भारत के पड़ोस में हमेशा चीन अपना प्रभुत्व बढ़ाने की फिराक में रहता है ताकि पड़ोसी देशों को भारत के खिलाफ भड़का कर अपने हितों को बढ़ावा दे सके। परंतु अब चीन की इसी कूटनीति का इस्तेमाल कर भारत चीन के सभी पड़ोसियों के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत कर, चीन को चुनौती देने की स्थिति में आ चुका है। चाहे जल हो या थल चीन के सभी पड़ोसी अब भारत के साथ कूटनीतिक रिश्तों को और मजबूत कर रहे हैं।
सबसे नए उदाहरण के तौर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नाक के नीचे, पीएम नरेंद्र मोदी ने चीन के पड़ोसी के साथ भारत की रक्षात्मक साझेदारी को बढ़ाने का अपना वाइल्ड कार्ड खेल दिया है। नई दिल्ली, चीन के रणनीतिक पड़ोसी कजाकिस्तान के साथ अपने रक्षा सहयोग में एक नया अध्याय शुरू करने जा रही है जिसमें दोनों देश मिल कर अपने संसाधनों से रक्षा उत्पादों के उत्पादन में सहयोग करेंगे। रिपोर्ट के अनुसार भारत के रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि “भारतीय कंपनियां रक्षा उत्पादन में सहयोग के लिए कज़ाकिस्तान के रक्षा उद्योगों के साथ बातचीत कर रही हैं।“ अब दोनों देशों के बीच संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास के लिए भी समझौता किया गया है। यानि भारत चीन के सबसे बड़े पड़ोसी के साथ अपनी रक्षा साझेदारी दोगुने रफ्तार से बढ़ा रहा है।
पिछले कुछ सालों में चीन ने मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसी देशों को अपनी मुट्ठी में करने की भरपूर कोशिश की लेकिन समय के साथ सभी देशों में सत्ता परिवर्तन के बाद माहौल भारत के पक्ष में हो चुका है।
भारत सिर्फ कज़ाकिस्तान ही नहीं बल्कि ताइवान, जापान, नॉर्थ कोरिया, रूस और म्यांमार के साथ भी अपने रिश्तों को एक नई ऊंचाई दे रहा है। कोरोना के बाद से इन सभी देशों के साथ भारत ने अहम समझौते किए हैं जो चीन के साथ मुक़ाबले में प्लस पॉइंट देंगे। कई मीडिया रिपोर्ट्स इस ओर इशारा कर रही हैं कि जल्द ही भारत और ताइवान के बीच एक trade deal को लेकर आधिकारिक स्तर पर बातचीत शुरू हो सकती है। ताइवान पिछले कई वर्षों से भारत के साथ एक ट्रेड डील को पक्का करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब ऐसा पहली बार है कि भारत की ओर से भी इसको लेकर सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हुए हैं। ताइवान ने अपनी Southbound पॉलिसी के तहत भारत को प्राथमिकता देने का फैसला किया है और अब भारत भी अपनी Act East पॉलिसी के जरिये Taiwan के साथ संवाद को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। अभी मौजूदा स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो ऐसा लगता है कि भारत और ताइवान आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर अपने कूटनीतिक रिश्तों की बहाली की ओर पहला कदम बढ़ा सकते हैं। ताइवान के उप-विदेश मंत्री Tien Chung-kwang पहले ही भारत की तारीफ करते हुए कह चुके हैं कि, “भारत एक लोकतंत्र है, भारत एक बढ़िया investment destination है, यहाँ skilled labour मौजूद है, ऐसे में हम भारत को अपने production bases का केंद्र बना सकते हैं।” चीन ताइवान से पहले ही चिढ़ा हुआ है और भारत के साथ ताइवान के रिश्ते बढ़ने से उसकी खीज और बढ़ेगी।
भारत, चीन के एक और पड़ोसी और दक्षिण एशिया के एक बेहद महत्वपूर्ण देश म्यांमार को भी अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रहा है। हाल ही में भारत ने म्यांमार के साथ रक्षा सौदे को आगे बढ़ाते हुए, 1980 में रूस से खरीदी गई 3000 टन की सबमरीन को म्यांमार को दिया है। गौरतलब है कि ये भारत की पहली आईएएनएस सिंधुवीर सबमरीन है जो कि डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों पर काम करती है।भारत का यह कदम चीन के खिलाफ एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। म्यांमार में कोरोना से पहले चीन का प्रभाव बेहद बढ़ गया था और यह देश चीन के BRI प्रोजेक्ट्स के कारण ऋण जाल में फँसता चला जा रहा था, लेकिन कोरोना के बाद से म्यांमार भी चीन के खिलाफ सतर्क हो चुका है तथा इसके द्वारा कई चीनी प्रोजेक्ट्स पर लगाम लगने की भी रिपोर्ट्स आई थी। ऐसे में भारत, कूटनीतिक चाल चलते हुए चीन के इस पड़ोसी के साथ अपने सम्बन्धों को अब रक्षा साझेदारी में बदल रहा है।
वहीं, इसके पहले, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रमुख सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और सेना प्रमुख एमएम नरवणे सहित म्यांमार के वरिष्ठ अधिकारी General Min Aung Hlaing और Aung San Suu Kyi, के साथ पिछले महीने एक बैठक आयोजित कर चुके हैं। म्यांमार के राज्य परामर्शदाता से तटीय शिपिंग समझौते पर भी बातचीत चल रही है जिससे Kaladan multi-modal project पर काम पूरा किया जा सके।
भारत ने चीन को उसके ही खेल में मात देते हुए नॉर्थ कोरिया की भी मदद की थी। भारत ने प्योंगयांग को चिकित्सा सहायता में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर दिये और कोरोना के बाद उत्तर कोरिया को मदद करने वाले कुछ देशों में से एक बना था। विदेश मंत्रालय (एमईए) की प्रेस विज्ञप्ति में 24 जुलाई को लिखा गया था, “भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुरोध के जवाब में डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) को लगभग 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की चिकित्सा सहायता दी है।”
वहीं, नई दिल्ली,Indo-Pacific में बीजिंग को घेरने के लिए जापान और रूस के साथ सहयोग को नए स्तर पर ले जा चुका है। ये दोनों देश पहले से ही भारत के समर्थक रहे हैं लेकिन कोरोना के बाद से ये रिश्ते और भी सुधरे हैं।
चीन को दो बड़े झटकों के तौर पर, भारत ने जापान के साथ एक म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट (MLSA) पर हस्ताक्षर किया था साथ ही यही समझौते अब रूस के साथ भी होने की तैयारी पूरी हो चुकी है। रूसी डिप्टी चीफ ऑफ मिशन (डीसीएम), रोमन बाबूसकिन ने पिछले ही महीने कहा था कि “नई दिल्ली और मॉस्को अक्टूबर या नवंबर में भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान MLSA समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।”
इन दोनों देशों के साथ समझौते को अंतिम रूप देने के बाद भारतीय युद्धपोत दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और Yellow Sea सहित पूरे प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ लाभ उठाने और ईंधन भरने की सुविधा प्राप्त कर लेंगे। रूस और जापान के साथ MLSA समझौता होने के बाद भारत चीन की नौसेना को चारों तरफ से घेरने में कामयाब होगा। वहीं इन्डोनेशिया के Sabang में Strait of Malacca से मात्र 500 किलोमीटर दूर एक पोर्ट बना रहा हैं। यानि यहाँ से भी चीन का बचना नामुमकिन हो जाएगा।
यदि देखा जाए तो जमीन के तरफ से चीन भारत को घेरना चाहता था, लेकिन भारत ने अब उसे उसके ही पड़ोसियों के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूत कर जमीन और समुद्र दोनों तरफ से घेर लिया है।