चीन लगातार अपनी Currency के साथ हेरफेर कर रहा है,पर बहुत ही चतुराई से

चीन के आर्थिक सशक्तिकरण के जालसाजी को समझिए..

चीन

(PC-Fortune)

दशकों तक चीन एक रहस्यमयी देश रहा है जहाँ विदेशी लोगों और विदेशी पूंजी की पहुँच बेहद सीमित थी। न तो वहाँ के लोग बाहर जाते थे और न ही बाहर से लोगों को वहाँ किसी प्रकार की छुट मिलती थी। यहां तक ​​कि जब चीन ने 1978 में अपनी अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिए खोला, तो उसने वैश्विक मानदंडों का पालन नहीं किया और एक ऐसा सिस्टम बना दिया जो विश्व में और कहीं नहीं था। सोच से कम्युनिस्ट, काम से कैपिटलिस्ट के साथ वह सिस्टम कई अपारदर्शी प्रथाओं के साथ फलने-फूलने लगा।

अब भी अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में चीन के सरकारी तंत्र में अपारदर्शी प्रथाओं की अधिकता है, जितनी कि वे 1970 के दशक में हुआ करते थे। हालाँकि, निजी कंपनी धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों की ओर बढ़ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में चीन के बारे में एक बड़ा रहस्य यह है कि अखिर कैसे चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3 से 3.2 ट्रिलियन डॉलर के बीच स्थिर है, जबकि वर्ष 2017 के बाद से ही  अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प चीन पर लगातार आर्थिक हमले कर रहे हैं।

किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार की उपलब्धता का अर्थ होता है कि वह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने देश की मुद्रा की कीमत को कितना प्रभावित करने की क्षमता रखता है। जब भी कोई केंद्रीय बैंक खुले बाजार के माध्यम से विदेशी मुद्रा बेचता है, तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले उस देश की मुद्रा का मूल्य डॉलर की मांग कमजोर होने के कारण बढ़ जाता है।

और जब कोई देश विदेशी मुद्रा खरीदता है, तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसकी मुद्रा का मूल्य अमेरिकी डॉलर की मांग में वृद्धि के कारण घट जाता है। दशकों तक, पूर्व एशियाई देश जैसे ताइवान, जापान, दक्षिण कोरिया और 1990 के दशक के बाद से चीन ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा के मूल्य को कम रखने के लिए खरबों डॉलर के विदेशी मुद्रा जमा किए हैं क्योंकि इससे निर्यात पर सब्सिडी मिलता है और आयात पर  कीमत बढ़ जाता है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक लैपटॉप की अमेरिका में 100 डॉलर की लागत है और अब कंपनी इसे भारत में बेचना चाहती है। इस तथ्य को देखते हुए कि भारत में 1 डॉलर का मूल्य लगभग 75 रुपये है, भारत में लैपटॉप की कीमत 7,500 रुपये होगी।

जिस मुद्रा का जितना कम मूल्य होगा, उस देश के अंदर निर्यात किए गए सामान की कीमतें उतनी अधिक रहेंगी। इसी तरह, अगर भारत में किसी उत्पाद का उत्पादन सिर्फ 1 डॉलर में किया जाता है, तो अमेरिका में इसकी कीमत केवल 1 डॉलर होगी जो कि वहाँ के लोगों की क्रय शक्ति की तुलना में बहुत कम है। इससे अमेरिका में लोग भारत से आयातित सामानों को उसके कम दाम की वजह से पसंद करेंगे लेकिन इससे अमेरिकी उद्योगों के उस क्षेत्र का पतन भी होगा क्योंकि उनकी बिक्री घट जाएगी।

इसलिए, चीन ने अपनी मुद्रा में हेरफेर करता रहा है और लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर यानि भारत से 5 गुना अधिक विदेशी मुद्रा भंडार जमा किया। इससे चीन को निर्यात करने में खूब फायदा हुआ और अपने घरेलू उद्योग की रक्षा करने में मदद मिली।

लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के इस हेरफेर को मुद्दा बना कर राष्ट्रपति चुनाव जीता और राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने चीन को जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली, आयरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम के साथ मुद्रा निगरानी सूची में डाल दिया।

निगरानी सूची में होने का मतलब है कि अगर चीन को मुद्रा में हेरफेर करते हुए पाया जाता है, तो अमेरिकी सरकार उसे currency manipulator list  में डाल देगी और उचित कार्रवाई करेगी जैसे कि उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में ताइवान और 1980 के दशक में दक्षिण कोरिया के साथ किया था।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब अर्थशास्त्री यह सोच रहे हैं कि, “युआन मजबूत खरीद मांग पर अधिक तेजी से क्यों नहीं बढ़ रहा है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था कोरोनोवायरस महामारी से उबर रही है और विदेशी निवेशक आकर्षक रिटर्न का लाभ उठाने के लिए mainland securities  खरीद रहे हैं। क्या बीजिंग हेर फेर कर के युआन की ताकत को दबा रहा है? और यदि ऐसा है, तो विदेशी मुद्रा भंडार की राशि एक परिणाम के रूप में बढ़ी क्यों नहीं?”

कई अर्थशास्त्री और विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि देश ने exchange rate और विदेशी भंडार को स्थिर रखने के लिए free capital outflow की अनुमति दी है।

लेकिन देखा जाए तो वर्ष 2017 से ही युआन के मूल्य में गिरावट आई है और यह चीनी अर्थव्यवस्था में बढ़ी है उसे देखते हुए इसकी संभावना कम लगती है। यही कारण है कि विश्लेषकों का यह तर्क है कि पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना विदेशी भंडार को स्थिर रखने के लिए कुछ गुप्त तकनीक का उपयोग कर रहा है। यही नहीं पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना युआन की कीमतें स्थिर रखने का भी प्रबंधन कर रहा है। हालांकि, बाजार की स्थितियों के अनुसार हैं इसे अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़ने चाहिए थे।

कुछ लोगों का तर्क है कि चीन ने मुद्रा भंडार को स्थिर रखने के लिए संभवतः सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों में ऐसेट्स को बैलेंस शीट से ही हटा दिया। इस तरह, चीन ट्रम्प प्रशासन की नज़र में आए बिना अपनी मुद्रा में हेरफेर जारी रखे हुए है।

चीन मुद्रा को ले कर जो भी हेरफेर कर रहा है और जिस विधि से कर रहा है, इससे एक बात यह स्पष्ट है कि चीन ऐसे अपारदर्शी कामकाज के माध्यम से ट्रम्प प्रशासन को बेवकूफ बना रहा है और चेतावनी के बावजूद मुद्रा में हेरफेर करना जारी रखा है।

बाजार की स्थिति बताती है कि विदेशी मुद्रा स्थिर रहने के लिए, पिछले चार वर्षों में चीन को बाजार में अतिरिक्त विदेशी मुद्रा खर्च करना चाहिए था, और जिसके बाद चीनी मुद्रा की पर्याप्त मजबूती आई होती। लेकिन, इसके विपरीत, चीन के मुद्रा का मूल्य घट रहा है और निर्यात में मदद मिल रहा  है।

चीन का केंद्रीय बैंक स्पष्ट रूप से अमेरिका को मूर्ख बना रहा है और अब ट्रम्प प्रशासन को इस मामले की ओर ध्यान देना चाहिए तथा चीन को currency manipulator के लिस्ट में डालना चाहिए।

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