मेघालय की राजधानी शिलांग में दुर्गा पूजा से ठीक एक दिन पहले खासी छात्र संघ (केएसयू) ने राजधानी के कई प्रतिष्ठित इलाकों में अपमानजनक और घृणित पोस्टर लगाए थे जिसमें लिखा था, सभी मेघालयी बंगाली बांग्लादेशी हैं। इसको लेकर अन्य “पोस्टरों में खासीलैंड खासियों का है” भी लिखा गया था। इसके अलावा की पोस्टरों में विदेशियों को छोड़कर जाने के लिए कहा गया है। इस विरोध को लेकर पुलिस ने कार्रवाई में कई लोगों को गिरफ्तार किया है। इस तरह के आंदोलन का उद्देश्य केवल यहां के बंगालियों को ही नहीं बल्कि गैर-आदिवासियों को भगाने का भी है और इसीलिए उन्हें इस तरह के संदेश देने की कोशिशें की जाती रही हैं।
दरअसल, खासी छात्र संघ में एक समूह है जो खासी हिल्स के सभी समुदायों के कल्याण और अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करत हैं। सरकार द्वारा बांग्लादेश की सीमाओं पर रहने वाले लोगों को स्थायी रूप से बसाने के लिए काम किया जा रहा है। ऐसे में इस छात्र संघ ने इस पूरे कार्य का विरोध करने के लिए ही इस तरह के पोस्टर लगाए हैं। गौरतलब है कि इस क्षेत्र के इचमाटी गांव में इन छात्र संघ के लोगों और गैर-आदिवासियों के बीच फरवरी में काफी हिंसक झड़प हुई थी। इन गैर-आदिवासी लोगों को ही आंदोलन कार्यकर्ता लुरशाई हाइनेविता की मौत का जिम्मेदार माना गया, जिसके बाद राजधानी में लगे पोस्टरों में लिखा गया प्रश्न- लुरशाई को किसने मारा, जिसके जवाब में ही लिखा गया, बांग्लादेशी बंगालियों ने।
So a bunch of hoodlums associated with student unions here in Shillong put up highly hateful and defamatory posters directed towards the state's Bengalis, and the administration watches helpless like a bunch of fools whose testicles have failed to descend. pic.twitter.com/iix1J06FSp
— Sanbeer Singh Ranhotra (@SSanbeer) October 21, 2020
इस हिंसा को लेकर मेघालय के बंगाली हिंदुओं द्वारा आरोप लगाया गया है कि हिंसा के बाद उन्हें फिर से व्यवसायिक गतिविधियां शुरु करने में परेशानी हो रही है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी अजीविका को लेकर कहा कि वो अब गुजारा करने में असमर्थ हैं जिसके लिए अब राज्यपाल से ही अपील की गई है कि उनकी अजीविका को लेकर हो रही परेशानियों का निस्तारण किया जाए। इसके लिए राज्य की मशीनरी पर भी सवाल खड़े किए गए हैं जो इन छात्र संघ से जुड़े एनजीओं के माध्यम से लोगों की अजीविका को कम करने पर काम कर रही है।
इसके तहत ये भी सामने आया है कि राज्य की पुलिस राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण के आदेश पर गैर आदिवासी महिलाओं और बच्चों के साथ हुए अत्याचारों की और उत्पीड़न के आरोपों की जांच कर रही है। वहीं इस मामले में मेघालय की महिला और बाल विकास मंत्रालय भी अपनी ओर से कार्रवाइयां कर रहा था। इसके बाद भी अपेक्षित रूप से पुलिस ने इस तरह के आरोपों को निराधार बता दिया है।
इस मामले में ज्यादा कुछ निकलकर भले ही नहीं आया हो लेकिन इस केस में दिल्ली से लेकर राज्य द्वारा जो जांच और पूछताछ की गई, उससे कहीं न कहीं छात्र संघ को परेशानी जरूर हुई है जो सरकार पर लगातार हर मुद्दे पर दबाव बनाते रहते हैं।
पुलिस ने इस मामले में घृणित बैनर लगाने वालों पर सबसे पहले कार्रवाई शुरु कर दी थी जिसके चलते ये असामाजिक तत्व शहर में अपना जहर फैलाने में नाकामयाब हो गए थे। गांव की उस हिंसा में दो गैर-आदिवासी भी मारे गए, जिन्हें निशाना बना कर मारा गया था लेकिन इस मामले में आरोपियों के खिलाफ किसी भी तरह की सख्त कार्रवाई नहीं की गई, न ही संगठन को लेकर कोई कदम उठए गए हैं जो कि आवश्यक थे।