अमेरिका से चीन के लिए एक और बुरी खबर आई है। अमेरिका ने चीन की दुखती रग पर हाथ रखते हुए एक बार फिर तिब्बत मुद्दे को हवा दी है और अपने एक अधिकारी को तिब्बत मामलों का special coordinator नियुक्त कर दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अमेरिका के मानवाधिकारों के मामले से जुड़े अधिकारी Robert Destro को तिब्बत मामले पर special coordinator नियुक्त करते हुए कहा “Destro अमेरिकी प्रयासों के अंतर्गत दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच संवाद को बढ़ावा देने का काम करेंगे, ताकि तिब्बत में मानवाधिकारों, सांस्कृतिक और अभिव्यक्ति की आज़ादी को बढ़ावा दिया जा सके।”
पोम्पियो ने यह भी साफ किया कि अमेरिका चीनी सरकार द्वारा किए जा रहे तिब्बती समुदाय के दमन को लेकर भी चिंतित है। स्पष्ट है कि अमेरिकी सरकार का यह ऐलान चीन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। अमेरिका लगातार भारत में मौजूद तिब्बत की निर्वासित सरकार को आधिकारिक मान्यता प्रदान करने की दिशा में काम कर रहा है। तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख के तौर पर Lobsang Sangay ने भी यह उम्मीद जताई है कि जल्द ही अमेरिका उनकी सरकार को वही मान्यता प्रदान कर देगा, जो उसने दुनिया की बाकी सरकारों को प्रदान की हुई है।
अमेरिका के इस कदम के बाद वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। चीन ने अमेरिका के इस कदम की निंदा करते हुए अपना गुस्सा ज़ाहिर किया और इसे अमेरिका द्वारा उसके अंदरूनी मामलों में दख्लंदाजी करार दिया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता Zhao Lijian ने कहा “तथाकथित विशेष वार्ताकार को नियुक्त कर अमेरिका ने तिब्बत को अशांत करने का प्रयास किया है, चीन इसका कड़ा विरोध करता है।”
चीन की चिंता जायज़ भी है। अमेरिका अब चीन को चोट पहुँचाने के लिए तिब्बत के मुद्दे को हवा दे रहा है, जो चीन के गले नहीं उतर रहा है। अमेरिका ने इसी वर्ष तिब्बत की निर्वासित सरकार को 1 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान करने का भी ऐलान किया था। इतना ही नहीं, अमेरिका ने उन चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान भी किया था, जो विदेशी लोगों और खासकर विदेशी मीडिया को तिब्बत में जाने से रोकते हुए पाये गए थे। ऐसे में अब अपने हालिया कदम से अमेरिका ने चीन को वहाँ चोट पहुंचाने का फैसला लिया है, जहां उसे सबसे ज़्यादा दर्द होता है।
अमेरिका को पता है कि अगर तिब्बत को चीन से अलग कर चीन को और ज़्यादा कमजोर करना है, तो उसके लिए यही सही समय है। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी उसे भारत से भी भरपूर साथ मिल सकता है। भारत-चीन विवाद के दौरान भारत ने अपने Special Frontier Force के इस्तेमाल से यह साफ जता दिया था कि वह अब चीन के खिलाफ तिब्बत कार्ड खेलने से नहीं हिचकिचाएगा। Special Frontier Force भारतीय सेना की वह टुकड़ी है जो मुख्यतः तिब्बती समुदाय के लोगों से मिलकर बनी है, और इसे बनाने में अमेरिका का भी बड़ा हाथ रहा है।
भारत और अमेरिका मिलकर अब जिस तरह तिब्बत के मुद्दे को उठा रहे हैं, उससे चीनी सरकार भी अब खौफ़ खाने लगी है। यही कारण है कि अब चीनी सरकार ने तिब्बत में भी शिंजियांग की तर्ज़ पर ही Concentration Camps खोलने का फैसला लिया है। शी जिनपिंग के निर्देशों के अनुसार चीनी सेना अब तिब्बत में “शांति स्थापना” के लिए बड़े पैमाने पर “सरकारी कार्यक्रम” चलाने वाली है। इससे समझा जा सकता है कि चीनी सरकार अब तिब्बत को अगला शिंजियांग बनाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
चीन तिब्बत में बौद्ध धर्म के खात्मे की तैयारी कर चुका है, और ट्रम्प के लिए भी चीन को सबक सिखाने के लिए यह बेहतरीन मौका है। इसीलिए अब तिब्बत मुद्दे पर चीन को उकसाने के लिए अमेरिका एक के बाद एक कदम उठा रहा है। अगर अमेरिका और भारत के ये कदम सफल होते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब तिब्बत की आज़ादी का सपना सच्चाई में बदल जाएगा।