कैसे US समर्थित 3 Sea Initiative मध्य और पूर्वी यूरोप में चीन के “17+1” initiative को कमजोर कर रहा है

अमेरिका

जब से डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तब से चीन और अमेरिका के बीच एक ऐसी प्रतिद्वंदीता देखने को मिली है जो रूस और अमेरिका के बीच भी देखने को नहीं मिली थी। ट्रेड वार से लेकर दक्षिण चीन सागर तक चीनी प्रभाव को धूल चटाने वाला अमेरिका अब मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों में चीन के खिलाफ बनते माहौल का फायदा उठा कर अपना प्रभाव कई गुना बढ़ाने पर काम कर रहा है। एक तरफ चीन की 17+1 Initiative को एक बाद एक झटका लग रहा है तो वहीं अमेरिका के Three Sea Initiative को बढ़ावा मिल रहा है।

दरअसल, मंगलवार को एस्टोनिया द्वारा आयोजित Three Sea Initiative में शामिल 12 सदस्य देशों की एक वर्चुअल बैठक हुई जिसमें इन देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने लिए बातचीत हुई।

बता दें कि TSI को 2015 में पोलैंड और क्रोएशिया ने मिलकर आधिकारिक तौर पर उस क्षेत्र में संयुक्त बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, ऊर्जा और डिजिटल सहयोग पर चर्चा करने के लिए स्थापित किया था। सबसे प्रमुख बात यह है कि इस समूह में अमेरिका न शामिल होते हुए भी इसका सबसे बड़ा समर्थक है।

वाशिंगटन इस क्षेत्र में निवेश करने का इच्छुक रहा है, जिसका लक्ष्य इन देशों की निर्भरता कम कर चीन के पश्चिमी बाल्कन में “17 + 1 Initiative” और “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” निवेश का मुकाबला कर, उसके प्रभाव को कम करना है।

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने फरवरी में घोषणा की थी कि अमेरिका 3SI को कांग्रेस द्वारा अनुमोदित फंडिंग में से 1 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करेगा।

क्षेत्र के तीन सागर बाल्टिक, ब्लैक और एड्रियाटिक सागर के नाम पर रखे गए इस पहल को अमेरिका अपने Blue Dot Network से जोड़ कर भी देखता है जिसकी परिकल्पना चीन के BRI को टक्कर देने के लिए की गयी है। इस initiative में यूरोपीय संघ के 12 देश यानि ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं।

इस initiative ने पूर्वी यूरोप में कई बुनियादी ढाँचे वाली परियोजनाएँ शुरू की हैं, विशेष रूप से Carpatia, लिथुआनिया के कालिपेडा से ग्रीस में Thessaloniki (थेसालोनिकी) तक, Rail Baltica रेलवे कनेक्शन, Warsaw से Riga होते हुए Tallinn तक तथा Danube-Oder-Elbe इंलैंड वॉटरवे कनेक्शन जारी है।

अब तक इस क्षेत्र में चीन अपने प्रभाव को जमाये रखा था लेकिन अब सभी पूर्वी और मध्य यूरोपीय देश चीन के साथ या तो अपने संबंध तोड़ रहे हैं या दूरी बना रहे हैं।

चीन ने वर्ष 2012 में मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों के साथ 17 +1 Initiative की शुरुआत की थी जिसका मकसद इन देशों का चीन के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ाना था, या यूं कहें कि उन्हें चीन के ऋण जाल में फंसा कर अपने नियंत्रण में करना था।

इस पहल में बारह यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य और पांच बाल्कन राज्य – अल्बानिया, बोस्निया और हर्जेगोविना, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, ग्रीस, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, पोलैंड, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं।

17+1 को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के विस्तार के रूप में माना जाता है। हालांकि, अब CEE देशों और चीन के बीच 17 + 1 के तहत एक दशक के सहयोग के बाद, कई देश चीन से नाराज हो चुके हैं और इसके कई कारण है।

कई 17 + 1 शिखर सम्मेलन में अपने वादों के बावजूद, चीन ने पूर्वी और मध्य यूरोपीय देशों में बेहद कम निवेश किया है। वर्ष 2012 में, बीजिंग ने CEE को बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा में नए विकास को चलाने के लिए 17 बिलियन डॉलर क्रेडिट लाइन प्रदान करने का वादा किया था। परंतु किसी भी निवेश के धरातल पर न उतार पाने के कारण अधिकांश CEE देशों में अब चीन के खिलाफ भावना भड़क उठी है।

The Strategist की रिपोर्ट के अनुसार 17 + 1Initiative के तहत प्रस्तावित 40 परियोजनाओं में से केवल चार को सफलतापूर्वक निष्पादित किया गया है।

इसी वजह से कई देश अब बीजिंग के साथ भविष्य में किसी परियोजना पर काम नहीं करना चाहते हैं। जनवरी 2020 में, चेक गणराज्य ने अप्रैल में होने वाली 17+1 की नौवीं शिखर बैठक को चीन द्वारा वास्तविक निवेश की कमी का हवाला देते हुए झटक दिया था। हालांकि बाद में इसे कोरोना के कारण स्थगित ही करना पड़ा। यह चीन के लिए एक तगड़ा झटका था क्योंकि एक समय में चेक राष्ट्रपति मिलोस ज़मैन चीनी निवेश के प्रमुख समर्थक थे।

कई थिंक टैंक भी यह कह चुके हैं कि मध्य और पूर्वी यूरोपीय देश चीन के साथ “17 + 1” Initiative के अधूरे आर्थिक परिणामों के कारण नाराज हो चुके हैं। वर्ष 2012 में जब से समूह की स्थापना हुई है तब से सभी 17 पूर्वी तथा मध्य यूरोपीय देशों का चीन के साथ  व्यापार में घाटा ही देखा गया है। रिपोर्ट में पाया गया कि 2018 तक, चीन के साथ 17 देशों का कुल घाटा 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। हालांकि, चीन से FDI धीरे-धीरे बढ़ा था लेकिन इसका 75 प्रतिशत सिर्फ चार देशों – हंगरी, चेक गणराज्य, पोलैंड और स्लोवाकिया में केंद्रित था। इस कारण अन्य देशों को काफी निराशा हुई।

एक तो चीन पहले से ही इन देशों के साथ प्रोजेक्ट्स पर ध्यान नहीं दे रहा था, उसके बाद कोरोना ने दोहरा झटका दे दिया। अब महामारी से उत्पन्न आर्थिक मंदी के दौर में वह पहले अपने देश के अंदर परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है।

वहीं, ज्यादातर पूर्वी तथा मध्य यूरोप के देश चीन के साथ अपनी निर्भरता के राजनीतिक परिणामों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। गौरतलब है कि अपनी बढ़ती आर्थिक शक्ति के साथ, चीन ने बीजिंग के प्रति CEE देशों की नीतियों पर काफी प्रभाव जमा लिया था। उदाहरण के लिए, जब चीन के मानवाधिकारों के हनन के बारे में संयुक्त राष्ट्र के यूरोपीय संघ ने बयान दिया था तब हंगरी और ग्रीस ने उस बयान का विरोध किया था। तब एथेंस ने इसे ‘चीन की असंवैधानिक आलोचना’ तक करार दिया था।

ये सभी देश अब आर्थिक अवसरों से लेकर राजनीतिक और सुरक्षा क्षेत्रों तक चीन के साथ अपने संबंधों का विकल्प तलाश रहे हैं। उदाहरण के लिए मई में, रोमानिया ने एक चीनी फर्म के साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए अपने संयुक्त वेंचर को समाप्त कर दिया। वहीं खुफिया एजेंसी द्वारा साइबर जासूसी पर अपनी चिंताओं की घोषणा के बाद लताविया ने चीन को राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा घोषित कर दिया है। इन्हीं कारणों ने 17+1 के कई देशों को जून में हुए BRI वीडियो कांफ्रेंसिंग से हटने के लिए भी मजबूर किया।

पूर्वी तथा मध्य यूरोप के देशों के ऊपर अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव का भी असर पड़ा और कई CEE देशों को चीन के साथ अपने सम्बन्धों को फिर से मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है।

अमेरिका द्वारा चीनी 5G को झटका देने के बाद कई CEE (सेंट्रल एंड ईस्टर्न यूरोप) के देश भी प्रभावित हुए और चीन के 5 जी को नकार दिया। अब तक क्रोएशिया, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, रोमानिया, सर्बिया और स्लोवेनिया ने अपने 5 जी नेटवर्क के निर्माण से हुवावे को प्रतिबंधित कर दिया हैं। अमेरिका ने इन देशों के साथ ‘Clean Network Program’ पर भी हस्ताक्षर किया है। हाल ही में माइक पोम्पियो ने भी इन देशों का दौरा किया था। सितंबर में, पोलिश सरकार ने भी साइबर सुरक्षा के लिए संभावित खतरा माने गए दूरसंचार आपूर्तिकर्ताओं को बाहर करने के लिए एक विधेयक लाने का फैसला किया है। यदि ये विधेयक पारित हो जाता है, तो यह कानून पोलैंड के 5 जी बुनियादी ढांचे के निर्माण से हुवावे को प्रभावी ढंग से प्रतिबंधित कर सकेगा।

यानि कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो अमेरिका का Three Sea Initiative अब चीन के 17+1 Initiative भारी पड़ रहा है। अमेरिका ने यूरोप और दक्षिण एशिया के बाद अब चीन को मध्य पूर्वी यूरोप में भी धूल चटा दी है।

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