Pew Research Centre के हालिया शोध के मुताबिक दुनियाभर में चीन के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है, और कई देशों में तो रिकॉर्डतोड़ लोग अब चीन से नफरत करने लगे हैं। Pew Research Centre के एक शोध के तहत ऑस्ट्रेलिया, UK, अमेरिका और जर्मनी जैसे 14 विकसित देशों में एक सर्वे किया गया, जिसमें यह सामने आया है कि कोरोना पर सुस्त प्रतिक्रिया और चीन की आक्रामक विदेश नीति के कारण ना सिर्फ जिनपिंग बल्कि चीन की साख मिट्टी में मिलती जा रही है और चीन तेजी से एक वैश्विक विलेन के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। स्पष्ट है कि दुनियाभर के देशों में ज़ोर पकड़ती चीन विरोधी मानसिकता इन देशों की राजनीति पर भी गहरा असर डालेगी, और ऐसी स्थिति में दुनिया से चीन समर्थक राजनेताओं का सफाया होना तय है, जो चीन की विदेश नीति के लिए और बड़ी मुश्किलें खड़ी करने वाला है।
शोध में शामिल 14 देशों में से करीब 10 देशों के 70 फीसदी से अधिक लोगों ने चीन के प्रति नकारात्मक विचार प्रकट किए, जिसमें ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड 81 प्रतिशत, UK में रिकॉर्ड 74 प्रतिशत, जर्मनी में रिकॉर्ड 71 प्रतिशत, स्वीडन में रिकॉर्ड 85 प्रतिशत, अमेरिका में रिकॉर्ड 73 प्रतिशत और जापान में करीब 86 प्रतिशत लोग शामिल थे। सर्वे में शामिल सभी लोगों में से औसतन 61 प्रतिशत लोग कोरोना को लेकर चीन से नाखुश दिखाई दिये।
इसके अलावा कोरोना के बाद दुनियाभर में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लोकप्रियता में भी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। सर्वे में शामिल करीब 78 प्रतिशत लोगों को लगता है कि शी जिनपिंग वैश्विक मुद्दों पर सही प्रतिक्रिया देने में सक्षम नहीं है। दुनियाभर के लोगों का चीन के साथ-साथ चीनी नेतृत्व से नाखुशी जताना दिखाता है कि शी जिनपिंग के कारण सालों में अर्जित की गयी चीन की सॉफ्ट पावर खत्म होती जा रही है, और जिनपिंग चीन की बदनामी का इकलौता कारण बनकर उभर रहे हैं।
यह स्पष्ट है कि कोरोना पर सुस्त प्रक्रिया और दुनियाभर में कोरोना के फैलाव में China की बड़ी भूमिका होने के कारण चीन दुनिया का विलेन बनकर उभरा है। हालांकि, यहाँ बड़ा सवाल यह है कि इसका वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ेगा? China अमेरिका सहित दुनियाभर के देशों में एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, और अब China के खिलाफ लोगों में बढ़ते गुस्से को देखते हुए राजनेता भी China विरोधी सुर अपनाने पर विवश होने लगे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि China के कारनामों के कारण अब कोई भी राजनेता खुलकर China का पक्ष नहीं ले पाएगा और China वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ जाएगा।
अभी तक कई राजनेता आर्थिक और राजनीतिक कारणों की वजह से China के खिलाफ खुलकर बोलने से घबराते थे। उदाहरण के लिए जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल China के प्रति अपने नर्म रुख के लिए जानी जाती थीं। इसके साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे-छोटे देश भी China की आक्रामकता सहने के बावजूद China के खिलाफ बोलने से घबराते थे। हालांकि, अब जैसे-जैसे China के साथ उनके रिश्तों को लेकर राजनेताओं पर लोगों का दबाव बढ़ेगा, वे China से दूरी बनाने पर विवश हो जाएंगे।
कोरोना फैलाने के बाद अपनी साख बचाने के लिए China ने ना सिर्फ कवर-अप करने की कोशिश की, बल्कि उसके बाद कथित “wolf warrior diplomacy” का रास्ता अपनाकर आक्रामकता के जरिये दूसरे देशों की जुबान बंद करने की भी कोशिश की, लेकिन China को दुनिया को बेवकूफ समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। Pew Research Centre के आंकड़ों से स्पष्ट है कि China दुनिया का विलेन बनने की स्थिति में पहुँच गया है, और इसके साथ ही उसके दुनिया पर राज करने के सपनों पर भी हमेशा के लिए ब्रेक लग चुका है।