पश्चिम बंगाल के गोरखाओं में असंतोष और गोरखालैंड की मांगो को लेकर अब केन्द्र की मोदी सरकार ने अपने कदम आगे बढ़ाते हुए इस मुद्दे पर 7 अक्टूबर को एक बैठक बुलाई है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य गोरखाओं के मुद्दे पर चर्चा का ही होगा। गोरखाओं के मुद्दे पर पहले ही बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला बोलती रही हैं, जबकि लेफ्ट से ममता तक की सरकार ने इसको लेकर कोई खास कदम नहीं उठाया है। ऐसे में इस मुद्दे पर होने वाली बैठक में यदि मोदी सरकार कोई बड़ा फैसला लेती है तो ये उसके लिए नैतिक औऱ चुनावी दोनों ही तौर पर काफी दुरुस्त होगा।
दरअसल, केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने गोरखाओं की गोरखालैंड बनाने और उसे एक राज्य का दर्जा देने की मांगो को लेकर अब 7 अक्टूबर को एक बैठक करने वाले हैं जिसका केवल एक ही मकसद है… गोरखाओं के मुद्दे पर चर्चा। इस बैठक को लेकर जानकारी मिली है कि इसकी अध्यक्षता केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री जी. किशनरेड्डी करेंगे। गौरतलब है कि इस पूरे मामले को लेकर पश्चिम बंगाल के गृहसचिव को भी इस मीटिंग में शामिल होने को कहा गया है। इस पूरे मामले में विरोध की आग भी भड़क गई है जिसके पीछे विपक्ष की राजनीति मानी जा रही है। विपक्ष इसको लेकर बीजेपी पर राजनीति का आरोप लगा रहा है, तो दूसरी ओर इस मुद्दे पर बीजेपी गोरखाओं के हितों का हवाला दे रही है।
आजादी के बाद से ही ये सारा क्षेत्र बंगाल के अंडर में आ गया था । 1980 से गोरखालैंड की मांगो को लेकर Gorkha National Liberation Front द्वारा आंदोलन किए जा रहे हैं। बीजेपी के नेता जसवंत सिंह भी 2009 में Gorkha Janmukti Morcha के समर्थन से दार्जिलिंग से चुनाव जीते थे और यही नहीं बीजेपी ने 2014 में अपने घोषणापत्र में गोरखालैंड बनाने की बात कही थी। बीजेपी अपने पहले कार्यकाल में तो गोरखाओं की मांगो को पूरा नहीं कर पाई, लेकिन दूसरे कार्यकाल में हो रहे कड़े फैसलों के बीच इस बैठक का होना एक संदेश की तरह ही है कि मोदी सरकार इसको लेकर अब सक्रिय हो गई है।
अब ये मुद्दा पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के लिए एक और असमंजस की स्थिति लेकर आया है। गोरखाओं के क्षेत्र में ममता को हमेशा ही हार का मुंह देखना पड़ा है। वो उन्हें अपनी तरफ लाने के लिए एनआरसी के नाम पर भ्रम फैला रही थीं, लेकिन अब ये नया डेवेलपमेंट ममता के लिए 440 वोल्ट के झटके की तरह ही है। ममता लगातार गोऱखाओं को लुभाने के लिए उनके समर्थन में बयान देती रही हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए भी उन्होंने इसको लेकर बीजेपी के खिलाफ वाली स्क्रिप्ट तैयार कर ली थी और बीजेपी पर उसके तहत ही धड़ा-धड़ हमले बोल रहीं थी लेकिन चुनाव के ठीक पहले उनकी प्लानिंग उल्टी पड़ती दिख रही है।
दार्जिलिंग के पर्वतीय क्षेत्र में गोरखालैंड की लंबे वक्त से मांग उठती रही है। स्वयं बीजेपी के सांसद राजू बिष्ट ने भी जल्द से जल्द इस मुद्दे को हल करने की बात कही थी। जिसके बाद ये बात सामने आई थी, जो मोदी सरकार 70 साल पुराने अनुच्छेद 370 के मामले को हल कर सकती है तो वो इस मुद्दे का भी अंत कर सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार द्वारा उठाया गया बैठक का ये कदम उसी दिशा में है और आने वाले दिनों में मोदी सरकार गोरखाओं की मांगो को स्वीकार करते हुए गोरखालैंड को एक अलग राज्य का दर्जा दे सकती है।
जाहिर है कि अब जब चुनाव की आहट शुरू हे गई है तो हर बार की तरह ही एक बार फिर गोरखालैंड की मांग फिर होगी लेकिन इस बार मोदी सरकार की सटीक नीति इस मुद्दे पर बंगाल चुनाव में बीजेपी को एक बड़ा फायदा दे सकती है। यही नहीं , दूसरी ओर ये पूरा खेल ममता के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा।