पीछे क्या कारण था?
उस दौरान यह तर्क दिया गया था कि रूस के साथ होने वाला समझौता मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम यानि MTCR के अनुरूप नहीं थी, जिसे मिसाइलों के बढ़ावे को रोकने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन न तो रूस और न ही भारत MTCR का सदस्य था। इसके अलावा, क्रायोजेनिक इंजनों को इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM) जैसी लंबी दूरी की मिसाइलों में इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं माना जाता है। लेकिन फिर भी इस समझौते को रोकने के हर संभव प्रयास किए गए।
सच्चाई यही है मिसाइल तो एक बहाना था, जो बाइडेन और उस समय के डेमोक्रेट्स का उद्देशय सिर्फ और सिर्फ भारत को क्रायोजेनिक इंजनों से विमुख करना था। यह एक जियोपॉलिटिकल चाल थी जिससे भारत स्पेस रेस में पीछे रह जाए। यह वही समय था जब अमेरिका में पाकिस्तान समर्थक अधिक हुआ करते थे। हालांकि, आज स्थिति एकदम विपरीत है और भारत अमेरिका का सबसे अच्छा सहयोगी बनकर उभरा है।
अगर जो बाइडेन ने जो किया वह नहीं किया होता तो भारत अपने मुख्य लॉन्च व्हीकल- पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) तक विकास नहीं कर चुका होता जो लगभग 4 से 5 टन का पेलोड ले जाने की क्षमता रखता है। रूसी प्रौद्योगिकी से वंचित होने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक विकसित करने में दो दशक लगे।
भारत ने क्रायोजेनिक तकनीक के साथ दिसंबर 2014 में सफलता हासिल की जब श्रीहरिकोटा से GSLV (Mk-III) की एक प्रायोगिक उड़ान सफल रहा।
जो बाइडेन ने वर्ष 1992 में भारत को भारी नुकसान पहुंचाया और उसके कारण ही भारत का अंतरिक्ष मिशन 2 दशक से अधिक समय तक खींचा। आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले, बाइडेन यह दिखावा कर रहे हैं कि जैसे वह भारत के कितने पुराने मित्र हैं। लेकिन बाइडेन कोई दोस्त नहीं है, बल्कि भारत के किसी दुश्मन से कम नहीं है जो यह सोचते थे कि भारत का स्पेस प्रोग्राम ‘खतरनाक’ होगा।