कोरोना के बाद से ही ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच रिश्ते बेहद खराब होते जा रहे हैं, जिसने ऑस्ट्रेलिया को अपनी राजनीति “चाइना-फ्री” करने का एक सुनहरा मौका दे दिया है। अगर ऑस्ट्रेलिया समय रहते अपनी राजनीति में चीनी अतिक्रमण के प्रति सख्त रुख नहीं दिखाता, तो शायद फिर कभी ऑस्ट्रेलिया चीनी चंगुल से बाहर निकल ही नहीं पाता। ऑस्ट्रेलिया में चीन का प्रभुत्व इतना ज्यादा था कि अब एक के बाद एक ऑस्ट्रेलियाई राज्यों के प्रीमियर्स के चीन के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध निकलकर सामने आ रहे हैं। पहले विक्टोरिया राज्य के प्रिमियर डेनियल एंड्रूस पर ऑस्ट्रेलिया में चीनी एजेंडे को आगे बढ़ाने के आरोप लगे, अब कुछ ऐसे ही आरोप न्यू साउथ वेल्स राज्य के प्रिमियर ग्लेडिस बेरेजिकेलियन पर लगाए जा रहे हैं।
दरअसल, ग्लेडिस-बेरेजिकेलियन के खिलाफ जारी एक जांच में यह सामने आया है कि चीनी प्रशासन के साथ मिलकर ऑस्ट्रेलिया में भ्रष्टाचार करने वाले Wagga Wagga शहर के पूर्व सांसद Daryl Maguire चोरी छिपे ग्लेडिस बेरेजिकेलियन के संपर्क में भी थे। जांच के दौरान ग्लेडिसबेरेजिकेलियन ने यह खुद स्वीकार कर लिया है कि “उन्होंने अपने निजी जीवन में एक बड़ी गलती कर दी है”। हालांकि, NSW के प्रिमियर ने यह स्पष्ट किया है कि अपने पद पर बने रहने के दौरान उन्होंने कोई गलती नहीं की है और इसके कारण वे अपने पद पर बनी रहेंगी। उनके बयान के मुताबिक “मुझे कुछ लोगों ने बेशक प्रभवित करने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे थे”। इसके उलट, अब विपक्षी लेबर पार्टी ने ग्लेडिस के इस्तीफ़े की मांग की है।
बता दें कि Daryl Maguire पर सांसद रहने के दौरान “कैश के बदले चीनी छात्रों को वीज़ा प्रदान करने की स्कीम” चलाने के आरोप लगे थे, इसके बाद वर्ष 2018 की एक जांच में यह भी सामने आया था कि वे ऑस्ट्रेलिया में चीनी प्रॉपर्टी डीलर्स के इशारों पर काम कर रहे थे, जिसके बाद उन्हें अपने सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इतना ही नहीं, अब भी Daryl Maguire के खिलाफ इस बात की जांच चल रही है कि क्या वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2018 के बीच उन्होंने चीन से संबन्धित विवादित बिजनेस डील्स पक्की की थी। ऐसे में इस विवादित व्यक्ति के साथ NSW के प्रिमियर के बेहद करीबी और गोपनीय रिश्ते ऑस्ट्रेलिया के लिए चिंता का विषय हैं।
इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के एक और राज्य “विक्टोरिया” के प्रिमियर डेनियल एंड्रूस भी चीन के साथ संबंधो को लेकर विवादों में आ चुके हैं। पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले विक्टोरिया राज्य ने चीन के साथ यह डील पक्की की थी और तब विक्टोरिया के प्रिमियर Daniel Andrews (डेनियल एंड्रयूज) ने दावा किया था कि इस प्रोजेक्ट के बाद ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में नौकरियाँ पैदा होंगी और व्यापार बढ़ेगा। डेनियल आज भी BRI प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने पर अड़े हुए हैं। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया के अंदर उनका विरोध बढ़ गया है। स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और इसके साथ ही विक्टोरिया राज्य के विपक्षी नेता लगातार डेनियल पर इस प्रोजेक्ट को रद्द करने का दबाव बना रहे हैं। वैसे भी यह डील कानून बाध्यकारी नहीं है, यानि अगर ऑस्ट्रेलिया का विक्टोरिया राज्य इस BRI डील से अपने हाथ वापस खींचता है, तो इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसे में डेनियल पर लगातार देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। 24 मई को प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने डेनियल को लताड़ लगाते हुए कहा था “विक्टोरिया की BRI डील देश की विदेश नीति में बड़ा रोड़ा बन रही है। राज्यों को देश की विदेश नीति का सम्मान करना चाहिए।” इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्री ने एक कदम आगे बढ़ते हुए यह कहा था कि डेनियल का यह समझौता देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हाल ही में एक ऐसे कानून को लाने का ऐलान किया है, जो ऑस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार को किसी भी राज्य की सरकार द्वारा पक्के किए गए समझौतों को रद्द करने का अधिकार प्रदान करेगा। मॉरिसन सरकार का यह दांव विक्टोरिया राज्य को चाइना-फ्री करने की दिशा में उठाया गया कदम ही माना जा रहा है।
चीन का ऑस्ट्रेलिया पर कितना प्रभाव है, यह आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि अभी चीन के प्रति कई ऑस्ट्रेलियाई नरम रुख रखते हैं। कई ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में लगभग 10 प्रतिशत राजस्व चीनी विद्यार्थियों से ही आता और न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय एवं सिडनी विश्वविद्यालय में 20 प्रतिशत विद्यार्थी चीन से हैं। यही नहीं, चीन के विद्यार्थी ऑस्ट्रेलिया में खुलेआम गुंडई करते हैं और हाँग काँग के समर्थन में उठने वाली आवाज़ों का दमन करते हैं।
इन सब घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे बड़ी समस्या चीन नहीं बल्कि चीन के इशारों पर काम कर रहे उसके खुद के लोग ही हैं। हालांकि, अब जिस प्रकार स्कॉट मॉरिसन सरकार चुन-चुन कर अपने देश से चीनी प्रभाव को कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं, वह वाकई प्रशंसनीय है।