दुनिया में हर मोर्चे पर मुंह की खा रहे चीन को अब एक और झटका लगा है। दरअसल, इस बार चीन और कनाडा के बीच राजनयिक गतिरोध की स्थिति बन गईं है जिसकी वजह बने हैं चीनी टेलीकॉम इंडस्ट्री की बड़ी कंपनी हुवावे के सीएफओ Meng Wanzhou (मेंग वानझोउ) । उन्हें कनाडा द्वारा अमेरिका के प्रत्यर्पण के अनुरोध पर दिसंबर 2018 में गिरफ़्तार किया गया था जिसके 9 दिन बाद बदले की नीति के तहत चीन ने भी कनाडा के पूर्व राजनयिक माइकल कोवरिग और एक अन्य व्यापारी को गिरफ्तार किया था लेकिन अब चीन को एक बड़ा झटका लगा है।
चीन की बदले की नीति से दोनों ही देश नाराज हैं। इसको लेकर अब कनाडा और अमेरिका ने चीन की इस बंधक नीति के खिलाफ हाथ मिला लिया है। यही नहीं वानझोउ की अमेरिकी प्रत्यर्पण की तारीख भी करीब आती जा रही है। इसी साल जनवरी में चीन ने दो कनाडाई लोगों के लिए काउंसलर एक्सेस देने से इनकार कर दिया था लेकिन अब चीन झुक गया है। कनाडा सरकार ने बताया,“चीन ने कनाडा के राजदूत डॉमिनिक बार्टर को स्पावर और कोवरिग के लिए वर्चुएअल काउंसलर एक्सेस की अनुमति दे दी है।”
चीन द्वारा काउंसलर एक्सेस देने की स्वीकृति को सद्भावना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि चीन ने ये सारा काम केवल व्हाइट हाउस के सीधे हमले से बचने के लिए किया है। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के संपर्क में हैं। बीते शनिवार को भी दोनों नेताओं ने आपस में बातचीत की थी जिसका मुख्य मुद्दा कनाडाई नागरिकों को हिरासत में लेने का था। दोनों नेताओं के बीच की इन नजदीकियों का डर चीन को भी है जिसके चलते चीन बैकफुट पर आ गया है।
इस मसले को लेकर ट्रूडो ने चीन द्वारा हिरासत में लिए गए दो कनाडाई नागरिकों की रिहाई की मांग की है, साथ ही इस दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति का इस मुद्दे पर समर्थन करने के लिए धन्यवाद भी दिया है। अमेरिका के समर्थन के कारण कनाडा मुखरता से चीन को लताड़ लगा रहा है जिसके चलते कनाडा ने बयान जारी किया। कनाडाई सरकार चीन द्वारा मनमाने तरीके से गिरफ़्तार किए गए दोनों कनाडाई नागरिकों के लिए चिंतित है, इसलिए इस मामले में तत्काल रिहाई की मांग करना बेहद जरूरी हो गया है। इन नागरिकों की हिरासत की मांग के कारण कनाडा और चीन के बीच गतिरोध लगातार बढ़ता जा रहा है।
काउंसलर एक्सेस को लेकर चीन की यह नीति बताती है कि वानझोउ को रिहा करो या तो दोनों कनाडाई नागरिकों को मरने दो। चीन के लिए दो कनाडाई नागरिक किसी बंधक की तरह है जो कि वानझोउ के अमेरिकी प्रत्यर्पण से इनकार करने और उसे रिहा करने के लिए ही हैं। वहीं, कनाडा ने हुवावे के सीएफओं को ईरान पर गुप्त रूप से प्रतिबंध लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जबकि चीन के पास कनाडाई नागरिकों का हिरासत में लेने का कोई आरोप ही नहीं है।
जब से कोरोना वायरस का प्रकोप शुरु हुआ है तब से कोई भी चीन में काउंसलर एक्सेस के लिए नहीं जा पाया है। ऐसे में जब चीन बार-बार इन दोनों कनाडाई नागरिकों के काउंसलर एक्सेस से मना कर रहा था, तो अमेरिका की चीन को घुटनों पर लाने वाली नीति काम आई है और इसके चलते अब चीन काउंसलर एक्सेस देने को राजी हो गया है।
कनाडाई नागरिक की रिहाई को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो पहले ही कह चुके है, “पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना द्वारा गिरफ्तार किए गए दो कनाडाई नागरिकों को लेकर अमेरिका बेहद चिंतित हैं। गौरतलब है कि अमेरिका पिछले काफी वक्त से चीन के खिलाफ हर मुद्दे पर मुखरता से बयान दे रहा है। उन्होंने कहा, “राजनीतिक आरोपों से इतर दोनों नागरिकों की रिहाई बेहद आवश्यक है।”
अमेरिका की कार्रवाई केवल बयानों तक ही सीमित नहीं हैं। हाल ही में अमेरिका ने कई चीनी तथाकथित छात्रों को जासूसी करते हुए पकड़ा था और फिर उन पर कार्रवाई की जो दिखाता है कि वो सख्त है। ये सभी अनुसंधानों की साहित्यिक चोरी कर इससे चीन को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रहे थे । ऐसे में अब चीन के जासूसों की हिरासत के बाद ये दांव उल्टा पड़ गया है और अब अमेरिका भी चीन को इस मुद्दे पर घेर सकता है। जिसके चलते चीन कनाडाई नागरिकों का काउंसलर एक्सेस देने की मांग कर रहा है क्योंकि अमेरिका, जासूसी से जुड़े सवाल चीन से वैश्विक पटल पर पूछेगा जिसके जवाब चीन के पास नहीं होगे।
चीन अपने आरोपी नागरिक की गिरफ्तारी पर कनाडा से बदले की कार्रवाई के तहत दो नागरिकों को हिरासत में लेकर सौदा करने की कोशिश में था लेकिन इस मामले में अमेरिका का सक्रिय होना चीन के लिए मुश्किलों का सबब बन गया है क्योंकि चीन की हर कमज़ोर नब्ज केवल अमेरिका के ही पास है।