जब से शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने हैं तब से ही PLA यानि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA)के सैनिकों को कई मोर्चों पर हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर कौन PLA को भारत के खिलाफ लड़ने को मजबूर कर रहा है? कौन PLA को पूर्वी चीन सागर में जापान के सेनकाकू द्वीपों के पास स्वयं को शर्मिंदा करने के लिए मजबूर कर रहा है? कई लोग इसके लिए चीनी सेना के जनरलों पर सवाल उठा सकते हैं परंतु वास्तविकता कुछ और ही है।
वास्तव में चीनी पीएलए को युद्ध में धकेलने वाले कोई और नहीं बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के महासचिव शी जिनपिंग हैं। CCP के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद से CCP के वर्तमान जनरल-सेक्रेटरी शी जिनपिंग पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में सबसे अधिक ताकतवर बनना चाहते हैं। इसलिए जिनपिंग ने न केवल CCP, बल्कि इसकी सशस्त्र शाखा- पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) पर कई तिकड़म भिड़ा कर अपनी पूरी पकड़ बना ली। इसी क्रम में CCP के महासचिव के रूप में 2012 में पदभार संभालने और फिर मार्च 2013 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति बनने के बाद शी जिनपिंग ने चीन का तीसरा सबसे ताकतवर पद यानि केंद्रीय सैन्य आयोग (CMC) के अध्यक्ष पद को भी अपने नाम कर लिया था।
उन्होंने खुद को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कमांडर-इन चीफ के रूप में भी स्थापित किया है। वस्तुतः इसका मतलब है कि शी जिनपिंग पीएलए के सभी कार्यों यानि युद्ध की घोषणा से लेकर सैनिकों की तैनाती और यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारियों के प्रोमोशन देने तक सब कुछ तय करते हैं।
सत्ता संभालने के कुछ ही वर्षों में उन्होंने PLA को ले कर अमूलचुल परिवर्तन शुरू कर दिया था। जिससे उनकी ताकत की व्यापकता बढ़ती जाए। सेना में किए इन सुधारों के दो मकसद थे । पहला सेना युद्ध में व्यस्त रहे और यह उसके माध्यम से वह दुनिया में अपनी वर्चस्वता को साबित कर दुनिया पर दबाव बना सके।
वर्ष 2015 में शी जिनपिंग ने PLA में कुछ संगठनात्मक परिवर्तनों को अंजाम दिया। चीन में सात सैन्य क्षेत्रों को पांच थियेटर कमांड में पुनर्गठित किया गया था जो कि कथित तौर पर क्षेत्रीय खतरों से निपटने के लिए निर्धारित किए गए थे। प्रत्येक थियेटर कमांड थल सेना, वायु सेना, नौसेना और पारंपरिक मिसाइलों से अपने स्वयं के पैकेज से सुसज्जित था। लेकिन यहाँ सभी सेनाओं पर नियंत्रण के लिए एक नया संयुक्त कमान और नियंत्रण तंत्र को भी सबसे शीर्ष स्तर पर स्थापित किया गया था- Central Military Commission (सीएमसी)। सीएमसी एक सर्व-शक्तिशाली निकाय है जो क्षेत्रीय संकटों और TCs के साथ युद्ध की तैयारी के साथ-साथ किसी भी स्थिति को अपने नियंत्रण में करने के लिए समन्वय स्थापित करता है और CMC के अध्यक्ष कौन हैं? शी जिनपिंग स्वयं।
यही नहीं,शी जिनपिंग ने Director of Political Work और Discipline Inspection Commission के सचिव को CMC में नियुक्त किया है। शी जिनपिंग यह स्पष्ट कर रहे हैं कि PLA CCP की एक सशस्त्र शाखा से ज्यादा कुछ अधिक न रहे है और PLA अपनी सीमा न भूले।
इतने बदलावों को करने के बाद उन्होंने PLA को कई युद्ध में झोंक दिया। PLA के सैनिकों की अनुभवहीनता, कम शारीरिक क्षमता और टूटे हुए मनोबल को किनारा रखते हुए CCP महासचिव ने उन्हें कठिन संघर्षों में घसीटना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत डोकलाम से हुई थी, जब पीएलए के सैनिकों को भारतीय सेना के अनुभवी सैनिकों के खिलाफ खड़ा किया गया था। तब भी चीनी PLA को मैदान छोड़ कर जाना पड़ा था। परंतु शी जिनपिंग तब भी नहीं माने औए वह विश्व को दिखाना चाहते थे कि उन्होंने कैसे विश्व स्तरीय सैन्य बल खड़ा किया है। इसलिए, जब शी जिनपिंग ने चीनी राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया, तो उन्होंने PLA को युद्ध के लिए तैयार रहने और ‘युद्ध जीतने के तरीके’ पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया।
इसके बावजूद अभी के काल में सबसे ज्यादा शर्मिंदगी झेलने वाली सेना PLA ही है। शी जिनपिंग अपनी सैन्य ताकत का दावा करने के लिए बेताब हैं, जो अक्सर ताइवान पर आक्रमण करने या दक्षिण चीन सागर या पूर्वी चीन सागर में धमकाने का प्रयास करने की धमकी देते रहते है।
हालाँकि, शी जिनपिंग की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा पीएलए को हिमालय में भारतीय सेना को चुनौती देना है। यही कारण है कि उन्होंने हाल ही में पीएलए के सैनिकों को लद्दाख से सटे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भेजा। 15 जून को, पीएलए के सैनिकों ने गलवान घाटी में भारतीय सेना हमला भी किया लेकिन जब भारतीय सेना ने जबावी कार्रवाई की तब चीनी सैनिक सिर पर पैर रख कर भाग गए। उस रक्तपात में भारत की तरफ से 20 सैनिक हुतात्मा हुए तो वहीं चीन के 40 से अधिक सैनिकों के मरने की रिपोर्ट आई थी। इस एक घटना के बावजूद शी जिनपिंग फिर से पीएलए को दक्षिणी पैंगॉन्ग त्सो में कार्रवाई के लिए भेज दिया था। इसके अवला दक्षिण चीन सागर, और ताइवान में भी PLA को हार का सामना करना पड़ा। इन सभी जगहों पर जिनपिंग के अपने स्वार्थ के कारण सेना लड़ी और बेइज्जत हुई।
पीएलए कभी भी एक ताकतवर सैन्य शक्ति नहीं थी। इसकी संस्थागत भूमिका सीसीपी के गुंडों की तरह रही है जो किसी प्रतिद्वंदी को निपटाने में काम आती है। पीएलए को युद्ध लड़ने की तुलना में मानवाधिकारों के उल्लंघन का अधिक अनुभव है और आखिरी युद्ध जो PLA ने 1979 में वियतनाम के खिलाफ लड़ा था, उसमें भी हार हुई थी। हालाँकि, शी जिनपिंग PLA को अपनी इशारों पर नचा कर एक ताकतवर फोर्स के रूप में दिखाना चाहते हैं। इससे न सिर्फ पीएलए की कमजोरियां अब भी उजागर हो रही हैं बल्कि शी जिनपिंग की भी पोल खुलती जा रही है।