चीन पाकिस्तान को अपना दास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है। इस समय वुहान वायरस के कारण चीन में उत्पन्न कृषि संकट को पाटने के लिए चीन पाकिस्तान को अपनी प्रयोगशाला में परिवर्तित करना चाहता है। जैसे एक समय पर अंग्रेज अविभाजित भारत समेत दुनिया के कई कोनों में प्लांटेशन आधारित खेती कर अपने हित साधते थे, वैसे ही अब चीन पाकिस्तान में प्लांटेशन स्थापित कर अपने कृषि संकट को खत्म करना चाहता है। मतलब जमीन पाकिस्तान की, पैदावार पाकिस्तानियों की, और फायदा चीन का।
वर्तमान रिपोर्ट्स के अनुसार इस्लामाबाद चीन को दो सिन्धी द्वीप भेंट करना चाहता है – बुद्धू और बुँदल। ये निर्णय यूं ही नहीं आया है – कुछ दिनों पहले की रिपोर्ट्स की माने तो चीन सिंधु नदी का पाकिस्तानी हिस्सा छीनकर उसकी जनता को प्यासा छोड़ना चाहता था। ऐसे में चीन की नीति स्पष्ट है – या तो जमीन दो नहीं तो प्यासे मरो। दोनों ही स्थिति में नुकसान पाकिस्तान का ही होना है।
पाकिस्तान के विरुद्ध चीन के इस कूटनीतिक वार का अपना एक कारण है – चीन में उत्पन्न हो रहा कृषि संकट। अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर, और चीन द्वारा उत्पन्न वुहान वायरस के कारण वैश्विक समुदाय के क्रोध के कारण अब चीन को खाद्य संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें चीनी प्रशासन द्वारा उत्पन्न कृत्रिम बाढ़ अब कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। इसके ऊपर से जिस प्रकार से चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर जौ के आयात पर 80 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है, और साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया से मीट एक्स्पोर्ट पर भी पाबंदियाँ लगाई, उससे चीन का ही नुकसान होता दिखाई दे रहा है।
अगर आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो चीन के खाद्य संकट की स्थिति और अधिक स्पष्ट हो जाती है। चीन की खाद्य महंगाई अब 13.2 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है और शी जिनपिंग ने अपने देशवासियों को कम खाने पर जोर दिया है। लेकिन चीन की स्थिति पर ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा, और चीन को आवश्यक विकल्पों पर ध्यान देना ही पड़ा, जिसमें उन्हें सबसे बढ़िया विकल्प लगा अपने पालतू पाकिस्तान को भूखा मारकर चीन की भूख मिटाना।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान निरंतर खाद्य संकट से जूझ रहा है, और वुहान वायरस ने उसकी हालत और भी खराब कर दी है। खाद्य संकट से जूझने के लिए पाकिस्तान एक ओर POK को खाद्यान्न की आपूर्ति रोक रहा है, तो वहीं दूसरी ओर वह अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिन्दू समुदाय को भूखा सोने पर विवश कर रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान के कृषि उद्योग को टिड्डों के हमले ने सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में पाकिस्तान की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि वह जल्द ही एक विशाल अकाल की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है।
लेकिन इससे चीन को क्या? अनाधिकारिक तौर पर पाकिस्तान चीन का गुलाम है, और पाकिस्तान के संसाधनों पर पकिस्तानियों से पहले चीन का अधिकार है। ऐसे ही साम्राज्यवाद काम करता है। चाहे गुलाम देश के निवासी भूख से मर जाए, लेकिन साम्राज्यवादियों को अपने हित साधना अधिक प्रिय था। उदाहरण के लिए अविभाजित भारत में अंग्रेजी उद्योगपति भारतीय किसानों को नील उगाने पर विवश करते थे, और उसे मनमाने दाम पर खरीदते थे, और अब यही काम चीन पाकिस्तान के साथ करने जा रहा है। ऐसे में यदि पाकिस्तान और चीन दोनों पर ही खाद्य संकट आन पड़े, तो चीन पाकिस्तान की बलि चढ़ाने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगा।