जाति के नाम पर राजनीति खेलना देश के राजनेताओं और लिबरल मीडिया की पुरानी आदत है। हाल ही में हाथरस की युवती के साथ रेप और मौत के बाद मीडिया का एक धड़ा जहां युवती के आगे दलित लगाने में दिलचस्पी महसूस कर रहा है, तो वहीं, राजनेता उस लड़की के घऱ जाकर परिजनों के साथ फोटो सेशन करा रहे हैं। लेकिन यही लोग हाथरस से इतर बलरामपुर की लड़की के साथ हुए रेप की घटना पर चुप्पी साधे हुए हैं पर क्यों? बस इसलिए कि रेप के दोनों आरोपी एक विशेष समुदाय से हैं? वास्तव में ये एजेंडा चलाने वाले लोग जाति धर्म सभी में अपना हित सबसे पहले देखते हैं… जबकि रेप जैसे अपराध में पीड़िता के दर्द और उसके परिवार पर हुए इसके प्रभाव को ये हित ले डूबता है, ऐसे में अपराध को लेकर जाति धर्म के नाम पर टिप्पणी करने वालों को आरोपियों को सजा दिलाने के लिए प्रयास करना ही उचित है।
दरअसल, हाथरस की तरह ही बलरामपुर में एक युवती के साथ रेप हुआ। ये एक सामूहिक दुष्कर्म था। पुलिस के मुताबिक इसका आरोपीविशेष समुदाय से है। मीडिया में इस मुद्दे को भी दलित के नाम पर खूब उछाला जा रहा है, लेकिन इसके आरोपियों का नाम लेने से लिबरल्स का एक धड़ा कन्नी काट रहा है। जो ये दिखाता है कि ये तथाकथित वामपंथी दल केवल जाति धर्म के अपने एजेंडे के अनुसार ही खबरों को महत्व देते हैं।
वहीं दूसरी ओर यही वामपंथी हाथरस में युवती के साथ रेप कांड पर बवाल मचाए हुए हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी आज हाथरस के रास्ते से पहले ही हिरासत में ले लिए गए। उन्होंने इस मुद्दे पर जमकर राजनीति खेलने की प्लानिंग कर रखी है। राहुल ही नहीं हाथरस के रेपकांड पर पूरा विपक्ष लामबंद हो गया है। योगी सरकार से लेकर प्रधानमंत्री को टारगेट करने में ये लोग पूरी जान लगा रहे है।
क्यों है राजनीति
दलितों के नाम पर ये राजनेता अपनी दुकान चलाते हैं और कुछ ऐसा ही इस हाथरस कांड में भी देखने को मिल रहा है।
हाथरस में बलात्कार के आरोपी की जाति का प्रमाण-पत्र ढूँढ के धरना देंगे, और बलरामपुर में बलात्कार के आरोपी का नाम भी मुँह से न निकल जाए – इतनी संवेदनशीलता बरतने वाले बुद्धिजीवियों, राजनेताओं को भी नमन है!
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) October 1, 2020
Odd Day – Tracking Rajasthan Only
Even Day – Tracking Uttar Pradesh onlyDidi aisa kaise Chalega ???? pic.twitter.com/Zlr5Uz1vTI
— Rishi Bagree (@rishibagree) October 1, 2020
हाथरस में आरोपी विशेष समुदाय से नहीं है तो यहां जातिवाद का एंगल लेकर दलित और उच्च वर्ग के लोगों में जहर बोया जा रहा है और लिबरल मीडिया भी इसे खूब तूल दे रही है।
इन राजनेताओं के एजेंडे के अनुसार ये स्टोरी उनको भा गई है। उन्हें उस रेप पीड़िता या उसके परिवार से किसी भी प्रकार की कोई हमदर्दी नहीं है, क्योंकि उन्होंने बस दलित शब्द को पकड़ लिया है और उस पर राजनीति जारी है, जिसमें उनके घर भ्रमण से लेकर ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड कराने हों… ये लोग सबकुछ कर रहे हैं।
बलरामपुर पर चुप्पी
हाथरस रेप कांड पर छाती पीटने वाले यही लोग अब बलरामपुर में हुए रेप पर कुछ भी तल्खी के साथ नहीं बोल रहे हैं। पीड़िता और आरोपियों की जाति का जिक्र यहां कोई नहीं कर रहा है। जिसकी बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि बलरामपुर की रेप पीड़िता तो दलित ही है, लेकिन आरोपित एक विशेष समुदाय के… जिसके चलते इन जाति पूछने वाले गिद्धों ने अपने मुंह बंद कर लिए हैं। उन्हें अच्छे से पता है कि अगर उस पर ज्यादा बोलेंगे तो उनकी तुष्टीकरण की राजनीति पर चोट लग सकती है औऱ उन्हें उस विशेष समुदाय को गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए सहूलियत के अनुसार चुप्पी साध लेना ही उन्होंने बेहतर समझा है।
जाति का जिक्र ही क्यों
मुख्य मुद्दा तो ये होना चाहिए कि रेप करने वाले आरोपियों को सजा जल्द-से-जल्द मिले चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो, एक आरोपी केवल आरोपी ही होता है। जाति से किसी को कोई मतलब होना ही नहीं चाहिए। जाति या धर्म किसी का भी एक निजी मामला है इस पर राजनीति करना बेहद शर्मनाक है। जाति और धर्म के नाम पर बरगलाने वाले इन राजनेताओं की सहूलियत वाली नीति समाज के लिए खतरनाक है।
ऐसे में जो लोग अपराध से इतर धर्म और जाति के मुताबिक अपना एजेंडा चला रहे हैं, उन्हें इस तरह की विभाजनकारी सोच को त्याग कर अपराध पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिससे पीड़ितों को न्याय मिले।